यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। यह भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई बहन को साथ-साथ यमुना स्नान करना, तिलक लगवाना तथा बहिन के घर भोजन करना अति फलदायी होता है। इस दिन बहन-भाई की पूजा कर उसके दीर्घायु तथा अपने सुहाग की कामना कर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। इसी दिन युमना जी ने अपने भाई यमराज को भोजन कराया था। इसलिए इसे 'यम द्वितीया' भी कहते हैं। इस दिन श्रद्धा भाव से, स्वर्ण वस्त्र, मुद्रा आदि बहन को देना चाहिए।
कथा-सूर्य भगवान की स्त्री का नाम संज्ञादेवी था इनकी दो सन्तानें, पुत्र यमराज था कन्या यमुना थी। संज्ञा रानी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है जो देवताओं के वैद्य (भेषज) माने जाते हैं। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसायी, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का काम सम्पादित करते भाई को देखकर यमुना जी गो लोक चली आई उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना को बहुत खोजवाया, मगर मिल न सकीं। फिर स्वयं ही गोलोक गए जहां विश्राम घाट पर यमुना
जी से भेंट हुई भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर हो स्वागत सत्कार के साथ भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा- "हे भैया ! मैं आपसे यह वरदान मांगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जायें? प्रश्न बड़ा कठिन था यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता अतः भाई को असमन्जस में देखकर यमुना बोली- आप चिन्ता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो 'लोग आज के दिन बहिन के यहाँ भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जायें।' इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया इस तिथि को जो सज्जन बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांध कर यमपुरी को ले जाऊँगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा। तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है।
कथा-सूर्य भगवान की स्त्री का नाम संज्ञादेवी था इनकी दो सन्तानें, पुत्र यमराज था कन्या यमुना थी। संज्ञा रानी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है जो देवताओं के वैद्य (भेषज) माने जाते हैं। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसायी, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का काम सम्पादित करते भाई को देखकर यमुना जी गो लोक चली आई उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना को बहुत खोजवाया, मगर मिल न सकीं। फिर स्वयं ही गोलोक गए जहां विश्राम घाट पर यमुना
जी से भेंट हुई भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर हो स्वागत सत्कार के साथ भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा- "हे भैया ! मैं आपसे यह वरदान मांगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जायें? प्रश्न बड़ा कठिन था यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता अतः भाई को असमन्जस में देखकर यमुना बोली- आप चिन्ता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो 'लोग आज के दिन बहिन के यहाँ भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जायें।' इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया इस तिथि को जो सज्जन बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांध कर यमपुरी को ले जाऊँगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा। तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है।
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