पटना: मोकामा टाल के दबंग नेता और राजद से जुड़े रहे दुलारचंद यादव की चुनाव प्रचार के दौरान हुई हत्या ने बिहार की राजनीति में उबाल ला दिया है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए सियासी गलियारों को गरमा दिया है। शिवानंद तिवारी ने 1991 के उस दौर को याद किया, जब नीतीश कुमार बाढ़ लोकसभा सीट से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे थे। तब, लालू यादव को लेकर दुलारचंद यादव का समर्थन हासिल करने के लिए नीतीश कुमार उनके गांव गए थे। दुलारचंद यादव का मोकामा टाल इलाके में खासा प्रभाव था, जहां वो कुछ बूथों पर एकतरफा वोट डलवाने की हैसियत रखते थे।
अतीत की सियासत फिर वर्तमान का दुखद अंतशिवानंद तिवारी ने अपने पोस्ट में बताया कि कैसे नीतीश कुमार के जोर देने पर लालू यादव भी दुलारचंद से मिलने को राजी हुए थे, क्योंकि नीतीश उनकी मदद से उन प्रभावशाली बूथों पर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे। दुलारचंद यादव इस बार जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के लिए प्रचार कर रहे थे, हालांकि वो राजद के नेता थे और पीयूष को राजद से टिकट दिलाने की कोशिश में थे। नीतीश कुमार 1991 में बाढ़ से चुनाव जीते और लगातार पांच बार सांसद रहे, बाद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बने। शिवानंद तिवारी ने लालू और नीतीश, दोनों के साथ राजनीति कर चुके दुलारचंद को याद करते हुए उनके दुखद अंत पर फेसबुक पोस्ट किया है।
शिवानंद तिवारी का पूरा फेसबुक पोस्ट पढ़िए'मोकमा सुर्खियों में है। नामी नामी लोग आमने सामने हैं। कई क्षेत्रों में उम्मीदवार दर्जनों गाड़ियों का काफिला अपने पीछे लेकर चल रहे हैं। उन गाड़ियों में मारक हथियारों से लैस उनके गुर्गे होते हैं। आज तक बिहार के किसी भी चुनाव में ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला था। स्वाभाविक है कि ऐसा दृश्य सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों के साथ ज्यादा देखने को मिल रहा है। चुनाव आयोग का तो कहना ही क्या? वह तो सरकार के साथ हमबिस्तर है। जो वहां वारदात हुई उसमें दुलारचंद यादव मारे गये। उनका फोटो देखा। उनके खास मूंछ के साथ। उस मूंछ के बगैर मैं दुलारचंद जी की कल्पना नहीं कर सकता था।
पहली मर्तबा 1991 के लोकसभा चुनाव के समय दुलार चंद जी को देखा था। नीतीश जी लोकसभा का अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे थे। उन दिनों हम सभी लोग एक साथ थे। मोकामा टाल के इलाके में शायद 'ताड़ पर' का इलाका दुलारचंद जी के प्रभाव में था। वहां के तीन-चार बूथ पर वे एक तरफा वोट डलवा देते थे। हम लोग साथ ही बैठे थे। नीतीश जी ने लालू जी को कहा कि चलकर दुलार चंद से मिल लिया जाए। उनके प्रभाव का वोट भी सुरक्षित कर लिया जाए। लालू जी ने कहा कि क्यों आप दुलार चंद को इतना महत्व दे रहे हैं! लेकिन नीतीश जी तो अलग मिजाज वाले ठहरे। उन्होंने कहा कि 'अरे भाई वहां जो तीन चार बूथ है उसको भी 'प्लग' कर दिया जाए।
नीतीश जी का इसरार ऐसा था तो तय हो गया कि दुलारचंद जी के यहां चला जाए। बसनुमा रथ में कारवां निकला। उसमें पत्रकारों की टोली भी शामिल हो गई। कैमरा वाले भी थे। पत्रकारों में अरविंद नारायण दास भी थे। उन्होंने ही आद्री की शुरुआत की थी। कारवां 'ताड़ तर' पहुंचा। हजारों की भीड़ वहां जमा थी। दुलारचंद ने सबका सत्कार किया और नीतीश जी के सर पर पगड़ी बांधी। लालू जी के सर पर बांधा ही। फोटो पत्रकारों को अच्छी तस्वीर मिल गई। मुझे याद है कि उसके कुछ ही दिनों बाद गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा था. वहाँ हिंदुस्तान टाइम्स के स्टाल के सामने नीतीश कुमार को पगड़ी बाँधते दुलार चंद जी की वही बड़ी तस्वीर टंगी थी। अरविंद नारायण दास ने उस प्रकरण पर दिल्ली के अखबार में आलोचनात्मक लेख भी लिखा था। उन्हीं दुलारचंद जी का मृत शरीर मीडिया में देखकर ये घटना याद आ गई। शिवानन्द।'
अतीत की सियासत फिर वर्तमान का दुखद अंतशिवानंद तिवारी ने अपने पोस्ट में बताया कि कैसे नीतीश कुमार के जोर देने पर लालू यादव भी दुलारचंद से मिलने को राजी हुए थे, क्योंकि नीतीश उनकी मदद से उन प्रभावशाली बूथों पर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे। दुलारचंद यादव इस बार जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के लिए प्रचार कर रहे थे, हालांकि वो राजद के नेता थे और पीयूष को राजद से टिकट दिलाने की कोशिश में थे। नीतीश कुमार 1991 में बाढ़ से चुनाव जीते और लगातार पांच बार सांसद रहे, बाद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बने। शिवानंद तिवारी ने लालू और नीतीश, दोनों के साथ राजनीति कर चुके दुलारचंद को याद करते हुए उनके दुखद अंत पर फेसबुक पोस्ट किया है।
शिवानंद तिवारी का पूरा फेसबुक पोस्ट पढ़िए'मोकमा सुर्खियों में है। नामी नामी लोग आमने सामने हैं। कई क्षेत्रों में उम्मीदवार दर्जनों गाड़ियों का काफिला अपने पीछे लेकर चल रहे हैं। उन गाड़ियों में मारक हथियारों से लैस उनके गुर्गे होते हैं। आज तक बिहार के किसी भी चुनाव में ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला था। स्वाभाविक है कि ऐसा दृश्य सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों के साथ ज्यादा देखने को मिल रहा है। चुनाव आयोग का तो कहना ही क्या? वह तो सरकार के साथ हमबिस्तर है। जो वहां वारदात हुई उसमें दुलारचंद यादव मारे गये। उनका फोटो देखा। उनके खास मूंछ के साथ। उस मूंछ के बगैर मैं दुलारचंद जी की कल्पना नहीं कर सकता था।
पहली मर्तबा 1991 के लोकसभा चुनाव के समय दुलार चंद जी को देखा था। नीतीश जी लोकसभा का अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे थे। उन दिनों हम सभी लोग एक साथ थे। मोकामा टाल के इलाके में शायद 'ताड़ पर' का इलाका दुलारचंद जी के प्रभाव में था। वहां के तीन-चार बूथ पर वे एक तरफा वोट डलवा देते थे। हम लोग साथ ही बैठे थे। नीतीश जी ने लालू जी को कहा कि चलकर दुलार चंद से मिल लिया जाए। उनके प्रभाव का वोट भी सुरक्षित कर लिया जाए। लालू जी ने कहा कि क्यों आप दुलार चंद को इतना महत्व दे रहे हैं! लेकिन नीतीश जी तो अलग मिजाज वाले ठहरे। उन्होंने कहा कि 'अरे भाई वहां जो तीन चार बूथ है उसको भी 'प्लग' कर दिया जाए।
नीतीश जी का इसरार ऐसा था तो तय हो गया कि दुलारचंद जी के यहां चला जाए। बसनुमा रथ में कारवां निकला। उसमें पत्रकारों की टोली भी शामिल हो गई। कैमरा वाले भी थे। पत्रकारों में अरविंद नारायण दास भी थे। उन्होंने ही आद्री की शुरुआत की थी। कारवां 'ताड़ तर' पहुंचा। हजारों की भीड़ वहां जमा थी। दुलारचंद ने सबका सत्कार किया और नीतीश जी के सर पर पगड़ी बांधी। लालू जी के सर पर बांधा ही। फोटो पत्रकारों को अच्छी तस्वीर मिल गई। मुझे याद है कि उसके कुछ ही दिनों बाद गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा था. वहाँ हिंदुस्तान टाइम्स के स्टाल के सामने नीतीश कुमार को पगड़ी बाँधते दुलार चंद जी की वही बड़ी तस्वीर टंगी थी। अरविंद नारायण दास ने उस प्रकरण पर दिल्ली के अखबार में आलोचनात्मक लेख भी लिखा था। उन्हीं दुलारचंद जी का मृत शरीर मीडिया में देखकर ये घटना याद आ गई। शिवानन्द।'
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