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भारत का वो रहस्यमयी इलाका, जहां ऊंची जाति की महिलाएं खुद चुनती थीं कई पति… खुले रिश्तों का राज जानकर आप चौंक जाएंगे….

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त्रावणकोर में नायर जाति की महिलाएं संबंधम के जरिए कई पति रखती थीं. ये पति केवल रात में ही आ सकते थे. बच्चों से उनका कोई लेना देना नहीं होता था.

भारत का एक इलाका है त्रावणकोर. यहां की उच्च जाति ब्राह्मण नायर महिलाएं कभी कई पति रखती थीं. यहां की समाज सत्ता का तानाबाना मां के चारों ओर घूमता था, पिता नहीं. वो जीवन में केवल एक बार शादी करती थीं लेकिन कई पति रखती थीं, जिसे संबंधम कहा जाता था. इसे कभी किसी को कोई एतराज नहीं हुआ, क्योंकि ये उनकी परंपरा का हिस्सा था. ये एक तरह से खुले विवाह की प्रथा थी, बस इसमें एक ही शर्त थी कि महिला के जीवन में जितने पुरुष आएंगे वो ब्राह्मण या समकक्ष उच्च जाति वाले ही होंगे.

वैसे तो भारतीय समाज का अधिकांश हिस्सा पितृसत्तात्मक ढांचे पर आधारित रहा है, जहां विवाह, परिवार और संपत्ति पुरुष की भूमिका के चारों ओर घूमती थी. लेकिन दक्षिण भारत के त्रावणकोर (अब केरल में) में एक ऐसा सामाजिक ढांचा मौजूद था, जिसने इन परंपराओं को पूरी तरह चुनौती दी.यहां के नायर समाज में संबंधम नामक एक अनूठी विवाह प्रथा प्रचलित थी, जहां महिलाएं पुरुषों से सामाजिक रूप से जुड़ सकती थीं, विवाह के बगैर भी. छोड़ भी सकती थीं. इस व्यवस्था में न तो पुरुष पति होते थे और न ही महिला पत्नी, फिर भी संबंध वैध माने जाते थे.

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इसमें जब लड़की बड़ी हो जाती थी तो उसे एक परंपरा थाली केट्टू कल्याणम से गुजरना पड़ता था. ये तब होती थी जब लड़की की यौवन की शुरुआत होती थी. इसी दौरान प्रतीकात्मक तौर पर उसका विवाह किसी पुरुष के साथ होता था, जो ब्राह्मण या ऊंची जाति का होता था. ये एक तरह का संस्कार था. इसे विवाह कहा जाता था. इसमें दोनों को तीन दिन साथ रहना होता था, एकांत में साथ-साथ. इसे कौमार्य विच्छेदन से भी जोड़ा जाता था. इसे उसके विवाह से जोड़ा जाता था.

इसके बाद पुरुष औऱ महिला अपने अपने रास्ते चल पड़ते थे. इसके बाद महिला के जीवन में कितने भी पति आ सकते थे. जिसे संबंधम कहा जाता था. हैरानी की बात ये होती थी कि दिन में कोई ब्राह्मण पुरुष ये दावा नहीं कर सकता था कि वो उसका पति है. ना वो दिन में उससे मिल सकता था, ना छू सकता था, ना उसके घर में जाकर भोजन कर सकता था. लिहाजा पुरुष रात में चुपचाप महिला के पास जाते थे. उसके दरवाजे पर अपना हथियार रखकर ये जताते थे कि उस महिला के साथ कोई पुरुष है.

एक महिला एक साथ कितने भी पुरुषों के साथ संबंधम रख सकती थी. कह सकते हैं कि ये पति असल में केवल विजिटिंग हसबैंड होते थे. इस संबंध में कोई वैवाहिक बंधन या जिम्मेदारी नहीं होती थी. महिला जब चाहे संबंधम को समाप्त कर सकती थी, पुरुष भी ऐसा कर सकता था. संबंधम विवाह भी नहीं था. लेकिन सामाजिक सहमति इसे हासिल थी. बाद में ब्रिटिश कानून ने इसे “विवाह” मानने से इनकार किया.

नायर समाज मरूमक्कथयम नामक मातृसत्तात्मक प्रणाली का पालन करता था. इसमें वंश, नाम, संपत्ति और उत्तराधिकार मां की ओर से चलते थे. बच्चे मां के कुल में गिने जाते थे, पिता की भूमिका केवल जैविक होती थी. महिलाओं का घर (थारावाडु) ही उनके जीवन का केंद्र होता था.पुरुषों को अपने बच्चों से अधिक अपनी बहनों के बच्चों से लगाव होता था. वे अपनी बहनों के बच्चों की शिक्षा, पालन-पोषण और विवाह के लिए जिम्मेदार होते थे. संबंधम यानि विवाह के बावजूद पुरुष को न तो बच्चों पर कोई अधिकार होता था, न उत्तराधिकार में हिस्सा.

नायर महिलाएं जन्म से ही थारावाडु (मातृवंशीय संयुक्त परिवार) की सदस्य होती थीं. थारावाडु में ज़मीन, घर, खेती, आमदनी, किराया आदि शामिल होता था. महिला को इस थारावाडु की संपत्ति में हिस्सा मिलता था और वह सह-अधिकारिणी मानी जाती थी. थारावाडु की वरिष्ठ महिला घर की मुखिया बन सकती थी.उच्च वर्ग की ये नायर महिलाएं भूमि-स्वामिनी होती थीं. किसानों से लगान वसूलती थीं. उन्हें अपने जीवनयापन के लिए किसी पुरुष पर आश्रित रहने की जरूरत नहीं थी.

संबंधम को त्रावणकोर और मलाबार के समाज में पूरी मान्यता प्राप्त थी. इसे अनैतिक या अवैध नहीं माना जाता था, बल्कि यह सामाजिक जीवन का स्वाभाविक हिस्सा था. यह एक प्रकार की सांस्कृतिक बहुपति प्रथा थी.

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ब्रिटिश ईसाई मिशनरियों और न्यायाधीशों को संबंधम की परंपरा अनैतिक और “असभ्य” लगी. उन्होंने पितृसत्तात्मक विवाह व्यवस्था को “सभ्य समाज की पहचान” बताया।जब 19वीं सदी के अंत में केरल में शिक्षा, ईसाई धर्मांतरण और आधुनिक विचारधारा का प्रवेश हुआ तो नायर समाज के भीतर से भी कई लोगों ने संबंधम का विरोध करना शुरू किया. अंग्रेजों ने एक कानून बनाया नायर अधिनियम, 1925, इसमें संबंधम को कानूनी विवाह मानने से इनकार कर दिया. त्रावणकोर विवाह अधिनियम, 1933 के जरिए संबंधम खत्म करके पितृसत्तात्मक विवाह प्रणाली की शुरुआत की गई.

इसके बाद नायरों में भी परंपरागत विवाह, पिता की भूमिका और निजी संपत्ति की धारणा आई. आज के नायर परिवारों में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार विधिवत विवाह होते हैं. अब ये परंपरा पूरी तरह खत्म हो चुकी है. हालांकि केरल में नायर समुदाय की महिलाओं में स्वतंत्रता का असर आज भी दिखता है. वो शिक्षित, कामकाजी और अपेक्षाकृत आत्मनिर्भर होती हैं और आमतौर पर खुले विचारों की.

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