नोएडा: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नोएडा स्थित भारत सरकार की टकसाल में काम करने वाले एक कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा और विभागीय जांच एकसाथ चलाने की अनुमति दे दी है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि कर्मचारी टकसाल में सिक्कों की ढलाई के काम में लगा है। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर है। निष्पक्ष जांच से संस्था में पारदर्शिता आएगी और कर्मचारियों में विश्वास पैदा होगा। साथ ही कोर्ट ने विभागीय जांच और निलंबन पर रोक लगाने वाली याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने आनंद कुमार की याचिका पर दिया।   
   
हाई कोर्ट ने नोएडा स्थित इंडिया गवर्नमेंट मिंट में असिस्टेंट ग्रेड तृतीय के पद पर कार्यरत आनंद कुमार की याचिका पर सुनवाई की। बता दें कि 19 दिसंबर 2024 को ड्यूटी के दौरान सीआईएसएफ के सुरक्षा कर्मियों ने आनंद कुमार को 20 रुपये के 13 सिक्कों के साथ पकड़ा था। सीआईएसएफ के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर हरपाल सिंह ने 20 दिसंबर 2024 को पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वहीं, घटना के बाद कर्मचारी आनंद कुमार को निलंबित कर दिया गया था और विभागीय जांच शुरू हो गई थी।
     
आनंद कुमार की ओर से हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका में निलंबन रद्द करने, जांच पर रोक लगाने और आपराधिक मुकदमे के समापन तक कार्रवाई स्थगित करने की मांग की थी। आनंद कुमार की ओर से तर्क दिया गया था कि आपराधिक और विभागीय प्रक्रियाएं एकसाथ नहीं चल सकती हैं। उनकी इस दलील को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि अनुशासनात्मक जांच को अपराध मुकदमे के निपटारे का इंतजार करवाना उचित नहीं है, खासकर जब संस्था की संवेदनशीलता को देखते हुए त्वरित कार्रवाई जरूरी हो। विभाग को तीन महीने में जांच पूरी करने का निर्देश कोर्ट ने दिया।
  
हाई कोर्ट ने नोएडा स्थित इंडिया गवर्नमेंट मिंट में असिस्टेंट ग्रेड तृतीय के पद पर कार्यरत आनंद कुमार की याचिका पर सुनवाई की। बता दें कि 19 दिसंबर 2024 को ड्यूटी के दौरान सीआईएसएफ के सुरक्षा कर्मियों ने आनंद कुमार को 20 रुपये के 13 सिक्कों के साथ पकड़ा था। सीआईएसएफ के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर हरपाल सिंह ने 20 दिसंबर 2024 को पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वहीं, घटना के बाद कर्मचारी आनंद कुमार को निलंबित कर दिया गया था और विभागीय जांच शुरू हो गई थी।
आनंद कुमार की ओर से हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका में निलंबन रद्द करने, जांच पर रोक लगाने और आपराधिक मुकदमे के समापन तक कार्रवाई स्थगित करने की मांग की थी। आनंद कुमार की ओर से तर्क दिया गया था कि आपराधिक और विभागीय प्रक्रियाएं एकसाथ नहीं चल सकती हैं। उनकी इस दलील को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि अनुशासनात्मक जांच को अपराध मुकदमे के निपटारे का इंतजार करवाना उचित नहीं है, खासकर जब संस्था की संवेदनशीलता को देखते हुए त्वरित कार्रवाई जरूरी हो। विभाग को तीन महीने में जांच पूरी करने का निर्देश कोर्ट ने दिया।
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