भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक मौजूदा हालात और भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय के नज़रिए पर चर्चा हो रही है.
यह तनाव पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए चुनौती बन गया है. दोनों देशों के पास परमाणु हथियार होने के कारण वैश्विक स्तर पर भी सभी का ध्यान इस पर है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस संघर्ष को ख़त्म करने और शांति बहाल करने की अपील की जा रही है. ईरान और सऊदी अरब, दोनों ही भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं. साथ ही अमेरिका ने कहा है कि ज़रूरत पड़ी तो वो तनाव कम करने में मदद करेगा.
लेकिन सवाल ये है कि क्या ये प्रयास काफ़ी हैं? साथ ही, अमेरिका और चीन जैसे देशों का इस पर क्या रुख़ है, और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों की भूमिका क्या है? यह भी देखने योग्य है कि भारत और पाकिस्तान को किस प्रकार का कूटनीतिक समर्थन मिल रहा है. मध्य पूर्व के देशों ने इस संबंध में क्या रुख़ अपनाया है और इस संघर्ष का दुनिया पर किस तरह का असर हो सकता है.
बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब सवालों पर चर्चा की.
इन सवालों पर चर्चा के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के असोसिएट प्रोफ़ेसर विनीत प्रकाश, मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस की असोसिएट फ़ेलो डॉक्टर प्रियंका सिंह और लंदन से बीबीसी के सीनियर न्यूज़ एडिटर आसिफ़ फ़ारुक़ी शामिल हुए.
तनाव से अमेरिका ने बनाई दूरी
अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष पर अपना रुख़ साफ़ किया है.
उनका कहना है, "हम जो कर सकते हैं वह यह है कि दोनों देशों को तनाव कम करने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करें, लेकिन हम मूल रूप से युद्ध में शामिल नहीं होने जा रहे हैं. यह हमारा काम नहीं है."
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगर वो तनाव कम करने में किसी तरह की मदद कर सकते हैं, तो करेंगे.
कारगिल युद्ध के बाद यह साफ़ हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए उस संघर्ष में अमेरिका के कूटनीतिक दबाव ने अहम भूमिका निभाई थी.
इसी तरह, 2019 में बालाकोट की घटना के दौरान भी यह सामने आया कि अमेरिका ने दोनों देशों पर तनाव कम करने के लिए दबाव डाला था.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि हाल के तनाव पर अमेरिका इतना शांत-सा रुख़ क्यों अपनाए हुए है.
लंदन में मौजूद बीबीसी के सीनियर न्यूज़ एडिटर आसिफ़ फ़ारुक़ी ने कहा, "इस मामले में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हमेशा से भारत का यह नज़रिया रहा है कि वह किसी भी तरह की मध्यस्थता नहीं चाहता. ऐसे में अगर अमेरिका इस वक़्त दखल नहीं दे रहा, या कह रहा है कि वह शामिल नहीं होना चाहता, तो यह भारत के रुख़ का ही समर्थन है."
उन्होंने कहा, "हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो गतिशीलता हाल के समय में बनी है, ख़ासकर डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के रवैये को देखते हुए, तो यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि उनका बयान आगे चलकर न बदल जाए."
अमेरिका के रुख़ पर बात करते हुए जेएनयू में असोसिएट प्रोफ़ेसर विनीत प्रकाश ने कहा, "अमेरिका के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और जेडी वेंस का एक मुख्य मुद्दा यह था कि अमेरिका को बाहर के संघर्षों में शामिल नहीं होना चाहिए. यह सोच शायद भारत और पाकिस्तान के संघर्ष पर भी लागू होती है, यानी अगर दोनों देश आपस में लड़ रहे हैं तो अमेरिका को इससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए."
उन्होंने कहा, "हालांकि, यह बात अलग है कि अगर क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ती है और तनाव और गहराता है, तो इसका नकारात्मक प्रभाव सब पर पड़ सकता है. इसमें चीन भी शामिल हैं. तीनों देशों (भारत, पाकिस्तान और चीन) के पास परमाणु हथियार हैं और तीनों के बीच तनाव के बढ़कर परमाणु युद्ध में बदलने की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. अगर इस दृष्टिकोण से देखें तो इसका दुष्प्रभाव सभी पर पड़ेगा. लेकिन जो वेंस का बयान है, वह कहीं न कहीं इस धारणा से प्रभावित है कि अमेरिका को बाहरी संघर्षों में शामिल नहीं होना चाहिए."
विनीत ने कहा, "वर्तमान में ट्रंप और वेंस की टीम इस पक्ष में है कि अमेरिका की भागीदारी उन जगहों पर कम होनी चाहिए, जहां सीधे अमेरिका का कोई दिलचस्पी नहीं है."
वहीं इस मामले पर मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट में असोसिएट फ़ेलो डॉक्टर प्रियंका सिंह ने कहा, "अमेरिका मुखर रूप से भारत के साथ रहा है और उसने पिछले दो दशकों में कई बार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है."
उन्होंने कहा, "लेकिन अभी जो जेडी वेंस की पोज़िशन है, उसे एकतरफ़ा न समझा जाए. उन्होंने शायद भारत पर भरोसा जताया है कि जो क़दम पाकिस्तान के ख़िलाफ़, भारत उठा रहा है, उसमें वे बीच में नहीं आना चाहते और भारत को रोकना भी नहीं चाहते."
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है.
ताज़ा स्थिति को देखते हुए कई देशों ने भारत और पाकिस्तान से कूटनीतिक तरीक़ों के ज़रिए से इस तनाव का शांतिपूर्ण समाधान निकालने की अपील की है.
असोसिएट प्रोफ़ेसर विनीत प्रकाश कहते हैं, "अगर हम रिएक्शन्स की बात करें तो सभी देश भारत और पाकिस्तान से आग्रह कर रहे हैं कि दोनों आपसी तनाव कम करें और कूटनीतिक तरीक़ों से समाधान निकालें."
उनका कहना है, "अब तक साफ़-साफ़ दो देशों के रुख़ सामने आए हैं. एक तुर्की का, जिसने भारत की कार्रवाई की निंदा की है और पाकिस्तान का समर्थन किया है. दूसरा इसराइल का, जिसने भारत को पूरी तरह समर्थन दिया है."
विनीत प्रकाश ने कहा, "बाक़ी प्रमुख देश जैसे अमेरिका, रूस और चीन ने भी यही कहा है कि दोनों देशों को तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक हल निकालना चाहिए."
"अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तनाव कम करने के लिए मध्यस्थता का एक हल्का प्रस्ताव देने की कोशिश की थी, लेकिन भारत ने कूटनीतिक रूप से उनको मना कर दिया."
बैक चैनल डिप्लोमेसीमनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस में असोसिएट फ़ेलो डॉ. प्रियंका सिंह ने कहा, "कभी भी दो देश अगर लड़ भी रहे हों, तो उनके चैनल्स पूरी तरह बंद नहीं होते. उनके बीच डायरेक्ट चैनल्स भी होते हैं और कई बार तीसरे या चौथे देश के ज़रिए भी संवाद होता है."
उन्होंने बताया, "अभी भारत-पाकिस्तान के बीच जो तनाव चल रहा है, उसमें न्यूज़ में आया था कि दोनों देशों के एनएसए संपर्क में हैं. हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि वे बातचीत कर रहे हों, लेकिन संपर्क बना हुआ है."
उन्होंने कहा, "सऊदी अरब भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण साझेदार है. अगर उनके प्रतिनिधि दोनों देशों में मौजूद हैं, तो यह संकेत है कि बैक चैनल डिप्लोमेसी चल रही है."
प्रियंका सिंह ने कहा, "भले ही इस समय दोनों देशों के बीच संघर्ष की स्थिति हो, लेकिन बैक चैनल्स अभी भी खुले हैं."
वहीं लंदन से बीबीसी के सीनियर न्यूज़ एडिटर आसिफ़ फ़ारुक़ी ने इस पर कहा, "जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष चल रहा होता है, उस दौरान बैक डोर से बातचीत चलती रहती है."
उन्होंने बताया, "अक्सर हमें उस वक़्त इन प्रयासों की जानकारी नहीं होती, लेकिन कुछ समय बाद इनके बारे में पता चलता है. "
उन्होंने कहा, "इनकी खासियत यही होती है कि ये पर्दे के पीछे होती हैं और सार्वजनिक रूप से नज़र नहीं आतीं."
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच चीन के रुख़ पर कई लोगों की नज़र है. चीन के पाकिस्तान के साथ क़रीबी संबंध रहे हैं और भारत के साथ भी उसके कारोबारी हित जुड़े हुए हैं.
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि वे मौजूदा हालात को लेकर 'चिंतित' हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच बात और बिगड़ती है तो चीन क्या रुख़ अपनाएगा?
इस पर डॉक्टर प्रियंका सिंह ने कहा, "पाकिस्तानी विश्लेषक ज़ोरों से कह रहे हैं कि अगर भारत ने हमला किया तो चीन सामने आकर पाकिस्तान की मदद करेगा. लेकिन अगर आप चीन के आधिकारिक बयानों को देखें, तो वे काफी सामान्य हैं. जैसे पहले आते रहे हैं, वैसे ही अब भी आ रहे हैं."
उन्होंने कहा, "अगर इतिहास की बात करें, तो भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक हुए युद्धों में चीन का रवैया बहुत मुखर नहीं रहा है. वह कभी सीधे तौर पर भारत के ख़िलाफ़ सामने नहीं आया."
प्रियंका ने कहा, "हो सकता है कि चीन ने पर्दे के पीछे पाकिस्तान की मदद की हो, लेकिन उसका खुलकर भारत के ख़िलाफ़ खड़ा होना, इतिहास में नहीं देखा गया है. हालांकि मैं यह भी नहीं कहूंगी कि जो पहले हुआ, वही अब भी होगा."
वहीं इस मामले पर आसिफ़ फ़ारुक़ी ने कहा, "बहुत सारे पाकिस्तानी विश्लेषक कह रहे हैं कि इस बार चीन ने पाकिस्तान को असामान्य रूप से समर्थन और बैकअप दिया है."
उन्होंने कहा, "अब तक जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ है, चीन ने सार्वजनिक रूप से एक निष्पक्ष स्टैंड लेने की कोशिश की है. लेकिन इस बार पाकिस्तानी सरकार और विश्लेषकों का ऐसा कहना है कि चीन पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है."
मध्य पूर्व के देशों का रुख़दुनिया भर के नेताओं ने भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने और क्षेत्र में शांति बनाए रखने की अपील की है. इसमें मध्य पूर्व के देश भी शामिल हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए मध्य पूर्व के देश किसी भी पक्ष का समर्थन करने से बचना चाहेंगे.
अब ऐसे में अगर तनाव और गहराया तो मध्य पूर्व के देश किस ओर होंगे, इस बात की भी चर्चा खूब है.
भारत-पाकिस्तान तनाव पर मध्य पूर्व के देशों के रुख़ पर आसिफ़ फ़ारुक़ी ने कहा, "पाकिस्तान में इस बात की काफ़ी चर्चा है कि इस संघर्ष में मध्य पूर्व देश शायद पाकिस्तान को ज़्यादा समर्थन दे रहे हैं, लेकिन अभी तक सार्वजनिक रूप से ऐसी कोई स्पष्ट स्थिति सामने नहीं आई है."
उन्होंने कहा, "इस वक्त मध्य पूर्व के देश नहीं चाहेंगे कि वे किसी एक पक्ष का खुलकर पोजिशन लें."
असोसिएट प्रोफ़ेसर विनीत प्रकाश ने कहा, "इस समय मध्य पूर्व के देशों की तरफ से एक संतुलित रुख देखने को मिला है. तुर्की को छोड़कर किसी अन्य देशों ने पाकिस्तान के पक्ष में एकजुटता जताते हुए बयान नहीं दिया है. सऊदी अरब दोनों पक्षों से बातचीत की कोशिश कर रहा है."
उन्होंने बताया, "मध्य पूर्व के देश आमतौर पर हर संघर्ष में पाकिस्तान के साथ खड़े दिखते हैं, लेकिन वर्तमान में वैसी स्थिति नहीं बनी है. इस बार उनका रुख संतुलित नज़र आ रहा है."
उन्होंने कहा, "इसके पीछे व्यापारिक हित हो सकते हैं और एक प्रमुख कारण यह भी हो सकता है कि मोदी सरकार के दौरान भारत और मध्य पूर्व के देशों के संबंधों में काफी सुधार हुआ है."
कब तक चल सकता है संघर्ष?
दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान, दोनों ही परमाणु ताक़त रखने वाले देश हैं.
ऐसे में दुनियाभर के देशों के लिए यह चिंता का विषय है कि अगर यह संघर्ष और गहराता है, तो इसके परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा तनाव जल्द ही कम नहीं होगा.
विनीत प्रकाश कहते हैं, "अगर हम पाकिस्तान के दृष्टिकोण से देखें, तो हाल के समय में वहां की सेना की छवि पर आंतरिक रूप से सवाल उठने लगे थे."
उन्होंने कहा, "यह संकेत मिलता है कि पाकिस्तानी सेना चाहती है कि सीमावर्ती इलाक़ों में कुछ हद तक तनाव बना रहे. जिससे कि पाकिस्तान के अंदर जो उनकी पकड़ है, वह मज़बूत बनी रहे. अगर उस नज़रिए से देखें तो इस तनाव का अभी पूरी तरह से समाप्त होना मुश्किल लगता है और दोनों देशों के बीच कुछ ना कुछ संघर्ष चलता रहेगा."
वहीं आसिफ़ फ़ारुक़ी ने कहा, "अगर संघर्ष एक निश्चित स्तर से आगे बढ़ता है, तो परमाणु विकल्प की बात सामने आ सकती है."
उन्होंने कहा, "हमने पहले भी देखा है कि जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, पाकिस्तान अपनी परमाणु नीति पर विस्तार से बात करना शुरू कर देता है. अभी तक पाकिस्तानी सरकार या सेना की ओर से इस पर ज़्यादा बात नहीं हुई है, लेकिन अगर संघर्ष आगे बढ़ता है तो यह मुद्दा फिर उठेगा."
आसिफ़ ने कहा, "यह स्थिति न सिर्फ़ इस क्षेत्र बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है कि यह संघर्ष इससे ज़्यादा न बढ़े."
इस मुद्दे पर प्रियंका सिंह ने कहा, "जहां तक भारत और पाकिस्तान का सवाल है, उनके पास परमाणु हथियार एक डेटेरेंस यानी बचाव के तौर पर हैं."
उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान का अभी कोई ऐसा विचार है कि तनाव को कम किया जाए. वह इस संघर्ष को जारी रखना चाहता है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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