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भारत में अप्रैल 2025 में वनस्पति तेल आयात में 32% की गिरावट, क्या सस्ता होगा खाने का तेल?

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दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक भारत है. लेकिन अप्रैल 2025 में देश में वनस्पति तेल आयात में 32% की भारी गिरावट दर्ज की। जिसे भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल में खाद्य तेल का आयात घटकर 8.91 लाख टन रह गया। पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 13.18 लाख टन था। तो क्या आयात में गिरावट उपभोक्ताओं के लिए राहत लेकर आएगी या उनकी जेब पर भार बढ़ेगा? पाम तेल आयात में गिरावट देश में पाम आयल का आयात 53% घटकर 3.21 लाख टन पर आ गया है। इन आंकड़ों में कच्चा पाम तेल 2.41 लाख टन रहा। इसके अलावा सूरजमुखी के तेल के आयात में 23% और सोयाबीन तेल आयात में 20% की कमी आई। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन का कहना है कि आयत में कमी होने से भले ही विदेशी मुद्रा की बचत होगी, लेकिन स्टॉक की कमी उपभोक्ताओं को परेशान कर सकती है। खाद्य तेल के आयात में कमी के यह हैं कारण नेपाल से रिफाइंड तेल के आयात और घरेलू सरसों की उपलब्धता के कारण खाद्य तेल के आयात पर असर हुआ है। खाद्य तेल की कुल जरूरत का भारत लगभग 60% आयात करता है। तेल वर्ष 2024-25 (नवंबर-अक्टूबर) के पहले छह महीनों में कुल आयात 65.02 लाख टन रहा, जो पिछले साल 70.69 लाख टन था। आम आदमी की जेब पर पड़ेगा असर?सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन का कहना है कि 1 मई 2025 तक बंदरगाहों पर केवल 13.51 लाख टन तेल का स्टॉक था। आंकड़ा पिछले कई वर्षों का सबसे न्यूनतम है। खाद्य तेल आयात में कमी से भले ही भारत आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ा रहा है, लेकिन त्यौहारी सीजन में इसका असर दिखाई पड़ सकता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि त्यौहारी सीजन में खाद्य तेलों की कीमत में 5 से 10% की वृद्धि हो सकती है। सरकार के द्वारा भले ही कई तिलहन उत्पादन योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन उत्पादन अभी भी मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है। सरकार को आयात शुल्क में संतुलन, स्टॉक प्रबंधन और तिलहन की खेती को प्रोत्साहन देने पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा विशेषज्ञयों का यह भी कहना है कि भारत सरकार को इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों के साथ व्यापारिक रणनीतियों को मजबूत करना होगा।वनस्पति तेल आयात में कमी एक ओर आत्मनिर्भरता की ओर कदम है, तो दूसरी ओर कीमतों को नियंत्रित करना सरकार के लिए चुनौती होगा। उपभोक्ताओं को सस्ते तेल के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है।
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