—असि रामेश्वर मठ में शुरू हुआ सात दिवसीय श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ
वाराणसी,05 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . Uttar Pradesh के वाराणसी असि स्थित काशीधर्मपीठ, रामेश्वर मठ में sunday से श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ सप्ताह की शुरूआत हुई. कथा के पहले दिन काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज के कहा कि नारद जी ने महर्षि व्यास जी को बताया कि सच्चिदानंद भाव सद्भावना की स्थापना के लिए भागवत की रचना करें. जिससे लोगों के हृदय में सद्भावना हो, हृदय में श्रद्धाभाव, भक्ति-प्रेम जागृत हो और विश्व कल्याण हो.
उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में सच्चिदानंद की अभिव्यक्ति होती है. लोगों के हृदय सद्भाव से सम्पन्न और उत्तम भाव होते है. नारद जी के कहने पर वेदव्यास जी ने लोक मंगल के लिए भागवत की रचना की थी. भागवत के मुख्य श्रोता राजा परीक्षित हैं. जिन्हें एक ऋषि का श्राप लगा हुआ था कि आज से सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी. राजा परीक्षित पांडव वंशी थे, पांडव भगवान के भक्त थे. श्राप को गदा नहीं पिट सकती, सुदर्शन चक्र नहीं काट सकता, वाणी के श्राप को वाणी की ही आवश्यकता पड़ेगी. श्रीमद्भागवत के श्रवण से ही सात दिन में राजा परीक्षित श्राप से मुक्ति हो गए. सम्पूर्ण ऐश्वर्यशाली वसुंधरा का साम्राज्य होते हुए भी राजा परीक्षित सुखदेव जी के सामने नतमस्तक हो गये. भागवत मुक्ति शास्त्र है, श्रवण करने से ही मुक्ति सुलभ हो जाती है. भगवान नारायण की नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न होते हैं, ब्रह्मा जी ने तपस्या की भगवान नारायण प्रकट हो कर के ब्रह्मा जी को भागवत धर्म का उपदेश करते हैं. शंकराचार्य ने कहा कि संशय की निवृत्ति ज्ञान से ही होती है. श्रवण के बिना किसी भी अज्ञात वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकता है. अखिल गुरु नारायण ही हैं. भगवान नारायण जी ने ब्रह्मा जी को ज्ञान दिया कि सत तत्व क्या है, जगत क्या है, माया क्या है और आत्मा क्या है. इन चारों का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है. राजा परीक्षित ने प्रश्न किया कि जिस व्यक्ति की मृत्यु निश्चित हो जाय कि सात दिन में मरना है तो उसका कर्तव्य क्या है. सुखदेव जी ने बताया कि भगवान का चिंतन करने से मन राग-द्वेष से मुक्त हो जाता है. भगवान के चौबीस अवतारों का वर्णन भागवत में किया गया है, दुष्टों का दमन साधु पुरुषों का रक्षण भगवान के विशेष कार्य हैं. सनातन धर्म में एक ही परमात्मा अनेक नामरूपों से वर्णन किया गया है. भगवान के लीला चरित्रों को श्रवण करके कोई भी मनुष्य अन्तःकरण को पवित्र कर सकता है. कथा के पूर्व परम्परानुसार गुरु पीठ और चरण पादुका का पूजन किया गया. कथा के आयोजक पुण्डरीक पाण्डेय, शिवाय फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने शंकराचार्य स्वामीनारायणा नंद तीर्थ का स्वागत किया.
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
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