राजस्थान की धरती वीरता, त्याग और आस्था की अनूठी कहानियों से भरी पड़ी है। इन्हीं कहानियों में से एक है उदयपुर के भव्य सिटी पैलेस की स्थापना से जुड़ी वह रोचक घटना, जिसमें एक साधु के वचन ने पूरे इतिहास की दिशा बदल दी थी। आज जो उदयपुर अपनी झीलों, महलों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है, उसकी नींव एक साधु की तपस्या, एक धूणी और एक राजा के श्रद्धा भाव पर टिकी है। आइए, इस अद्भुत इतिहास को विस्तार से जानते हैं।
चित्तौड़ की वीरगाथा से उदयपुर की ओर
16वीं शताब्दी का भारत लगातार आक्रमणों और युद्धों का गवाह बन रहा था। राजस्थान का गौरव, चित्तौड़गढ़, कई युद्धों में अपनी वीरता दिखा चुका था। जब मुगलों के लगातार हमलों के चलते चित्तौड़ दुर्ग को छोड़ने की नौबत आई, तब मेवाड़ के शासक महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने अपने राज्य और प्रजा की रक्षा के लिए एक नये सुरक्षित स्थान की तलाश शुरू की।यह तलाश उन्हें अरावली पर्वतमाला की गोद में बसे एक सुंदर स्थान तक ले आई, जहाँ चारों ओर हरियाली, झीलें और प्राकृतिक सुरक्षा थी। लेकिन यह निर्णय केवल भौगोलिक सुंदरता देखकर नहीं लिया गया था, बल्कि इसमें एक साधु की भविष्यवाणी और एक धूणी का बड़ा योगदान था।
धूणी और साधु की भविष्यवाणी
कहानी के अनुसार, जब महाराणा उदयसिंह इस नए स्थान का निरीक्षण कर रहे थे, तभी उन्हें एक पर्वतीय क्षेत्र में एक साधु ध्यानमग्न अवस्था में तपस्या करते हुए दिखाई दिए। साधु एक धूणी (अग्नि का अखंडित धुआं) के पास बैठे थे और गहन साधना में लीन थे।महाराणा ने साधु के प्रति सम्मान दिखाते हुए प्रणाम किया और इस स्थान के बारे में उनका आशीर्वाद और राय मांगी। साधु ने ध्यान से महाराणा को देखा और कहा,"यह भूमि दिव्य है। यदि आप यहाँ अपनी राजधानी बसाते हैं, तो आपकी वंशावली चिरकाल तक फलेगी-फूलेगी और राज्य सुरक्षित रहेगा।"साधु के वचनों को महाराणा ने ईश्वरीय आदेश के समान माना और तुरंत निर्णय लिया कि यहीं एक नये शहर और महल का निर्माण किया जाएगा।
उदयपुर सिटी पैलेस की नींव
सन् 1553 में, महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने आधिकारिक तौर पर उदयपुर नगर और सिटी पैलेस की नींव रखी। सिटी पैलेस का निर्माण कार्य कई वर्षों तक चला और यह राजस्थान के सबसे बड़े महलों में से एक बन गया।सिटी पैलेस का निर्माण न केवल वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत था, बल्कि इसमें सैन्य रणनीति भी समाहित थी। महल का स्थान इस तरह चुना गया कि वह पहाड़ियों से घिरा हो, और पिछोला झील उसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करे। महल परिसर के अंदर कई भवन, आंगन, मंदिर और बगीचे बने, जो राजसी वैभव के प्रतीक हैं।
धूणी का ऐतिहासिक महत्व
आज भी, उदयपुर के इतिहास में उस साधु की धूणी का विशेष स्थान है। कहा जाता है कि उस स्थान पर एक स्मृति चिन्ह या छोटा मंदिर स्थापित किया गया था, जो उस दिव्य धूणी की याद दिलाता है। यह धूणी उदयपुर के अस्तित्व और विकास का प्रतीक बन गई।मेवाड़ के लोगों के लिए यह घटना केवल इतिहास नहीं, बल्कि श्रद्धा और आस्था की मिसाल है, जो दिखाती है कि कैसे एक साधु के आशीर्वाद और एक राजा के विश्वास ने इतिहास को नया मोड़ दिया।
महाराणा उदयसिंह द्वितीय की दूरदर्शिता
महाराणा उदयसिंह केवल एक वीर योद्धा ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी शासक भी थे। चित्तौड़ के भीषण युद्धों के बाद अपने राज्य और जनता की सुरक्षा के लिए उन्होंने नए स्थान पर राजधानी बसाने का जो निर्णय लिया, वह उनकी दूरदृष्टि का प्रमाण है।उदयपुर की प्राकृतिक स्थिति ने वर्षों तक इसे शत्रुओं के आक्रमणों से बचाए रखा। इसके अलावा, यहां की झीलों ने जल आपूर्ति का समुचित प्रबंध किया, जिससे नगर लगातार विकसित होता रहा।
सिटी पैलेस की आज की स्थिति
आज का उदयपुर सिटी पैलेस एक भव्य पर्यटन स्थल है, जो अपनी राजसी भव्यता और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। महल परिसर में स्थित संग्रहालयों में मेवाड़ की समृद्ध विरासत को सहेज कर रखा गया है। यहाँ के शीश महल, मोती महल, कृष्णा विलास, और बाड़ी महल जैसे हिस्से अद्वितीय वास्तुशिल्प का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।सिटी पैलेस से पिछोला झील का नजारा मंत्रमुग्ध कर देता है और झील के बीच स्थित जग निवास और जग मंदिर भी उस युग की शानदार कलात्मकता के गवाह हैं।
मेवाड़ की आस्था और गौरव का प्रतीक
धूणी की वह पौराणिक घटना आज भी उदयपुरवासियों के लिए गौरव का विषय है। यह कहानी बताती है कि कैसे श्रद्धा, विश्वास और दूरदर्शिता से एक नया इतिहास रचा जा सकता है। महाराणा उदयसिंह का यह निर्णय न केवल मेवाड़ की सुरक्षा का मार्ग बना, बल्कि उदयपुर को भारत के सबसे खूबसूरत शहरों में भी स्थापित कर दिया।आज भी जब कोई पर्यटक उदयपुर सिटी पैलेस के भव्य प्रांगण में प्रवेश करता है, तो अनजाने में ही वह उस धूणी की शक्ति और साधु के वचन की गहराई को महसूस कर सकता है, जिसने इस अद्भुत नगर को जन्म दिया।
निष्कर्ष
उदयपुर सिटी पैलेस के इतिहास में साधु की धूणी और महाराणा उदयसिंह द्वितीय के श्रद्धा भाव का जो समावेश हुआ है, वह भारतीय इतिहास का एक अनमोल अध्याय है। यह हमें सिखाता है कि कभी-कभी एक साधारण दिखने वाली घटना भी पूरे युग का भाग्य बदल सकती है।उदयपुर आज भी अपने राजसी अतीत, आस्था और सुंदरता का जीवंत प्रतीक बना हुआ है, और इसका श्रेय उस साधु के आशीर्वाद और महाराणा की श्रद्धा को अवश्य जाता है।
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