उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर मलिहाबाद के दशहरी आम की मिठास दुनिया भर में मशहूर है.
गर्मियों के मौसम में इस आम का इंतज़ार रहता है. दशहरी आम जून के पहले सप्ताह से आना शुरू होता है.अभी इस आम के बाज़ार में आने में थोड़ा वक़्त है लेकिन किसान और आम के निर्यातक परेशान हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 26 फ़ीसदी रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगाया है. इसका असर आम निर्यात पर भी पड़ सकता है.
हालाँकि अभी इस टैरिफ़ पर 90 दिन की अस्थायी रोक लगी है.

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कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास निर्यात प्राधिकरण यानी एपीडा के अधिकारी कह रहे हैं कि दो-तीन हफ़्ते के बाद ही टैरिफ़ के असर का अंदाज़ा हो सकता है.
अभी एपीडा की तरफ़ से स्थिति का आंकलन किया जा रहा है.
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल की बैठक में ये कहा है कि निर्यातक 'घबराएँ नहीं.'
मलिहाबाद के दशहरी आम के बाग़ लगाने की शुरुआत 18वीं सदी में हुई थी. दावा है कि इस आम की प्रजाति मलीहाबाद में विकसित हुई थी.
अभी दशहरी आम देश में कई अन्य जगहों पर भी उगाया जा रहा है, लेकिन मलिहाबाद क्षेत्र के दशहरी आम को ज्योग्राफ़िकल इंडिकेटर (जीआई) टैग मिला है.
शाहज़ेब ख़ान आम के उत्पादक और निर्यातक हैं.
शाहज़ेब बताते हैं, ''दशहरी आम तो देश में कई जगह हो रहा है. यूपी में सहारनपुर, वाराणसी, प्रतापगढ़ के अलावा गुजरात और आंध्र प्रदेश में भी दशहरी आम का उत्पादन हो रहा है, लेकिन जो स्वाद मलिहाबाद के दशहरी आम में है. वो किसी और में नहीं है.''
आम उत्पादक समिति के आँकड़ों के मुताबिक़ इस साल तकरीबन 30 हज़ार हेक्टेयर में बागवानी हो रही है. पिछले साल मलिहाबाद में ही तकरीबन 1.25 लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन हुआ था.
इस साल मलिहाबाद के आम के निर्यात के लिए लखनऊ की कमिश्नर रोशन जैकब ने रेलवे और हवाई कंपनियों को सुविधा देने का निर्देश दिया है.
लखनऊ से कुछ ही दूरी पर मलिहाबाद में दशहरी, चौसा और सफ़ेदा के अलावा आम की तकरीबन 100 से ज़्यादा क़िस्मों के बाग़ हैं.
यहाँ के दशहरी की मांग खाड़ी देशों के अलावा यूरोप और अमेरिका तक है, लेकिन टैरिफ़ की वजह से किसानों और निर्यातकों में संशय बना हुआ है.
परवेज़ ख़ान, मलिहाबाद के आम के निर्यातक हैं. उनकी कंपनी अभी दक्षिण भारत से आम ख़रीद कर विदेश भेज रही है. इनमें नीलम और अलफांसो जैसे आम की क़िस्में भी हैं.
परवेज़ ख़ान अमेरिका को आम निर्यात करने के मसले पर कहते हैं, ''अभी अमेरिका ने भारत पर 26 फ़ीसदी टैरिफ़ बढ़ाया है. इससे दुनिया भर में अजीब सी स्थिति है. शेयर बाज़ार में भी उथल-पुथल है. कृषि क्षेत्र में भी इसका असर पड़ेगा.''
उनका कहना है कि अमेरिका के नियम खाड़ी देशों के मुक़ाबले बहुत ही सख़्त हैं. इसलिए वहाँ आम भेजना भी कठिन है. अमेरिका आम भेजने का रिस्क हम जैसे निर्यातक नहीं लेना चाहते हैं. अगर वहाँ की खेप रिजेक्ट हुई, तो बहुत नुक़सान होता है.
दरअसल, अमेरिका भेजने के लिए आम का ट्रीटमेंट करना होता है. एपीडा का मैंगो पैक हाउस रहमान खेड़ा में है, लेकिन वहाँ सभी सुविधाएं नहीं हैं. इसलिए ट्रीटमेंट के लिए पहले आम कर्नाटक भेजा जाता है.
इस प्रक्रिया से आम को सड़ने से बचाया जा सकता है और आम लंबे समय तक ताज़ा रहता है.

अमेरिका में आम निर्यात करने के लिए किसान वहाँ के आमों की क़िस्में मलिहाबाद में लगाने का भी प्रयोग कर रहे हैं.
आम के बाग़ के मालिक सुहेब ख़ान सिंचाई में व्यस्त हैं. वो कहते हैं कि आम का ज़ायका लेना है, तो मई-जून में आइए.
उनका कहना है, ''अभी अमेरिका की प्रजाति उगाने का प्रयोग किया जा रहा है. सफल हुआ, तो आगे बड़े पैमाने पर बाग़ लगाएँगे.''
सुहेब बताते हैं कि वो विदेशी आमों का निर्यात करना चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने अमेरिका के टॉमी एटकिन्स और सेंसेशन जैसी आम की क़िस्में लगाई हैं. इसके पौधे सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ सबट्रॉपिकल हार्टिकल्चर ने उपलब्ध कराए थे.
उन्होंने बताया, "इसको हम लोगों ने लगाया है. अभी हम इसका रेस्पॉन्स देख रहे हैं. ये आम सुर्ख़ रंग का होता है और इसकी लाइफ़ भी दशहरी से ज़्यादा है. लेकिन दशहरी के स्वाद का मुक़ाबला नहीं है.''
भारत साल 2007 से अमेरिका को हवाई मार्ग से आम का निर्यात कर रहा है. पुणे के आम के निर्यातक अभिजीत भोंसले का कहना है कि वर्ष 2024 में 3000-3200 मीट्रिक टन आम का निर्यात भारत से हुआ है.
अभिजीत भोंसले तकरीबन 15 साल से अमेरिका को आम का निर्यात कर रहे हैं. उनका दावा है कि वो तकरीबन 350 टन आम हर साल निर्यात करते हैं. उन्हें भी टैरिफ़ का डर सता रहा है.
उनका कहना है, ''दक्षिण अमेरिका का आम सस्ता है. हमारा आम हवाई जहाज़ से जाता है, तो इसकी क़ीमत बढ़ जाती है. अब जब टैरिफ़ लग जाएगा, तो दाम और बढ़ेंगे. कस्टमर का एक बैरियर होता है. ऐसे में भारतीय आम की मांग कम हो सकती है.''
भोंसले कहते है कि दक्षिण अमेरिका के आम की क़ीमत 8 से 9 डॉलर प्रति बॉक्स है, लेकिन टैरिफ़ लगने के बाद भी ये भारत के आम से सस्ता रहेगा.
बिना टैरिफ़ भारत से जाने वाले आम की क़ीमत तकरीबन 35 डॉलर प्रति बॉक्स है. अमेरिका में अभी तक आम आयात करने वाले को एक या दो डॉलर का अतिरिक्त ख़र्च आता था.
टैरिफ़ लगने के बाद ये अतिरिक्त ख़र्च 8-9 डॉलर तक पहुँच सकता है. इससे रिटेल में बिकने वाला आम 60 डॉलर प्रति बॉक्स तक पहुँच सकता है. ऐसे में मांग कम हो सकती है.
रिटेल में पहले भारत का आम 40-50 डॉलर प्रति बॉक्स में बिकता था.
भोंसले कहते हैं, ''अब ड्यूटी के बाद मुनाफ़े पर असर होगा, क्योंकि जो आम रास्ते में ख़राब हो जाते हैं, उनका पैसा भी निर्यातक की जेब से काटा जाता है.''
लखनऊ में बिज़नेस स्टैंडर्ड में काम करने वाले पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का कहना है कि जिस तरह सिल्क और दूसरी वस्तुओं पर असर हो रहा है, भारतीय आमों पर ट्रंप के टैरिफ़ का अच्छा-ख़ासा असर होने वाला है.
कलहंस कहते हैं, ''जिन वस्तु्ओं के ऑर्डर पहले से लगे हैं, सभी आयात करने वाले उस पर भी डिस्काउंट मांग रहे हैं. दशहरी आमों के ऑर्डर पहले से नहीं लगते हैं. अमेरिका और यूरोप के ऑर्डर दिसंबर से शुरू होते हैं. अब डिस्काउंट की मांग होगी, तो इसका असर आम के निर्यात पर पड़ेगा, क्योंकि वैसे ही आम के रिजेक्शन का ख़तरा बना रहता है.''
कलहंस कहते हैं, ''अमेरिका में मांग घटेगी, तो और भी देशों के निर्यात पर असर हो सकता है. निर्यात घटने से आम का घरेलू दाम भी कम होगा और फिर किसानों को ज़्यादा नुक़सान होगा.''

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ भारत से तकरीबन 30 हज़ार मीट्रिक टन आम का निर्यात विदेश में हो रहा है.
भारत ने वर्ष 2023-24 में 2022-23 के मुक़ाबले अमेरिका में आम के निर्यात में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी.
इस दौरान भारत ने साल के पहले पाँच महीनों में अमेरिका को लगभग 2043.60 मीट्रिक टन भारतीय आमों का निर्यात किया था.
भोसले जैसे निर्यातकों की मांग है कि सरकार को इस मामले में मदद करनी चाहिए.
भारत ने वर्ष 2023-24 (अप्रैल-अगस्त) के दौरान दुनिया भर में 47.98 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के 27,330 मीट्रिक टन आमों का निर्यात किया है.
भारत ने अमेरिका, ईरान, मॉरीशस, चेक गणराज्य और नाइजीरिया समेत 41 से ज़्यादा देशों को आमों का निर्यात किया है.
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