हिन्दी फिल्मों के 'ही-मैन', बॉलीवुड के एक्शन किंग धर्मेन्द्र ब्रीच कैंडी अस्पताल से वापस घर लौट चुके हैं और उनके फैन्स और अपनों ने चैन की सांस ली। हाल ही में सांस की तकलीफ के बाद हॉस्पिटलाइज हुए धर्मेंद्र के लिए पूरा देश प्रार्थना कर रहा था और ऊपर वाले ने आखिर सुन ली। फिलहाल उनका घर में इलाज चल रहा है। इस इंडस्ट्री के सुपरस्टार कहे जानेवाले धर्मेंद्र ने कभी इसी इंडस्ट्री में कदम रखने के लिए उन्होंने फोटोग्राफर के सामने मिन्नतें की थीं। एक ऐसा ही किस्सा धर्मेन्द्र ने अपने एक इंटरव्यू में सुनाया था।
धर्मेन्द्र ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था, 'ये एक ऐसा ख्वाब है जो कई लोग देखते हैं।' उन्होंने कहा था, ' नौकरी करता था मैं। नौकरी करता, साइकिल पर आता-जाता। फिल्मी पोस्टर्स में अपनी झलक देखता। रातों का जागता। अनहोने ख्वाब देखता और सुबह उठकर आईने से पूछता- मैं दिलीप कुमार बन सकता हूं क्या?'
'दिलीप कुमार मेरे दिल और दिमाग पर छा चुके थे'
आर जे अनमोल से हुई बातचीत में एक बार धर्मेन्द्र ने अपने शुरुआती दिनों के इन पन्नों को कुछ इस कदर खोला कि कहानियां निकलती चली गईं। उन्होंने कहा था, 'दिलीप कुमार मेरे दिल और दिमाग पर छा चुके थे। उस वक्त तो हमारे यहां लड़कों को भी फिल्म लाइन में जाने की इजाजत नहीं थी साहब। कुछ ज्यादा ही इज्जत से देखते थे।'
मां ने दी सलाह, कहा- अर्जी भेज दे
उन्होंने आगे कहा, 'तो डर लगता था कि ये सब किससे कहूं। मां से कहने गया कि मुझे बॉम्बे (मुंबई) जाना है, दिल कर रहा है, मुझे एक्टर बनना है। दिलीप साहब हैं न...मां को भी एक फिल्म दिखा दी। वो कहती हैं- जाना मत तू, कोई अर्जी भेज दे। वो तुझे बुला लेंगे। अब मां को कैसे बताऊं कि अर्जी से थोड़े ही कोई एक्टर बनते हैं। पर मालिक ने मेरी मां की सुनी होगी। फिल्मफेयर में एक अर्जी की शक्ल में छप कर आ गया कि बिमल रॉय और गुरु दत्त को नए टैलेंट, नए चेहरे की जरूरत है।'
'जहां मैं नौकरी करता था, वहां एक लेटर बॉक्स था'
एक्टर ने आगे कहा, 'हमारे वहां जान मोहम्मद एक फोटोग्राफर थे। मैंने कहा- जान, मेरे ऐसे फोटो खींच कि बस देखते ही रह जाएं वो कि भाई बुला लो इस आदमी को। तो जान मोहम्मद ने तस्वीरें खींची, अब जहां मैं काम करता था, नौकरी करता था, वहां एक लेटर बॉक्स था। उसमें उसकी रजिस्ट्री करके, ऊपर वाले को याद करके डाल दिया। और फिर इंतजार की घड़ियां शुरू हो गईं। फिर इंतजार करते-करते लगा कि नहीं बुलाएंगे।'
'खत देखकर शाम तक मेरा गला बंद होने लगा'
उन्होंने कहा, 'कुछ हफ्ते बाद मैं साइकल पर जा रहा था, उधर से एक दूसरा लड़का आ रहा था। कहने लगा- चिट्ठी आई है। कहता है- फिल्मफेयर वालों का खत आ गया है, तुम्हें बुलाया है। मैंने खोला, पढ़ा देखा बार-बार कि कहीं नकली कंपनियां हों, उनका चो नहीं। ये टाइम्स ऑफ इंडिया का ही है। और उसमें लिखा था कि आपको फाइव स्टार होटल में रखेंगे, आपको फर्स्ट क्लास का टिकट देंगे..और भी कई बातें थीं। मुझे इन सब चीजों की फीलिंग नहीं थी, लेकिन वो खत देखकर शाम तक मेरा गला बंद होने लगा। तो मुझे लगा कि पहुंच जाऊंगा मैं? एक्टर बन जाऊंगा? यार मुझे कुछ हो न जाए।'
इस तरह फिल्मों में आना हुआ
धर्मेंद्र ने कहा, 'मैंने मां को कहा कि मेरा गला चोक हो रहा है। वो मुझे हॉस्पिटल लेकर गईं। उन्होंने देखा कि गले में तो कुछ नहीं, सब ठीक है। वो दरअसल एंजाइटी थी। खैर, इस तरह से हमारा आना हुआ।'
धर्मेन्द्र ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था, 'ये एक ऐसा ख्वाब है जो कई लोग देखते हैं।' उन्होंने कहा था, ' नौकरी करता था मैं। नौकरी करता, साइकिल पर आता-जाता। फिल्मी पोस्टर्स में अपनी झलक देखता। रातों का जागता। अनहोने ख्वाब देखता और सुबह उठकर आईने से पूछता- मैं दिलीप कुमार बन सकता हूं क्या?'
'दिलीप कुमार मेरे दिल और दिमाग पर छा चुके थे'
आर जे अनमोल से हुई बातचीत में एक बार धर्मेन्द्र ने अपने शुरुआती दिनों के इन पन्नों को कुछ इस कदर खोला कि कहानियां निकलती चली गईं। उन्होंने कहा था, 'दिलीप कुमार मेरे दिल और दिमाग पर छा चुके थे। उस वक्त तो हमारे यहां लड़कों को भी फिल्म लाइन में जाने की इजाजत नहीं थी साहब। कुछ ज्यादा ही इज्जत से देखते थे।'
मां ने दी सलाह, कहा- अर्जी भेज दे
उन्होंने आगे कहा, 'तो डर लगता था कि ये सब किससे कहूं। मां से कहने गया कि मुझे बॉम्बे (मुंबई) जाना है, दिल कर रहा है, मुझे एक्टर बनना है। दिलीप साहब हैं न...मां को भी एक फिल्म दिखा दी। वो कहती हैं- जाना मत तू, कोई अर्जी भेज दे। वो तुझे बुला लेंगे। अब मां को कैसे बताऊं कि अर्जी से थोड़े ही कोई एक्टर बनते हैं। पर मालिक ने मेरी मां की सुनी होगी। फिल्मफेयर में एक अर्जी की शक्ल में छप कर आ गया कि बिमल रॉय और गुरु दत्त को नए टैलेंट, नए चेहरे की जरूरत है।'
'जहां मैं नौकरी करता था, वहां एक लेटर बॉक्स था'
एक्टर ने आगे कहा, 'हमारे वहां जान मोहम्मद एक फोटोग्राफर थे। मैंने कहा- जान, मेरे ऐसे फोटो खींच कि बस देखते ही रह जाएं वो कि भाई बुला लो इस आदमी को। तो जान मोहम्मद ने तस्वीरें खींची, अब जहां मैं काम करता था, नौकरी करता था, वहां एक लेटर बॉक्स था। उसमें उसकी रजिस्ट्री करके, ऊपर वाले को याद करके डाल दिया। और फिर इंतजार की घड़ियां शुरू हो गईं। फिर इंतजार करते-करते लगा कि नहीं बुलाएंगे।'
'खत देखकर शाम तक मेरा गला बंद होने लगा'
उन्होंने कहा, 'कुछ हफ्ते बाद मैं साइकल पर जा रहा था, उधर से एक दूसरा लड़का आ रहा था। कहने लगा- चिट्ठी आई है। कहता है- फिल्मफेयर वालों का खत आ गया है, तुम्हें बुलाया है। मैंने खोला, पढ़ा देखा बार-बार कि कहीं नकली कंपनियां हों, उनका चो नहीं। ये टाइम्स ऑफ इंडिया का ही है। और उसमें लिखा था कि आपको फाइव स्टार होटल में रखेंगे, आपको फर्स्ट क्लास का टिकट देंगे..और भी कई बातें थीं। मुझे इन सब चीजों की फीलिंग नहीं थी, लेकिन वो खत देखकर शाम तक मेरा गला बंद होने लगा। तो मुझे लगा कि पहुंच जाऊंगा मैं? एक्टर बन जाऊंगा? यार मुझे कुछ हो न जाए।'
इस तरह फिल्मों में आना हुआ
धर्मेंद्र ने कहा, 'मैंने मां को कहा कि मेरा गला चोक हो रहा है। वो मुझे हॉस्पिटल लेकर गईं। उन्होंने देखा कि गले में तो कुछ नहीं, सब ठीक है। वो दरअसल एंजाइटी थी। खैर, इस तरह से हमारा आना हुआ।'
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