
छत्तीसगढ़ पुलिस ने दो ननों को गिरफ़्तार किया है लेकिन इसने पार्टी की केरल इकाई को असहज कर दिया है.
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब राज्य में महज तीन महीने बाद स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, जिन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफ़ाइनल माना जा रहा है.
बीजेपी स्थानीय निकाय चुनावों में अपनी ताक़त दिखाने और ज़्यादा ईसाई वोट अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है. लेकिन ननों की गिरफ़्तारी से उसकी रणनीति को झटका लग सकता है.
नन वंदना फ़्रांसिस और प्रीति मैरी को 25 जुलाई को छत्तीसगढ़ में दुर्ग रेलवे स्टेशन पर गिरफ़्तार किया गया था. यह कार्रवाई बजरंग दल के एक सदस्य की शिकायत पर हुई, जिसने आरोप लगाया था कि ये नन मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण में शामिल हैं.
असिसी सिस्टर्स ऑफ़ मैरी इमैक्युलेट से जुड़ी दोनों ननों पर आरोप यह था कि वो तीन युवतियों (उम्र 19, 21 और 24 साल) को लेने छत्तीसगढ़ आई थीं.
इन युवतियों को आगरा स्थित एक संस्थान के रसोई विभाग में काम पर रखा गया था. उनके पास सभी वैध दस्तावेज़ और माता-पिता की अनुमति भी मौजूद थी.
इन गिरफ़्तारियों के बाद केरल के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
दूसरी पार्टियां ये मुद्दा उठाने की तैयारी में हैं कि बीजेपी अब केरल में सबसे बड़े, प्रभावशाली और संगठित ईसाई समुदाय सायरो-मालाबार के 'आम लोगों को भी नहीं बख्श रही है'.
यही वो समुदाय है जहां से पिछले कुछ सालों में बीजेपी को कुछ हद तक समर्थन मिला था.
विशेषज्ञों के मुताबिक़ ईसाई समुदाय में विश्वास बहाली की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों को इस घटना ने झटका दिया है.
बजरंग दल कार्यकर्ताओं की तेज़ कार्रवाई और पुलिस की ओर से तुरंत ननों को ग़िरफ़्तार करने से ये मामला और गंभीर हो गया.
राजनीतिक विश्लेषक केए जैकब ने बीबीसी हिंदी से कहा, "छत्तीसगढ़ और केरल की बीजेपी इकाइयों के बीच हितों का टकराव इस पूरे मामले में साफ़ दिखता है. यह बिल्कुल साफ़ है कि बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर अपने हितों को संतुलित नहीं कर पा रही है."
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इस पूरे घटनाक्रम का राजनीतिक असर इतना गहरा रहा कि केरल बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने बजरंग दल को ज़िम्मेदार ठहराते हुए बीजेपी से ध्यान हटाने की कोशिश की.
इसके साथ ही बीजेपी पदाधिकारियों को जल्दबाज़ी में छत्तीसगढ़ भेजा गया है ताकि ननों की रिहाई जल्द से जल्द कराई जा सके.
बीजेपी की केरल में रणनीति राज्य में ईसाई समुदाय के एक छोटे हिस्से को साधने की रही है. बीजेपी का मक़सद ये रहा है कि इसे लगभग एक-तिहाई हिंदू वोट के साथ मिलाकर सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एलडीएफ़) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ़), दोनों को कमजोर किया जा सके.
केरल एक ऐसा राज्य है जहां अल्पसंख्यकों की आबादी का ख़ास कॉम्बिनेशन देखने को मिलता है.
यहां ईसाई आबादी 18.38 फ़ीसदी और मुस्लिम आबादी 26.56 फ़ीसदी है. जैन और अन्य समुदायों के लोगों की संख्या बहुत कम है. लेकिन कुल मिलाकर राज्य की 46 फ़ीसदी जनता अल्पसंख्यक समुदाय से है.
राजनीतिक विश्लेषक और केरल विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर जे प्रभाष ने बीबीसी हिंदी से कहा, "समस्या यह है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जो थोड़ी बहुत पहुंच बीजेपी ने अपने आउटरीच कार्यक्रमों के ज़रिए बनाई थी, वह अब ख़त्म हो चुकी है. इस कार्रवाई ने अल्पसंख्यकों के पुराने संदेहों को और मज़बूत कर दिया है. ये घटना तीन महीने बाद होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों से पहले हुई है और मतदाता इसे याद रखेंगे."
प्रोफ़ेसर प्रभाष ने एक और अहम बात कही, "यह मलयाली समुदाय पर हमला है. अगर गिरफ़्तार लोग रिहा भी हो जाएं, तब भी इसका बीजेपी को कोई राजनीतिक फ़ायदा नहीं होगा."
ईसाई समुदाय के कुछ वरिष्ठ पादरियों ने भी ऐसी ही राय ज़ाहिर की. उन्होंने कहा, "इस तथ्य को मत भूलिए कि बीजेपी एक क़दम आगे बढ़ती है लेकिन उसके बाद तीन क़दम पीछे चली जाती है."
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कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ़ इंडिया (सीबीसीआई) के अध्यक्ष मार एंड्रयूज़ ताज़ात ने कोच्चि में पत्रकारों से कहा, "मानव तस्करी के आरोप में हुई ये गिरफ़्तारियां बेहद चौंकाने वाली हैं. इन पर जबरन धर्मांतरण का भी आरोप लगाया गया है. प्रशासन की ये कार्रवाई धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को चुनौती देती है जो सीधे तौर पर संविधान के ख़िलाफ़ है."
उन्होंने कहा, "यह ईसाइयों के उत्पीड़न की कई घटनाओं में से एक है. कुछ मामलों में तो पादरियों को अपने धार्मिक वस्त्र पहनने और देश में स्वतंत्र रूप से घूमने की आज़ादी तक नहीं दी गई."
उन्होंने साफ़ कहा, "हर तरफ़ डर का माहौल है."
धार्मिक और सामाजिक पोर्टल 'मैटर्स इंडिया' के प्रधान संपादक जोस कावी ने यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ़) के जुटाए आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2014 में ईसाइयों पर हमलों के 127 मामले सामने आए थे, जो 2024 में बढ़कर 834 हो गए.
उन्होंने कहा, "वे आंकड़ों को बहुत व्यवस्थित तरीके से इकट्ठा करते हैं."
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए जोस ने कहा, "ननों का वस्त्र अब बीजेपी एजेंटों के लिए खतरे का संकेत बन गया है. ननों को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे धार्मिक पोशाक में थीं. बीजेपी छत्तीसगढ़ में इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है."
केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (केसीबीसी) के प्रवक्ता फ़ादर थॉमस थरायिल ने बीबीसी हिंदी से कहा, "इस कार्रवाई के पीछे राजनीति है. मैं इसे राजनीतिक रंग नहीं देना चाहता, लेकिन धर्मांतरण का आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है. ज़रा सोचिए अगर इतने सालों में ईसाई धर्म जबरन धर्मांतरण करता रहा होता तो अब तक पूरा भारत ईसाई बन चुका होता."
उन्होंने उस बजरंग दल की महिला कार्यकर्ता का भी ज़िक्र किया, जिसका वीडियो मलयालम टीवी चैनलों पर दिखाया गया था, जिसमें वह रेलवे स्टेशन पर ननों को धमका रही थी.
फ़ादर थॉमस ने कहा, "जिन युवतियों को नन लेकर जा रही थीं, वे प्रोटेस्टेंट हैं और वे बिंदी और सिंदूर भी लगाती हैं."
हालांकि कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ़ इंडिया (सीबीसीआई) ने अल्पसंख्यकों पर हमलों के कई मामलों का हवाला देते हुए इस घटना की निंदा की लेकिन चर्च के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने यह साफ़ किया कि वे इस मामले को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहते.
सीबीसीआई खुद प्रधानमंत्री या केंद्रीय गृह मंत्री की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा है.
फ़ादर थॉमस ने कहा, "हमारी प्राथमिक मांग यह है कि ननों को ज़मानत मिले और उन्हें जेल से बाहर लाया जा सके. इस तरह की घटनाएं उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में कई बार हो चुकी हैं."
केरल लैटिन कैथोलिक एसोसिएशन (केएलसीए) के फ़ादर जीजू अरकातेरा ने इस बात की सराहना की कि बीजेपी ने एक प्रतिनिधिमंडल छत्तीसगढ़ भेजा.
उन्होंने कहा, "यह एक सकारात्मक क़दम है." साथ ही उन्होंने यह भी साफ़ किया कि "चर्च किसी भी राजनीतिक पार्टी को अछूत नहीं मानता."
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बीबीसी हिंदी से बातचीत में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस मामले को दो तरीक़ों से देखा जा सकता है, "अगर किसी ने क़ानून का उल्लंघन किया है तो क़ानून अपना काम करेगा. क़ानून लागू करने वाली एजेंसी इसे संभालेगी. यह बीजेपी का विषय नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "दूसरी बात यह है कि अगर कोई राजनीतिक झटका लगता है तो उसकी रणनीति बनाई जाती है. इसका मतलब यह नहीं है कि अल्पसंख्यकों तक पहुंचने की कोशिश बंद कर दी जाएगी. पार्टी ग़लतफहमियों को दूर करने की पूरी कोशिश करेगी कि बीजेपी अल्पसंख्यक विरोधी है. पार्टी हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देती है."
इस नेता ने उदाहरण के तौर पर कहा, "अगर पार्टी वाकई किसी को निशाना बनाना चाहती तो छत्तीसगढ़ में प्रतिनिधिमंडल ही क्यों भेजती?"
इस बीच सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस और सीपीएम के सांसद भी छत्तीसगढ़ पहुंचे और जेल में बंद ननों से मुलाकात की.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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