New Delhi, 22 सितंबर . 1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्व युद्ध ने वैश्विक इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया. जब यह महायुद्ध अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था, तब एक ऐसी घटना घटी जो आधुनिक युद्ध इतिहास में अमर हो गई. 23 सितंबर 1918 को लड़ी गई हाइफा की लड़ाई न केवल प्रथम विश्व युद्ध का महत्वपूर्ण हिस्सा थी, बल्कि केंद्रीय शक्तियों, खासकर ओटोमन साम्राज्य को पराजित करने वाली निर्णायक घटनाओं में से एक साबित हुई.
यह लड़ाई मध्य पूर्वी मोर्चे पर ब्रिटिश साम्राज्य की सेनाओं के बीच हुई, जिसमें भारतीय घुड़सवार रेजिमेंट्स ने मुख्य भूमिका निभाई. इसमें भारतीय घुड़सवार रेजिमेंट्स ने एक निर्णायक भूमिका निभाई थी. ब्रिटिश भारतीय सेना के बहादुर सैनिकों में (मुख्य रूप से जाट, सिख और गुर्जर रेजिमेंट्स से) भालों और तलवारों से लैस घुड़सवारों फौज थी. यह आधुनिक युग का आखिरी प्रमुख घुड़सवार हमला था, जिसने मशीन गनों और तोपों की मजबूत रक्षात्मक रेखा को भेद दिया. इसके परिणामस्वरूप, ओटोमन साम्राज्य (तुर्की) और उनके जर्मन सहयोगियों के नियंत्रण से हाइफा बंदरगाह को मुक्त करा लिया गया.
दरअसल, हाइफा युद्ध प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के अंतिम दौर में सिनाई और फिलिस्तीन अभियान का हिस्सा था. यह मेगिडो की लड़ाई (19-25 सितंबर 1918) के अंतर्गत आता है, जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य की सेनाओं ने ओटोमन सेना की सातवीं और आठवीं सेना को घेराबंदी में डाल दिया. हाइफा एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर था, जो ब्रिटिश सेना के लिए आपूर्ति लाइनों को मजबूत करने के लिए जरूरी था. सड़कें खराब होने के कारण शहर पर कब्जा अनिवार्य था.
ऑटोमन सेना ने हाइफा को तोपखाने, मशीन गनों और जर्मन-ऑस्ट्रियन सहयोग से मजबूती से सुरक्षित किया था. ब्रिटिश भारतीय सेना की 15वीं (इम्पीरियल सर्विस) कैवलरी ब्रिगेड को यह जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसमें भारतीय रियासतों (जोधपुर, मैसूर, हैदराबाद) के घुड़सवार शामिल थे.
21-22 सितंबर 1918 को 13वीं कैवलरी ब्रिगेड के 18वें किंग जॉर्ज ओन लांसर्स ने हाइफा के पास ऑटोमन बटालियन को हराया, जिसमें कई कैदी लिए गए. 23 सितंबर 1918 को मैसूर लांसर्स और शरवुड रेंजर्स योमैनरी ने माउंट कार्मेल पर ऑस्ट्रियन तोपखाने की बैटरी पर कब्जा किया. जोधपुर लांसर्स ने मेजर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में शहर की ओर चार्ज किया.
मशीन गनों और तोपों की गोलीबारी के बावजूद, वे क्विकसैंड (तेज रेत) के बावजूद आगे बढ़े. शहर में घुसकर उन्होंने दुश्मन को चौंका दिया और मैसूर लांसर्स के समर्थन से हाइफा पर कब्जा कर लिया. इस हमले में भारतीय सैनिकों ने तलवारों और भालों का इस्तेमाल किया, जो आधुनिक युद्ध में दुर्लभ था. यह चार्ज मैक्सिम मशीन गन के युग में एक चमत्कारिक सफलता थी.
हाइफा युद्ध में भारतीय सेना के जोधपुर, मैसूर, और हैदराबाद लांसर्स रेजिमेंट्स की भूमिका सराहनीय थी, जिसने लगभग 400 साल पुराने ओटोमन शासन का अंत किया.
बताया जाता है कि इस युद्ध में करीब 60 भारतीय मारे गए थे, जिनमें से हाइफा में 44 भारतीय सैनिकों की कब्रें मौजूद हैं. इसके अलावा बड़ी तादाद में हथियारों को भी जब्त किया गया था. India में भारतीय सेना हर साल 23 सितंबर को हाइफा दिवस मनाती है, जबकि इजरायल में भी इस दिन भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है.
2017 में जब Prime Minister मोदी इजरायल दौरे पर गए थे तो उन्होंने हाइफा शहर में उस जगह का दौरा किया था, जहां भारतीय सैनिकों ने ओटोमन साम्राज्य के अंत की पटकथा लिखी थी.
–
एफएम/एएस
You may also like
ईरानी कप: विदर्भ ने रेस्ट ऑफ इंडिया पर 224 रन की बढ़त बनाई
Anil Ambani's Petition Against SBI Dismissed : अनिल अंबानी को बॉम्बे हाईकोर्ट से लगा झटका, एसबीआई के खिलाफ दायर याचिका खारिज
धनश्री वर्मा पर काला जादू का डर: 'राइज एंड फॉल' में आकृति नेगी का ड्रामा
युवती से शादी का झांसा देकर दुष्कर्म, एफआईआर
जाैनपुर : चार करोड़ की एमडीएमए तस्करी के आरोप में चार गिरफ्तार