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ब्रह्माजी को मिले श्राप और पुष्कर शहर की स्थापना में क्या है सम्बन्ध ? वीडियो में जानिए सबसे रहस्यमयी पौराणिक कथा

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भारत के प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में देवी-देवताओं से जुड़ी असंख्य कथाएँ मौजूद हैं, जो न केवल आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि संस्कृति और सभ्यता के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऐसी ही एक अद्भुत और रहस्यमयी कथा है देवी सावित्री और ब्रह्माजी के बीच घटित प्रसंग की, जिसने राजस्थान के पुष्कर शहर को एक अनूठा धार्मिक और पौराणिक महत्व प्रदान किया।पुष्कर, जिसे त्रिकालदर्शी तीर्थ भी कहा जाता है, आज एक विश्वप्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। लेकिन इसके उद्भव और विशेष महत्व के पीछे एक बेहद रोचक और भावनात्मक कथा छिपी है। आइए जानें कैसे देवी सावित्री के श्राप ने ब्रह्माजी के लिए स्थायी परिवर्तन लाया और पुष्कर को अनंत आस्था का केंद्र बना दिया।

ब्रह्माजी का यज्ञ और सावित्री का विलंब
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि निर्माण के उपरांत पृथ्वी पर एक पवित्र स्थान खोजने का विचार किया, तो तीन पवित्र पुष्कर सरोवरों का निर्माण किया। इन सरोवरों में सबसे प्रमुख है 'बड़ा पुष्कर', जहाँ आज ब्रह्माजी का विश्व में एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।कथा के अनुसार, ब्रह्माजी ने पुष्कर क्षेत्र को तप और यज्ञ के लिए उपयुक्त पाया और वहाँ एक महायज्ञ करने का निश्चय किया। इस यज्ञ में विधिवत पूजन के लिए उनकी पत्नी देवी सावित्री का उपस्थित रहना आवश्यक था। ब्रह्माजी ने सावित्री को शीघ्र बुलवाया, लेकिन किसी कारणवश देवी सावित्री यज्ञ में समय पर नहीं पहुँच सकीं।यज्ञ की तिथि निकट थी और शुभ मुहूर्त निकला जा चुका था। परिस्थितियों के दबाव में आकर ब्रह्माजी ने यज्ञ की विधि पूरी करने के लिए एक अन्य कन्या 'गायत्री' से विवाह कर लिया और उनके साथ यज्ञ संपन्न कर लिया।

सावित्री का क्रोध और ब्रह्माजी को श्राप
जब देवी सावित्री पुष्कर पहुँचीं और ब्रह्माजी को किसी अन्य के साथ यज्ञ करते हुए देखा, तो उनका क्रोध भड़क उठा। एक पत्नी और देवी के रूप में यह अपमान उनके लिए असहनीय था। आहत होकर उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दे डाला कि भविष्य में पृथ्वी पर उनकी पूजा कहीं भी व्यापक रूप से नहीं होगी। केवल पुष्कर में ही उनकी आराधना की जाएगी।देवी सावित्री का यह श्राप आज भी सत्य प्रतीत होता है, क्योंकि संपूर्ण भारत में ब्रह्माजी के अत्यधिक प्रसिद्ध और नियमित रूप से पूजित मंदिरों की संख्या अत्यंत कम है, जबकि पुष्कर में स्थित ब्रह्मा मंदिर को विशेष धार्मिक महत्ता प्राप्त है।श्राप देने के बाद देवी सावित्री ने पर्वत की ओर प्रस्थान किया और वहीं तपस्या में लीन हो गईं। आज भी पुष्कर में 'सावित्री मंदिर' उस पर्वत पर स्थित है, जहाँ से पूरा पुष्कर शहर देखा जा सकता है। भक्तगण वहां सावित्री माता के दर्शन कर पुण्य अर्जित करते हैं।

गायत्री का उद्भव और पुष्कर का आध्यात्मिक विकास
ब्रह्माजी के विवाह के समय जिन कन्या गायत्री को यज्ञ पत्नी बनाया गया था, वह भी अत्यंत शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं। ब्रह्माजी के साथ यज्ञ में शामिल होकर गायत्री ने भी पुष्कर की पवित्रता को बढ़ाया। माना जाता है कि पुष्कर का वातावरण गायत्री की दिव्यता और ब्रह्मा की सृष्टि शक्ति से आज भी स्पंदित रहता है।इस घटना के बाद पुष्कर केवल एक तीर्थ ही नहीं, बल्कि एक ऊर्जा केंद्र बन गया। यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशाल पुष्कर मेला आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु सरोवर में स्नान कर मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद लेते हैं।

पुष्कर सरोवर की पवित्रता
पौराणिक मान्यता है कि पुष्कर सरोवर का जल किसी भी तीर्थ या सरोवर से अधिक पुण्यदायी माना जाता है। कहते हैं कि यहां एक डुबकी लगाने मात्र से व्यक्ति जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो सकता है। ब्रह्माजी के यज्ञ के परिणामस्वरूप पुष्कर क्षेत्र में चमत्कारी शक्तियाँ उत्पन्न हुईं, जो आज भी यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव कराती हैं।

वर्तमान में पुष्कर का महत्व
आज पुष्कर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ का ब्रह्मा मंदिर, सावित्री माता मंदिर, रंगजी मंदिर, वराह मंदिर, और प्राचीन घाट, सभी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।पुष्कर का आध्यात्मिक वातावरण, रेगिस्तानी धरोहर और जीवंत संस्कृति इसे एक अनोखी पहचान देते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु और विदेशी सैलानी आकर आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।

निष्कर्ष: आस्था और संस्कारों का संगम
देवी सावित्री और ब्रह्माजी की यह कथा केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं है, बल्कि यह हमें संबंधों में सम्मान, समय का महत्व और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना का भी संदेश देती है। पुष्कर नगरी, जो इस कथा का साक्षी है, आज भी श्रद्धा, विश्वास और भारतीय संस्कृति की जीवंत मिसाल बनी हुई है।जहां देवी सावित्री का श्राप ब्रह्माजी की पूजा को सीमित कर गया, वहीं पुष्कर ने अपनी दिव्यता और पवित्रता से संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ाया है। इस अद्भुत कथा में प्रेम, पीड़ा, तपस्या और पुनः उत्थान — सभी का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है।

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