छत्तीसगढ़ में एक मंच पर एक युवती पंडवानी गा रही थी. अचानक उनका पति अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हुए, हिंसक अंदाज़ में उनके सामने खड़ा हो जाता है.
युवती तंबूरा उठाती है और ज़ोर से कहती है, "तुमने केवल मेरा ही नहीं बल्कि मेरी कला और इस मंच का भी अपमान किया है. इसलिए तुम अब माफ़ी के लायक नहीं हो, आज से तुम मेरे कोई नहीं हो."
इसी गायिका से प्रभावित होकर देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था, "आप बहुत अच्छा महाभारत करती हैं." यह सुनकर इस महिला कलाकार ने तपाक से जवाब दिया, "महाभारत नहीं करती हूँ, महाभारत की कथा सुनाती हूँ."
तीजन बाई छत्तीसगढ़ की पहली महिला कलाकार हैं जिन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
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ग़रीबी में गुज़रा बचपनतीजन बाई का जन्म छत्तीसगढ़ के पाटन अटारी गांव में आठ अगस्त 1956 को हुआ था. उनका जन्म छत्तीसगढ़ के जाने-माने लोकपर्व तीज के दिन हुआ था, इसलिए माता-पिता ने उनका नाम 'तीजन' रखा.
हालांकि कुछ जगहों पर उनका जन्मदिन 24 अप्रैल को बताया जाता है, लेकिन यह इसलिए सही नहीं है क्योंकि उनका जन्म तीज के दिन हुआ था और ये अप्रैल महीने में नहीं होता.
तीजन की मां का नाम सुखवती देवी था और उनके पिता का नाम हुनुकलाल पारधी था.
तीजन अपने माता-पिता की पहली संतान थीं. उनका बचपन गंभीर अभाव में गुज़रा. पशु-पक्षियों के कलरव, माँ के लोकगीत और पिता के बांसुरी वादन ने नन्हीं तीजन बाई को प्रभावित किया.
एक दिन अपने वृद्ध नाना को उन्होंने पंडवानी गाते हुए सुना तो वह मंत्रमुग्ध हो गईं. उसी समय उन्होंने पंडवानी सीखने का फ़ैसला कर लिया.
'पारधी' को अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत अपराधी जाति घोषित कर दिया था, बाद में जवाहर लाल नेहरू के प्रयास से 31 अगस्त 1952 को यह अधिनियम निरस्त कर दिया गया.
मगर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के आ जाने से इस जाति के लोगों की रोज़ी-रोटी पर गहरा संकट छा गया. इस समुदाय के अधिकांश लोग दिहाड़ी मज़दूरी करके जीवन यापन करने को मज़बूर हो गए.
'पारधी' वास्तव में शिकारी होते हैं जो वन से जीव-जंतु पकड़ कर उसे हाट-बाज़ार में बेचा करते थे. यह उनके जीवनयापन का पारंपरिक तरीका रहा था.
ऐसे समुदाय से निकल कर तीजन बाई ने पंडवानी के ज़रिए दुनियाभर में अपनी पहचान कायम की है.
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छत्तीसगढ़ की पारधी और देवार जैसी आदिवासी जातियां 'पंडवानी' का गायन करती हैं. इसमें सबल सिंह चौहान के द्वारा रचित महाभारत को आधार बनाकर पांडवों की कथा का गायन, अभिनय के साथ होता है.
पंडवानी में एक मुख्य कलाकार होता है जो महाभारत की कथा सुनाता है और प्रसंग के हिसाब से कथा गायन के दौरान आने वाले पात्रों का अभिनय भी करता है.
मुख्य कलाकार के साथ पांच से छह साथी कलाकारों की एक मंडली होती है. इस मंडली में एक रागी होता है जो हुंकार लगाता है, सवाल पूछता है और ज़रूरत के हिसाब से बीच-बीच में मुख्य कलाकार के साथ गाता भी है.
मंडली के अन्य सदस्य हारमोनियम, मंजीरा, बैंजो, तबला और खंजेड़ी जैसे वाद्ययंत्रों के साथ संगत करते हैं.
पंडवानी की दो शैलियां छत्तीसगढ़ में प्रचलित हैं. पहली वेदमती शैली और दूसरी कापालिक शैली.
वेदमती शैली में कथा वाचन को शास्त्रों के मुताबिक़ ज़्यादा रखा जाता है, जबकि कापालिक शैली में कल्पना और नये प्रयोगों की संभावना अधिक होती है.
वेदमती शैली में मुख्य कलाकार घुटनों के बल बैठकर कथा-वाचन करता है और कापालिक शैली में मुख्य कलाकार मंच पर चहलकदमी करता हुआ, खड़ा होकर कथा-वाचन करता है.
छत्तीसगढ़ में लंबे समय से प्रचलित पंडवानी पहले केवल पुरुष ही गाते थे. पंडवानी गायन महिलाओं के लिए लगभग प्रतिबंधित थी.
सबसे पहले कला की इस विधा में प्रवेश करने का साहस दो स्त्रियों ने दिखलाया, एक का नाम था लक्ष्मीबाई बंजारे और दूसरी का नाम है तीजन बाई.
लक्ष्मीबाई बंजारे ने वेदमती शैली में पंडवानी गाने का साहस दिखाया तो तीजन बाई ने कापालिक शैली में यह काम कर दिखाया. तीजन बाई कापालिक शैली में पंडवानी गाने वाली पहली महिला बनीं.
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जब तीजन बाई ने अपने चचेरे नाना बृजलाल पारधी से पंडवानी की शिक्षा लेनी शुरू की, तब उनकी उम्र मात्र नौ साल थी. उस समय समाज और परिवार ने उनका काफ़ी विरोध किया.
उन पर सामाजिक प्रतिबंध भी लगा. उन्हें अपने ही घर से निकाल दिया गया. पंडवानी गाने की वज़ह से उनकी पहली शादी भी टूट गई. दूसरी शादी में भी पंडवानी गायन के कारण ही दरारें आईं.
इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद तीजन बाई ने पंडवानी गायन नहीं छोड़ा. वह लगातार कथा तत्व और अभिनय पर काम करती रहीं. उनके लगातार अभ्यास ने उन्हें एक सफल पंडवानी गायिका के रूप में स्थापित कर दिया.
तीजन बाई ने पंडवानी का पहला सार्वजनिक मंचन चंदखुरी गांव के सतीचौरा चौक पर किया. तब उनकी उम्र मात्र तेरह वर्ष थी. इस कार्यक्रम का आयोजन चंदखुरी गांव के मालगुज़ार और कला का समर्थन करने वाले भूषण लाल देशमुख ने किया था, जिन्हें तीजन बाई स्नेह से 'दाऊ' कहा करती थीं.

तीजन बाई को वाद्ययंत्रों के साथ पंडवानी गायन का हुनर उमेद सिंह देशमुख ने सिखलाया. तीजन बाई उन्हें सदैव गुरु का सम्मान देती रहीं. वह उन्हें प्रेम से 'ददा' कहा करती थीं.
चंदखुरी गांव में पंडवानी की कथा के कार्यक्रम से आसपास के गांवों में उनकी पहचान बनी. उन्हें सबसे पहले शहर जाकर गाने का आमंत्रण भिलाई में एक कार्यक्रम के लिए मिला. फिर धीरे-धीरे भोपाल, दुर्ग, रायपुर आदि शहरों में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया.
इसी दौरान उन्हें भोपाल के भारत भवन से पंडवानी गाने का न्यौता मिला. यहां उनकी मुलाक़ात हबीब तनवीर से हुई.
पंडवानी गायन के दौरान हबीब तनवीर तीजन बाई के अभिनय, गायन और गर्जन को देखकर काफ़ी प्रभावित हुए और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने उन्हें पंडवानी गाने का मौक़ा दिलवाया.
जाने-माने निर्देशक श्याम बेनेगल ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें अपने धारावाहिक 'भारत एक खोज' में महाभारत प्रसंग के लिए आमंत्रित किया. इस तरह तीजन बाई की कला घर-घर तक पहुंची.
तीजन बाई की प्रतिभा को देखते हुए भिलाई स्टील प्लांट ने उन्हें साल 1986 में नौकरी दी.
उनकी प्रतिभा को देश और दुनिया में कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाज़ा गया. उन्हें 1988 में पद्मश्री, 1995 में संगीत नाटक अकादमी, 2003 में पद्मभूषण, 2018 में फुकुओका पुरस्कार और 2019 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
बिलासपुर विश्वविद्यालय ने साल 2003 और रविशंकर विश्वविद्यालय ने साल 2006 में तीजन बाई को डी.लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित किया.
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तीजन बाई ख़ुद पढ़-लिख नहीं पाईं लेकिन साक्षरता अभियान और स्त्री अधिकार से जुड़े कार्यक्रमों में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. लोक कलाओं का प्रचार-प्रसार का काम करने वाली 'मनमोहना' जैसी संस्थाओं की शुरुआत में भी उनका अहम योगदान रहा.
उनके सफर में तीन जीवनसाथियों ने उनका साथ छोड़ा. कई बार उन्होंने समाज के तिरस्कार का सामना किया. उन्होंने दो पुत्र और एक दत्तक पुत्री को खोया मगर पंडवानी का अभ्यास और गायन नहीं छोड़ा.
उनकी कला प्रशंसकों में शमशेर जैसे कवि, हबीब तनवीर जैसे नाटककार, इंदिरा गांधी जैसी राजनीतिज्ञ, शशि कपूर जैसे अभिनेता और रणवीर कपूर जैसे कलाकार रहे हैं.
फ़िल्मों की शौकीन तीजन बाई के पसंदीदा अभिनेता अमिताभ बच्चन हैं जिनके अभिनय की प्रशंसा करते हुए वह थकती नहीं. वो अक्सर उन पर फ़िल्माया गाना 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है' गुनगुनाती रहती हैं.
तीजन बाई की लय दक्षता, कथा स्मृति, अभिनय कुशलता और अनुभवों ने पंडवानी की कथा को निश्चित तौर पर लोकप्रिय और प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
तीजन बाई के पंडवानी गायन पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कला समीक्षक अशोक वाजपेयी ने कहा, "उनका गायन अभिनय के साथ होता है. यह एक कद्दावर, जोश और ऊर्जा से भरी स्त्री का गायन है. उसमें कोमलता और वात्सल्य से लेकर हिंसा, प्रहार, अवसाद जैसे अनेक भाव बारी-बारी से आते हैं."
"यह सिर्फ़ कथा-गायन नहीं है. महाभारत की अपनी कथा वृत्ति के अनुरूप, तीजन बाई मूल कथा से अलग आज की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर तीखी टिप्पणियां भी करती चलती हैं, जो उनकी कला को एक तरह की तीखी-पैनी प्रासंगिकता भी देता है."
भिलाई के नज़दीक गनियारी गांव के पारधी टोले में कई कच्चे-पक्के घर हैं. इन्हीं में एक घर में तीजन बाई अपने परिवार के साथ रह रही हैं. उम्र और तबियत दोनों उनका साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन पंडवानी को लेकर उनका जोश कम नहीं हुआ है.
अपने बरामदे के सोफे़ पर पान चबाती तीजन बाई से जब भी पंडवानी की चर्चा करो, तो वह गुलाब के फूल की तरह खिल उठती हैं.
छत पर बंदर से लिपटे बच्चे को दिखाते हुए तीजन बाई ने कहा, "जैसे उसके बच्चे ने मां को पकड़ रखा है मैंने उसी तरह से पंडवानी को पकड़ रखा है. पंडवानी ही मेरा बेड़ा पार लगाएगी."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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