New Delhi, 25 अक्टूबर . संगीत एक ऐसी विधा है जिसमें सुर की साधना करते हुए ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है. भारतीय शास्त्रीय संगीत में ऐसे कई गायक हुए हैं जिन्होंने अपनी साधना से संगीत को समृद्ध किया है. ऐसे ही एक गायक हुए पंडित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर, जिन्हें पंडित डी. वी. पलुस्कर के नाम से जाना जाता है.
महान गायक और संगीतकार विष्णु पलुस्कर का जन्म 28 मई, 1921 को Maharashtra के कुरुंदवाड़ में हुआ था. वे प्रसिद्ध संगीतज्ञ पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के पुत्र थे. पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर का भी भारतीय शास्त्रीय संगीत समृद्ध बनाने और जन-जन तक पहुंचाने में अहम योगदान रहा था. उनका ही अंश उनके पुत्र विष्णु पलुस्कर में भी था.
डी. वी. पलुस्कर ने अपने पिता की विरासत को न केवल संजोया, बल्कि उसे और समृद्ध किया. ग्वालियर घराने से संबंध रखने वाले पलुस्कर की गायन शैली में रागों की शुद्धता, भावनात्मकता और तकनीकी कुशलता का असाधारण समन्वय था. उनके कुछ प्रसिद्ध रागों में यमन, भूप, दरबारी और मालकौस शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने अपनी अनूठी शैली में प्रस्तुत किया. उनके मधुर आवाज में गाए ख्याल, ठुमरी और भजन श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे.
पलुस्कर ने संगीत को आम जनमानस तक पहुंचाने के लिए प्रयास किए. उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित गांधर्व महाविद्यालय की परंपरा को आगे बढ़ाया और संगीत शिक्षा को बढ़ावा दिया. उनके प्रयासों से शास्त्रीय संगीत को न केवल मंचों पर, बल्कि आम लोगों के बीच भी लोकप्रियता मिली.
मात्र 34 साल की उम्र में 25 अक्टूबर, 1955 को उनका निधन हो गया. लेकिन उनके निधन के बाद भी उनके संगीत की विरासत आज भी जीवित है जिसे उनके शिष्यों और अनुयायियों ने आगे बढ़ाया. पंडित पलुस्कर की रिकॉर्डिंग्स संगीत प्रेमियों के बीच आज भी लोकप्रिय हैं. महज 34 साल की उम्र में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए जो कुछ भी उन्होंने किया, उसे संगीत से जुड़े लोग कभी भूल नहीं सकते.
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पीएके
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