आशीष शर्मा, यमुनानगर: हरियाणा के यमुनानगर के बिलासपुर इलाके में चल रहे ऐतिहासिक कपाल मोचन मेले में हर साल हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। भक्ति, स्नान और दान के बीच इस मेले की एक परंपरा सबसे अलग है। यह परंपरा बुराई के प्रति गुस्से का इजहार करने के साथ जोड़ कर देखी जाती है। कपाल मोचन से करीब चार किलोमीटर दूर गांव संधाए स्थित है। इसी गांव में मिलता है प्राचीन टीला जो इन दिनों विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है। कपाल मोचन के बाद वापिस जाते हुए श्रद्धालु अपने हाथों में जूते, चप्पल और पत्थर लेकर यहां पहुंचते हैं। पूरे जोश के साथ वो इस टीले पर मारते हैं। कहते हैं, ऐसा करके वे क्रूर राजा जरासंध के प्रति अपने गुस्से का इजहार करते हैं।
क्या है मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह परंपरा द्वापर युग से जुड़ी है। कहा जाता है कि जरासंध एक अत्याचारी राजा था जो नई दुल्हनों के साथ अमानवीय अत्याचार करता था। जब माता सती उस राज्य में दुल्हन बनकर पहुंचीं, तो उन्होंने जरासंध के बुलावे को अस्वीकार किया। नदी में स्नान का बहाना कर वे महल से निकलीं और राजा को श्राप देकर वहीं अपने प्राण त्याग दिए।
टीले में जाकर पत्थर मारते हैं लोग
माना जाता है कि जहां माता सती ने बलिदान दिया, वहीं आज सती माता का मंदिर स्थित है। मेले में आने वाले श्रद्धालु पहले मंदिर में दर्शन करते हैं, फिर इस टीले पर जाकर जूते-चप्पल और पत्थर मारते है। यह श्रद्धालुओं का तरीका है अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने और सती माता के साहस को प्रणाम करने का। स्थानीय लोगों का कहना है कि आस्था की यह अनोखी परंपरा आज भी जीवित है जहां जूते-चप्पल मारना सिर्फ बुराई के प्रति गुस्से का इजहार ही नहीं बल्कि एक संदेश भी है कि भले साल बदल जाए या युग बुराई को हर सदी में इसी तरह अस्वीकार किया जाता रहेगा। यह अनोखी रस्म कपाल मोचन मेले की सिर्फ एक मान्यता नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और प्रतिशोध की अद्भुत गाथा सुनाती है।
क्या है मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह परंपरा द्वापर युग से जुड़ी है। कहा जाता है कि जरासंध एक अत्याचारी राजा था जो नई दुल्हनों के साथ अमानवीय अत्याचार करता था। जब माता सती उस राज्य में दुल्हन बनकर पहुंचीं, तो उन्होंने जरासंध के बुलावे को अस्वीकार किया। नदी में स्नान का बहाना कर वे महल से निकलीं और राजा को श्राप देकर वहीं अपने प्राण त्याग दिए।
टीले में जाकर पत्थर मारते हैं लोग
माना जाता है कि जहां माता सती ने बलिदान दिया, वहीं आज सती माता का मंदिर स्थित है। मेले में आने वाले श्रद्धालु पहले मंदिर में दर्शन करते हैं, फिर इस टीले पर जाकर जूते-चप्पल और पत्थर मारते है। यह श्रद्धालुओं का तरीका है अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने और सती माता के साहस को प्रणाम करने का। स्थानीय लोगों का कहना है कि आस्था की यह अनोखी परंपरा आज भी जीवित है जहां जूते-चप्पल मारना सिर्फ बुराई के प्रति गुस्से का इजहार ही नहीं बल्कि एक संदेश भी है कि भले साल बदल जाए या युग बुराई को हर सदी में इसी तरह अस्वीकार किया जाता रहेगा। यह अनोखी रस्म कपाल मोचन मेले की सिर्फ एक मान्यता नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और प्रतिशोध की अद्भुत गाथा सुनाती है।
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