राजस्थान के जोधपुर और बालोतरा ज़िले के कई गांव जोजरी नदी में छोड़े जा रहे औद्योगिक कचरे से जल प्रदूषण की चपेट में हैं. इन गांवों के लोगों का कहना है कि खेत सूख रहे हैं, मवेशी मर रहे हैं और ज़िंदगी जीना मुश्किल होता जा रहा है.
सरकार और प्रशासन का दावा है कि ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जा रहे हैं और स्थिति पर नज़र रखी जा रही है.
लेकिन, ज़मीनी स्थिति और आधिकारिक रिपोर्टों से कुछ और ही तस्वीर उभरती है.
बीबीसी से बातचीत में राजस्थान के मंत्री, प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने माना कि स्थिति गंभीर है.
जोजरी एक मौसमी नदी है, जो नागौर के पंदलू गांव से निकलकर जोधपुर होते हुए बालोतरा में लूणी नदी से मिलती है. इसकी लंबाई 83 किलोमीटर है.
बीबीसी की इस ग्राउंड रिपोर्ट में हम जानेंगे कि इस नदी का पानी कैसे ज़हरीला हो रहा है, इसका असर ग्रामीणों पर क्या पड़ा है, और अब तक इस समस्या का कोई हल क्यों नहीं निकल पाया.
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जोजरी नदी में आ रहे इस केमिकल युक्त पानी से जोधपुर से लेकर बालोतरा ज़िले के क़रीब पचास से ज़्यादा गांव-ढाणियों के लोगों, उनके खेतों और मवेशियों को प्रभावित कर रहा है.
जोधपुर से चालीस किलोमीटर दूर मेलबा, राजेश्वर नगर, धवा, डोली, अराबा दूदावता जैसे गांवों में लोग जोजरी नदी से बहते काले और बदबूदार पानी से परेशान हैं. उनका कहना है कि यह पानी खेतों में भरकर फसलें नष्ट कर रहा है और बीमारियां फैला रहा है.
जोजरी नदी में इंडस्ट्री का पानी लगभग डेढ़ दशक से बहाया जा रहा है. लेकिन, बीते तीन से चार साल से दिन ब दिन यह समस्या बढ़ती जा रही है.
स्थानीय लोगों ने नेताओं और प्रशासनिक स्तर पर भी शिकायत की, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ. इसके बाद कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के ज़रिए यह मुद्दा उठाना शुरू किया, जिसके बाद यह सुर्खियों में बना हुआ है.
जोधपुर से सांसद और केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने मीडिया से बातचीत में जोजरी नदी में आ रहे दूषित पानी से जोधपुर और बालोतरा ज़िले के क़रीब 16 लाख लोगों के प्रभावित होने का ज़िक्र किया था.
जब बीबीसी की टीम जोजरी नदी के पास पहुंची, तो वहां तेज़ाब जैसी दुर्गंध थी, पानी गहरा काला था और उस पर मच्छरों की परत जमी हुई थी.
मेलबा गांव के पास राजेश्वर नगर के सरकारी स्कूल के पास से यही पानी बहता है.
स्कूल के हेडमास्टर पूनाराम पटेल कहते हैं, "इस केमिकल के पानी से बच्चों को और हमें बहुत परेशानी है. स्कूल में बैठना तक मुश्किल होता है. बच्चे कहते हैं कि हमें छोड़ दीजिए, यहां बैठा नहीं जा रहा है. इससे आसपास के इलाक़ों में बीमारियां फैलती हैं. वो बीमार रहते हैं."
स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक तेज सिंह बताते हैं, "जैसे-जैसे पानी की समस्या बढ़ी है, तो उसका प्रभाव स्कूल के नामांकन पर भी हुआ है. पहले क़रीब पचास बच्चे थे और अब सिर्फ़ 21 ही बच्चे हैं."
धवा गांव के श्रवण पटेल कहते हैं, "बच्चे यहां की दुर्गंध से खांसते हैं, बीमार रहते हैं. रात में गांव गैस के चैंबर बन जाते हैं."

ड्रोन से ली गई तस्वीरों में साफ़ दिखता है कि गांवों की गलियों और खेतों में काले पानी की धाराएं बह रही हैं.
जिन घरों के पास ये पानी बहता है, वहां दीवारों और फ़र्श में दरारें आ चुकी हैं.
बालोतरा ज़िले के डोली गांव की उर्मिला कहती हैं, "पानी की इतनी समस्या है कि हमारा घर टूट रहा है. इस पानी की वजह से इतने मच्छर हो गए हैं कि सोना तक मुश्किल हो जाता है, बदबू से सिर दर्द करता है."
गांव के 75 साल के मानसिंह कहते हैं, "चुनावों में नेताओं ने वोट लेने के लिए दावे किए कि हम इस पानी को बंद करा देंगे. लेकिन, जीतने के बाद अब कहते हैं 'मैं इस पानी को क्या जेब में रख लूं'. अब नेता ही ऐसी बात कह रहे हैं तो हम क्या करें."
केमिकल युक्त पानी से रोहिड़ा, खेजड़ी जैसे सैकड़ों पेड़ सूख गए हैं. खेतों में सफेद परत जम चुकी है और ज़मीन बंजर हो रही है.
राज्य सरकार में मंत्री जोगाराम पटेल कहते हैं, "खेती इस बार अच्छी हुई है, मैं वहां का निवासी हूं. खेतों में पानी भरा हुआ है, उससे नुकसान तो है. पानी खेतों में न जाए, इसका समाधान करेंगे."
जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में साइंस फैकल्टी की डीन प्रोफेसर डॉ संगीता शोध के आधार पर कहती हैं, "इस पानी के कारण आसपास के खेतों की ज़मीनों का उपजाऊपन कम हो रहा है. फसलों में इनटोक्सिकेंट्स की अधिकता पाई जा रही है, जो इंसान के लिए बेहद ख़तरनाक है."
बालोतरा के अराबा दुदावता गांव में केमिकल का काला पानी बह रहा है. बचे हुए कुछ हिस्से में किसान जैसे-तैसे खेती कर रहे हैं.

करीब साठ साल के भूमा राम कहते हैं, "गेहूं की लंबाई भी बहुत कम रह गई है. फसल दिख रही है, लेकिन इसमें गेहूं के दाने ही नहीं हैं."
"25 बीघा ज़मीन पर खेती कर रहे हैं. लेकिन, सब ख़राब कर दिया इस पानी ने. हमारी दिन रात की मेहनत पर भी पानी फिर गया है."
"इलाक़े में क़रीब दस हज़ार रोहिड़ा वृक्ष सूख गए हैं...ये ज़मीन अब उपजाऊ नहीं रह गई है."
प्रोफ़ेसर डॉ. संगीता एक उदाहरण देते हुए कहती हैं, "इस केमिकल वाले पानी के बहाव वाले इलाक़े से स्प्रिंग अनियन का एक सैंपल लिया गया. माइक्रोवेव पर सुखाया तो पूरे घर में इतनी दुर्गंध हो गई, जो सहन नहीं हुई."
"इनमें केमिकल की अधिकता होने के कारण लोगों के स्वास्थ्य और मवेशियों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है."
ज़हरीले पानी से उजड़ते घरअराबा दुदावता गांव में कई परिवार अपना घर भी छोड़कर जा चुके हैं. कुछ और लोग भी पलायन का मन बना चुके हैं.
हाईवे से सटे इस गांव में चारों ओर पानी से घिरा एक घर दिखा, जिसमें रहने वाला परिवार हाल ही में गांव छोड़ चुका है.
हमें यह घर दिखाते हुए गांव के मूल सिंह कहते हैं, "लोग पलायन कर रहे हैं. इस पानी की वजह से लोग घर छोड़ने पर मजबूर हैं. करीब सात घर तो खाली पड़े हैं, लोगों के घरों में पानी तक घुस गया है."
"प्रशासन को ज्ञापन देने और धरना देने के बाद भी सुनवाई नहीं हुई तो लोग घर छोड़ कर चले गए."
स्थानीय लोग मानते हैं कि जोजरी नदी में जोधपुर की फैक्ट्रियों और सीवर का अनट्रीटेड पानी मिल रहा है. इंडस्ट्री हब के रूप में विकसित जोधपुर की हज़ारों इकाइयों का कचरा दूर-दराज़ के गांवों तक पहुंच रहा है.
जोधपुर इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुराग लोहिया कहते हैं, "अब ज़्यादा समस्या इसलिए आ रही है क्योंकि जोधपुर के सीईटीपी (इंडस्ट्रीज़ के पानी का ट्रीटमेंट प्लांट) की कैपेसिटी कम है. हमने सरकार को भी कहा है कि इसकी कैपेसिटी बढ़ाएं. जोधपुर में अभी दो सौ एमएलडी क्षमता के सीईटीपी प्लांट की आवश्यकता है. आने वाले समय में यह क्षमता और ज़्यादा बढ़ेगी."
"पुराने सीईटीपी प्लांट में लगी हुई पाइप भी छोटी हैं, इसलिए वेस्ट से वो पाइप बंद हो जाती हैं. कुछ कंपनियां हो सकता है कि तय सीमा से अधिक पानी छोड़ रही हों. इस कारण यह समस्या उत्पन्न हो रही है."
सीईटीपी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जसराज बोथरा बताते हैं, "हम ट्रस्ट के माध्यम से 306 इंडस्ट्रीज़ वाले सीईटीपी को चलाते हैं."
"रीको इंडस्ट्रियल एरिया में क़रीब दो हजार फैक्ट्रियां हैं. एम्स अस्पताल का पानी भी रिको ड्रेन से होकर जोजरी नदी में मिल जाता है."
जोधपुर कलेक्टर गौरव अग्रवाल कहते हैं,"जोजरी नदी का प्रदूषण बेहद गंभीर विषय है. हमने इसका इंस्पेक्शन भी करवाया है, जगह-जगह से हमने सैंपल भी लिए हैं. साफ़ दिखाई पड़ता है कि जोजरी नदी में बहुत ज़्यादा प्रदूषित पानी जा रहा है."
"जोजरी नदी में दो तरह का गंदा पानी जा रहा है, बिना ट्रीटमेंट के इंडस्ट्रीज़ का पानी और सीवर का पानी."
प्रोफेसर डॉ संगीता कहती हैं, "शोध के दौरान पाया गया कि फैब्रिक इंडस्ट्रीज़ में कई तरह की डाइ पाई गईं... स्टील इंडस्ट्रीज़ से कॉपर, क्रोमियम... बैटरी से कैडमियम... इनकी मात्रा तय लिमिट से कहीं ज़्यादा पाई गई है."
"बहुत ज़्यादा मात्रा में फैक्ट्रियों से केमिकल्स को अवैध तरीके से छोड़ा जा रहा है."
प्रदूषण मंडल जोधपुर की क्षेत्रीय अधिकारी कामिनी सोनगरा बताती हैं, "दो महीने पहले लिए सैंपल की रिपोर्ट में कैडमियम और क्रोमियम बहुत अधिक मात्रा में पाए गए थे, जो बहुत हानिकारक हैं. हमने रिपोर्ट जयपुर भेजी है."
"हाल ही में लिए गए सैंपल के परिणाम बताते हैं कि पहले के मुकाबले कुछ सुधार हुआ है. लेकिन, फिर भी तय मानकों से ज़्यादा है."
जोधपुर और बालोतरा के गांवों में जोजरी नदी के ज़रिए फैल रहे इस केमिकल युक्त पानी की समस्या विधानसभा से लेकर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है.
सरकार, प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण विभाग की ओर से कार्रवाई और समाधान के दावे ज़रूर किए जा रहे हैं, लेकिन गांवों में अब भी राहत नहीं पहुंची है.
राजस्थान सरकार में संसदीय कार्य, विधि एवं न्याय मंत्री जोगाराम पटेल बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "पानी ट्रीट करके छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. इंडस्ट्रीज़ वाले पानी छोड़ रहे हैं. मैंने प्रशासन के साथ मौके पर जाकर मुआयना किया है. समाधान के लिए हमने बजट में 176 करोड़ रुपए की घोषणा करवाई है."
वो कहते हैं, "आने वाले कुछ समय के बाद बिना ट्रीट किया हुआ पानी नहीं जाएगा."
कलेक्टर गौरव अग्रवाल बताते हैं, "यह मामला एनजीटी के अंदर भी चल रहा था. एनजीटी के आदेश पर राज्य स्तरीय समिति बनाई गई थी जिसमें ज़िला कलेक्टर की अध्यक्षता में ज़िला कमेटी बनाई गई. हमने पूरे जोजरी नदी के सभी चैनल्स पर अलग-अलग जगह जा कर देखा और हमने एक रिपोर्ट बना कर भेजी है."
जब बीबीसी ने सवाल किया कि ग्रामीणों की समस्या का समाधान कब तक होगा, तो कलेक्टर ने कहा, "नदी को प्रदूषित करने वाले सीवेज पानी को रोकने के लिए बासनी, उचियाड़ा, सालावास में ट्रीटमेंट प्लांट बन रहे हैं. बजट घोषणा के बाद से प्लांट बनाए जा रहे हैं, जोजरी नदी में प्रदूषण रोकने के लिए ही ये घोषणा की गई है."
प्रदूषण विभाग की क्षेत्रीय अधिकारी कामिनी सोनगरा चौबीस घंटे निगरानी का दावा करती हैं.
वो कहती हैं, "नियंत्रण के लिए विजिलेंस टीम एक्टिव है. जुर्माना लगाते हैं और फैक्ट्रियों को नोटिस जारी करते हैं, बंद करने के आदेश भी देते हैं."
"इस महीने के सैंपल के परिणाम बताते हैं कि पानी में केमिकल्स तय लिमिट से अधिक हैं. स्टील के सैंपल के रिजल्ट के मुताबिक कैडमियम भी मिला है, जो बहुत विषैला है. हमने रिपोर्ट जयपुर भेजी हैं और जयपुर ने सीईटीपी (ट्रीटमेंट प्लांट) को आदेश जारी किए हैं."
जोधपुर इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुराग लोहिया कहते हैं, "राज्य सरकार ने हाल ही में सीईटीपी प्लांट की क्षमता बढ़ाने के लिए सौ करोड़ से ज्यादा दिए हैं. हमें विश्वास है कि जल्द ही सीईटीपी प्लांट के बाद इस समस्या से निजात मिलेगी."

सीईटीपी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जसराज बोथरा बताते हैं, "हमें सरकार से 23 करोड़ रुपए मिले हैं, जिससे हम छोटी पड़ चुकी लाइन को चेंज करवा रहे हैं. इसके बाद हमारी इंडस्ट्रीज़ का पानी जो थोड़ा बहुत भी बाहर जाता था वो नहीं जाएगा."
वो आगे कहते हैं, "हमें 25 बीघा ज़मीन सरकार से मिली हुई है, जिसमें बड़ी क्षमता का प्लांट बनाने से ही समस्या का समाधान हो सकता है. इसके लिए हमें सरकारी ग्रांट चाहिए होगी."
इस मामले में जोधपुर हाईकोर्ट में वकील और अराबा दुदावता गांव के निवासी पूरण सिंह राजपुरोहित बताते हैं, "साल 2010 में हमने रिट याचिका दाखिल की थी. इसके बाद यह मामला 2015 में एनजीटी में चला गया."
"साल 2022 में एनजीटी ने रिटायर्ड जस्टिस प्रकाश टाटिया के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी, कमेटी की रिपोर्ट को छह महीने में ही लागू करने का आदेश दिया. स्थानीय अथॉरिटीज़ पर जुर्माना भी लगाया."
वो बताते हैं, "संस्थाएं सुप्रीम कोर्ट गईं, वहां उनका केस खारिज हुआ और फिर एनजीटी में गए जहां समीक्षा याचिका भी खारिज हो गई."
एडवोकेट राजपुरोहित भी मानते हैं कि इंडस्ट्रीज़ का यह केमिकल युक्त पानी ग्रामीणों के लिए काले पानी की सज़ा की तरह है.
उनका कहना है, "जल्द इसका समाधान नहीं हुआ तो यह पूरा इलाक़ा सुनसान हो जाएगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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