सर्वोच्च न्यायालय ने 19 मई, 2025 को निर्देश दिया था कि राजस्थान समेत सभी राज्यों के उपभोक्ता आयोगों के राज्य और जिला स्तर के अध्यक्षों और सदस्यों को समान वेतन और भत्ते मिलें। अब इस आदेश में संशोधन का अनुरोध किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार (22 सितंबर) को कई राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई की। राजस्थान की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने दलील दी कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत वेतन और भत्ते तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को है और राजस्थान ने पहले ही अपने नियम बना लिए हैं। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इन नियमों की वैधता पर विचार किए बिना, संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए सभी राज्यों को एक ही आदेश जारी कर दिया, यहाँ तक कि नियमों में संशोधन का सुझाव भी दिया। इसलिए राजस्थान ने न्यायालय से पुनर्विचार की अपील की है।
राज्य ने अपनी याचिका में दो मुख्य माँगें रखी हैं:
1. वेतन और भत्ते संबंधी आदेश 19 मई, 2025 से ही प्रभावी होना चाहिए, न कि पूर्वव्यापी प्रभाव से, ताकि राज्यों पर पाँच वर्षों के बकाये का बोझ न पड़े।
2. उपभोक्ता आयोग के सदस्यों को ज़िला न्यायाधीश के प्रारंभिक वेतनमान पर रखा जाना चाहिए, न कि उच्च "सुपर-टाइम" या "सिलेक्शन ग्रेड" वेतनमान पर, जो राज्य पर असहनीय वित्तीय बोझ डालता है।
सोमवार को यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष आया। न्यायालय ने कहा कि न केवल राजस्थान, बल्कि तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड और मिज़ोरम जैसे अन्य राज्यों ने भी इसी तरह की याचिकाएँ दायर की हैं। इन सभी याचिकाओं पर अब 8 अक्टूबर, 2025 को एक साथ सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट के 19 मई के आदेश में क्या कहा गया है?
19 मई, 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों को वरिष्ठ जिला न्यायाधीशों के उच्च वेतनमान के बराबर वेतन और भत्ते मिलेंगे। यह लाभ जुलाई 2020 से प्रभावी होगा और बकाया राशि का भुगतान छह महीने के भीतर किया जाएगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि "अंशकालिक" या "गैर-न्यायिक सदस्य" जैसी कृत्रिम श्रेणियाँ नहीं बनाई जा सकतीं और सभी को पूर्णकालिक माना जाएगा।
राजस्थान ने आपत्ति क्यों की?
राजस्थान ने तर्क दिया कि इस आदेश से राज्य पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, जिससे पिछले पाँच वर्षों के वेतन और बकाया राशि का भुगतान करना होगा, जिसका राज्य के खजाने पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। राज्य ने यह भी तर्क दिया कि "सुपर-टाइम" या "चयन ग्रेड" वेतनमान जिला न्यायाधीश के प्रवेश-स्तर के वेतनमान से काफी अधिक है, जबकि राज्य के नियमों में केवल प्रवेश-स्तर के वेतनमान का ही प्रावधान है। राजस्थान ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि उसकी वित्तीय क्षमता की रक्षा की जाए, उस पर पूर्वव्यापी बकाया का बोझ न डाला जाए तथा पहले से बने राज्य नियमों का सम्मान किया जाए।
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