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भारतीय अब सोना गहने के रूप में ज़्यादा क्यों नहीं ख़रीद रहे, इस दीवाली बदला ट्रेंड

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Faisal Bashir/SOPA Images/LightRocket via Getty Images हाल के वक्त में सोने की क़ीमतों में तेज़ी से बढ़ोतरी देखने को मिली है

बीते कुछ हफ़्तों में सोना महंगा होने से इसकी मांग पर असर पड़ा है. इसके बावजूद भारतीयों का प्यार कायम है.

दीवाली से ठीक पहले भारत की राजधानी दिल्ली के लाजपत नगर इलाक़े की ज्वेलरी मार्केट में भारी भीड़ है.

छुट्टियों के दिन भी यहाँ दुकानें खुली हुई हैं. शाम ढलते ही चमचमाते साइनबोर्ड्स की क़तारें सड़कों पर लगी कारों के बीच से ग्राहकों को दुकानों की तरफ़ आकर्षित करती हैं.

सोने की क़ीमतों में हाल के दिनों में तेज़ी से उछाल आया है. सोना प्रति 10 ग्राम 1,440 डॉलर (लगभग एक लाख 26 हज़ार) के पार पहुंच चुका है.

इस कारण दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सोना बाज़ार भारत में, सोने की मांग थोड़ी कम तो हुई है लेकिन दीवानगी अब भी बरक़रार है.

दीवाली और उससे पहले आने वाला धनतेरस, जो इस बार शनिवार को है, दोनों ही सोना-चांदी ख़रीदने के लिए शुभ माने जाते हैं.

हर साल लाखों भारतीय इस मौक़े पर सिक्के, बिस्कुट और ज्वेलरी के रूप में अक्सर सोना या चांदी ख़रीदते हैं. लोगों का ये मानना है कि इससे घर में समृद्धि आती है.

क्यों बढ़ रही है सोने-चांदी की ख़रीदारी? image BBC

इस साल तेज़ी से बढ़ती सोने और चांदी की क़ीमतों ने ख़रीदारों में एक तरह का डर पैदा कर दिया है.

दिल्ली के कुमार ज्वेलर्स के मालिक प्रकाश पहलाजानी ने बीबीसी को बताया, "लोग सोच रहे हैं कि अगर अभी नहीं ख़रीदा तो आगे क़ीमतें और बढ़ जाएंगी. इसी वजह से इस साल मेरे पास ज़्यादा ग्राहक आए हैं."

लेकिन जब सोना 60 फ़ीसदी तक और चांदी 70 फ़ीसदी तक महंगा हो गया है, तो ज्वेलर्स को भी ग्राहकों के सीमित बजट के हिसाब से अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है.

तनिष्क गुप्ता की ज्वेलरी की दुकान प्रकाश पहलाजानी की दुकान से कुछ दूरी पर है.

वो कहते हैं, "लोग यह नहीं कह रहे कि 'मुझे नहीं ख़रीदना'. बल्कि वो कह रहे हैं, अब हम थोड़ा कम ख़रीदेंगे."

तनिष्क कहते हैं कि उन्होंने अब ऐसे डिज़ाइन बनाए हैं जो दिखने में भारी लगते हैं लेकिन उनमें सोने की मात्रा कम है. जैसे 250 मिलीग्राम सोने का एक सिक्का, जो क़रीब 35 डॉलर (लगभग तीन हज़ार रुपये में) में बिकता है, अब पहले से और पतला बनाया गया है, लेकिन ये आकार में पहले जितना बड़ा लगता है.

अब बाज़ार में इससे 10 गुना छोटे यानी 25 मिलीग्राम तक वज़न वाले सिक्के भी उपलब्ध हैं.

इसी मार्केट में रिटेलर का काम करने वाले पुष्पिंदर चौहान कहते हैं कि बढ़ी हुई क़ीमतों ने "हल्की ज्वेलरी" की मांग को और बढ़ा दिया है. वो कहते हैं कि लोग, ख़ासकर युवा अब केवल ख़ास मौक़ों पर पहनने के लिए भारी गहने लेने की बजाय रोज़ाना पहनने लायक हल्के गहनों को प्राथमिकता दे रहे हैं.

दिख रहा है नया ट्रेंड

कई ज्वेलर्स ने बीबीसी को बताया कि इस साल उन्हें एक और ट्रेंड साफ़ नज़र आ रहा है. उनका कहना है कि लोग सिर्फ़ ज्वेलरी के तौर पर नहीं बल्कि निवेश के लिए भी सोना-चांदी ख़रीद रहे हैं. यह रुझान बुलियन मार्केट के आंकड़ों में भी दिखाई दे रहा है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) के मुताबिक़, भारत में कुल सोने की मांग में ज्वेलरी की हिस्सेदारी घटी है जबकि निवेश (सिक्के और बिस्कुट के रूप में ख़रीद) का हिस्सा बढ़ा है.

डब्ल्यूजीसी की रिसर्च हेड कविता चाको ने बीबीसी को बताया, "2023 की दूसरी तिमाही में कुल सोने की ख़रीद में ज्वेलरी का हिस्सा 80 फ़ीसदी था, जो इस साल की दूसरी तिमाही में घटकर 64 फ़ीसदी रह गया है. वहीं निवेश के तौर पर इसकी मांग इस दौरान 19 फ़ीसदी से बढ़कर 35 फ़ीसदी तक हुई है."

एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ईटीएफ़ और डिजिटल गोल्ड के रूप में भी सोने में निवेश बढ़ा है. इस साल सितंबर में अब तक का सबसे ज़्यादा निवेश दर्ज किया गया है. ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियों के तहत ईटीएफ़ निवेश में इस साल 70 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

आरबीआई की भूमिका

सोने की क़ीमतों पर सिर्फ़ खुदरा बाज़ार का ही नहीं बल्कि भारतीय रिज़र्व बैंक का भी बड़ा असर रहता है. डब्ल्यूजीसी के अनुसार, 2025 में आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार में सोना 9 प्रतिशत से बढ़कर 14 प्रतिशत तक हो गया है.

ब्रोकरेज हाउस कोटक सिक्योरिटीज़ में कमोडिटी मामलों की विशेषज्ञ कायनात चेनवाला कहती हैं, "बीते तीन सालों से आरबीआई सोने की वैश्विक मांग का एक अहम स्तंभ बना हुआ है."

वो कहती हैं कि अपने विदेशी मुद्रा भंडार को डायवर्सिफ़ाई करने, डॉलर पर निर्भरता घटाने और भू-राजनीतिक तनाव के दौर में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए आरबीआई लगातार सोने का स्टॉक बढ़ा रहा है.

मुश्किल हुआ सोना ख़रीदना image BBC

जानकारों का मानना है कि रिकॉर्ड क़ीमतों के बावजूद आने वाले हफ़्तों में त्योहारों और शादी के सीज़न के कारण सोना और चांदी की खुदरा मांग बरकरार रहेगी.

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, "अमीर तबका सोने की ख़रीदारी जारी रखेगा. हालांकि निचले आय वर्ग के लिए यह झटका होगा. कुल ख़रीद की मात्रा ज़रूर कम होगी लेकिन मूल्य के हिसाब से देखें तो कमी नहीं आएगी."

लेकिन बढ़ी क़ीमतों के कारण कुछ परिवारों के लिए ज्वेलरी बाज़ार तक पहुंच कम हो गई है.

अगले साल फ़रवरी में भावना की शादी होनी है. उनसे हमारी मुलाक़ात लाजपत नगर में प्रकाश पहलाजानी की दुकान के बाहर हुई.

उन्होंने कहा, "ख़रीदने से पहले अब काफ़ी कुछ सोचना पड़ रहा है. ये भी सोच रही हूँ कि कुछ ख़रीदूं भी या नहीं."

भावना ने फ़िलहाल के लिए अपनी ख़रीदारी रोक रखी है. वो उम्मीद कर रही हैं कि क़ीमतों में कुछ गिरावट आएगी तो वो अपनी शादी की शॉपिंग पूरी कर सकेंगी.

जानकारों का कहना है कि सोने के प्रति, ख़ासकर सोने के गहनों के प्रति भारत में सांस्कृतिक लगाव इतना गहरा है कि कम वक़्त में इसकी क़ीमतें बढ़ने या घटने से लंबे समय में इसकी चाहत पर ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा.

दरअसल, भारत में सोने को न सिर्फ़ गहने के रूप में बल्कि संपत्ति के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है. लंबे समय में मज़बूत आर्थिक स्थिति बनाए रखने में इसने मदद की है.

ख़ासकर ऐसे वक़्त में जब आर्थिक विकास धीमा हो और नौकरियां मिलना मुश्किल हो.

अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टैनली के अनुसार, भारतीय परिवारों के पास कुल मिलाकर 3.8 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 334 ट्रिलियन रुपये) का सोना है, जो भारत की जीडीपी के 88.8 फ़ीसदी के बराबर है.

मॉर्गन स्टैनली की अर्थशास्त्री उपासना चाचरा और बानी गंभीर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, "इसका ये मतलब है कि सोने की बढ़ती क़ीमतों से दरअसल भारतीय परिवारों की संपत्ति में बढ़ोतरी हुई है."

साथ ही उनका ये भी कहना है कि "मॉनिटरी पॉलिसी में राहत देते हुए ब्याज दरों में कटौती करने के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष टैक्स कम किए जाने से लोगों की खर्च करने की क्षमता भी बढ़ी है."

त्योहारों के मौसम की शुरुआत के लिए यह बुरा संकेत नहीं है. हालांकि ये सच है कि रिकॉर्ड क़ीमतों ने सोने की चमक ज़रूर थोड़ी फीकी कर दी है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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