नई दिल्ली: सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे में भारत को एक व्यापक पॉलिसी की जरूरत है। यह बात बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है। भारत दुनिया के सबसे बड़े सोने के बाजारों में से एक है। देश में लोग सोने को सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व देते हैं। वे इसे एक अच्छे निवेश के तौर पर भी देखते हैं।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक अनुसंधान विभाग ने 'कमिंग ऑफ (ए टर्बुलेंट) एज: द ग्रेट ग्लोबल गोल्ड रश' नाम से रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में चल रहे भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक अनिश्चितता और अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने की वजह से सोने की कीमत ें नई ऊंचाइयों पर पहुंच रही हैं। साल 2025 में अब तक सोने की कीमतों में 50 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। अक्टूबर में कुछ दिनों के लिए सोने की कीमत 4,000 डॉलर प्रति औंस से नीचे चली गई थी। लेकिन, नवंबर में यह फिर से 4,000 डॉलर प्रति औंस के पार निकल गई।
सोने की घरेलू सप्लाई बहुत कम
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में सोने की घरेलू सप्लाई कुल सोने की जरूरत का बहुत छोटा हिस्सा ही पूरा कर पाती है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुमान के अनुसार, 2024 में भारत की कुल सोने की सप्लाई में आयात का हिस्सा लगभग 86 फीसदी रहेगा। भारत सोने के प्रति अपने गहरे सांस्कृतिक लगाव, निवेश की चाहत और महंगाई से बचने और सुरक्षित निवेश जैसे आर्थिक कारणों से सोने के सबसे बड़े बाजारों में से एक है।
2024 में भारत में सोने की कुल मांग बढ़कर 802.8 टन हो गई। यह दुनिया की कुल सोने की मांग का 26 फीसदी है। इस मांग के साथ भारत चीन के बाद सोने की खपत के मामले में दूसरे स्थान पर आ गया है। चीन की सोने की उपभोक्ता मांग 815.4 टन थी।
चीन ने बना ली है नेशनल पॉलिसी
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की सोने को लेकर एक राष्ट्रीय नीति है। इसका एक खास मकसद है। यह नीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने के व्यापार, उसके भंडारण, मूल्यांकन और इस्तेमाल के तरीकों को बेहतर बनाने के लिए एक विस्तृत योजना पेश करती है। यह नीति कई आर्थिक और भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं को एक साथ पूरा करने के लिए एक तालमेल वाला तरीका दिखाती है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अमेरिका और जर्मनी जैसे देश अपने कुल भंडार का 77 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सोने के रूप में रखते हैं। वहीं, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2025-26 (10 अक्टूबर तक) में अपने भंडार का 15.2 फीसदी सोना रखा। इससे पहले वित्त वर्ष 2024-25 में यह 13.8 फीसदी और वित्त वर्ष 2023-24 में 9.1 फीसदी था।
भारत को तुरंत करना होगा ये काम
आरबीआई के सोने के भंडार में बढ़ोतरी की बात करें तो वित्त वर्ष 2024-25 में इसमें 25 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई। वहीं, 10 अक्टूबर 2025 तक वित्त वर्ष 2025-26 में यह बढ़ोतरी 27 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण सोने के मूल्यांकन में हुई वृद्धि है। मात्रा के हिसाब से देखें तो केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2025-26 (अप्रैल-सितंबर) में सिर्फ 0.6 टन सोना खरीदा। जबकि वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-सितंबर) में यह आंकड़ा 31.5 टन था।
भारत में सोने का खनन बहुत सीमित है। इसके कारण देश को सोने के आयात पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारत में सिर्फ 1,627 किलोग्राम सोने का खनन हुआ। यह दिखाता है कि सोने की मांग को पूरा करने के लिए आयात कितना जरूरी है। इन सब बातों को देखते हुए सोने की बढ़ती कीमतों और भारत की सोने पर निर्भरता को देखते हुए एक मजबूत और व्यापक राष्ट्रीय नीति की तत्काल जरूरत है। यह नीति न केवल देश की आर्थिक स्थिरता को मजबूत करेगी, बल्कि सोने के व्यापार और उसके इस्तेमाल को भी बेहतर दिशा देगी।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक अनुसंधान विभाग ने 'कमिंग ऑफ (ए टर्बुलेंट) एज: द ग्रेट ग्लोबल गोल्ड रश' नाम से रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में चल रहे भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक अनिश्चितता और अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने की वजह से सोने की कीमत ें नई ऊंचाइयों पर पहुंच रही हैं। साल 2025 में अब तक सोने की कीमतों में 50 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। अक्टूबर में कुछ दिनों के लिए सोने की कीमत 4,000 डॉलर प्रति औंस से नीचे चली गई थी। लेकिन, नवंबर में यह फिर से 4,000 डॉलर प्रति औंस के पार निकल गई।
सोने की घरेलू सप्लाई बहुत कम
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में सोने की घरेलू सप्लाई कुल सोने की जरूरत का बहुत छोटा हिस्सा ही पूरा कर पाती है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुमान के अनुसार, 2024 में भारत की कुल सोने की सप्लाई में आयात का हिस्सा लगभग 86 फीसदी रहेगा। भारत सोने के प्रति अपने गहरे सांस्कृतिक लगाव, निवेश की चाहत और महंगाई से बचने और सुरक्षित निवेश जैसे आर्थिक कारणों से सोने के सबसे बड़े बाजारों में से एक है।
2024 में भारत में सोने की कुल मांग बढ़कर 802.8 टन हो गई। यह दुनिया की कुल सोने की मांग का 26 फीसदी है। इस मांग के साथ भारत चीन के बाद सोने की खपत के मामले में दूसरे स्थान पर आ गया है। चीन की सोने की उपभोक्ता मांग 815.4 टन थी।
चीन ने बना ली है नेशनल पॉलिसी
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की सोने को लेकर एक राष्ट्रीय नीति है। इसका एक खास मकसद है। यह नीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने के व्यापार, उसके भंडारण, मूल्यांकन और इस्तेमाल के तरीकों को बेहतर बनाने के लिए एक विस्तृत योजना पेश करती है। यह नीति कई आर्थिक और भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं को एक साथ पूरा करने के लिए एक तालमेल वाला तरीका दिखाती है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अमेरिका और जर्मनी जैसे देश अपने कुल भंडार का 77 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सोने के रूप में रखते हैं। वहीं, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2025-26 (10 अक्टूबर तक) में अपने भंडार का 15.2 फीसदी सोना रखा। इससे पहले वित्त वर्ष 2024-25 में यह 13.8 फीसदी और वित्त वर्ष 2023-24 में 9.1 फीसदी था।
भारत को तुरंत करना होगा ये काम
आरबीआई के सोने के भंडार में बढ़ोतरी की बात करें तो वित्त वर्ष 2024-25 में इसमें 25 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई। वहीं, 10 अक्टूबर 2025 तक वित्त वर्ष 2025-26 में यह बढ़ोतरी 27 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण सोने के मूल्यांकन में हुई वृद्धि है। मात्रा के हिसाब से देखें तो केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2025-26 (अप्रैल-सितंबर) में सिर्फ 0.6 टन सोना खरीदा। जबकि वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-सितंबर) में यह आंकड़ा 31.5 टन था।
भारत में सोने का खनन बहुत सीमित है। इसके कारण देश को सोने के आयात पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारत में सिर्फ 1,627 किलोग्राम सोने का खनन हुआ। यह दिखाता है कि सोने की मांग को पूरा करने के लिए आयात कितना जरूरी है। इन सब बातों को देखते हुए सोने की बढ़ती कीमतों और भारत की सोने पर निर्भरता को देखते हुए एक मजबूत और व्यापक राष्ट्रीय नीति की तत्काल जरूरत है। यह नीति न केवल देश की आर्थिक स्थिरता को मजबूत करेगी, बल्कि सोने के व्यापार और उसके इस्तेमाल को भी बेहतर दिशा देगी।
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