हाल ही में पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि आपदा के समय देशों का व्यवहार कैसा होना चाहिए? क्या सहयोग का, या फिर आरोप-प्रत्यारोप का? कुछ पाकिस्तानी अधिकारियों और जनता ने जल्दबाज़ी में यह मान लिया कि भारत द्वारा बांधों से पानी छोड़ने के कारण यह विनाशकारी स्थिति उत्पन्न हुई। लेकिन विशेषज्ञों की राय इससे बिल्कुल भिन्न है। जल विशेषज्ञों का कहना है कि इस वर्ष मानसून और ग्लेशियरों के पिघलने की तीव्रता इतनी अधिक थी कि भारत और पाकिस्तान दोनों के बांध अपनी अधिकतम क्षमता तक पहुँच गए। जब बांध अपनी सीमा पर पहुँचते हैं, तो संरचना की सुरक्षा के लिए पानी छोड़ना आवश्यक हो जाता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, न कि किसी देश की जानबूझकर की गई कार्रवाई। भारत ने पाकिस्तान को सतलुज नदी में संभावित बाढ़ के बारे में चेतावनी भी दी थी। उत्तरी राज्यों में लगातार बारिश के कारण प्रमुख बांधों से अतिरिक्त पानी छोड़ना पड़ा, जिसकी सूचना नई दिल्ली ने मानवीय आधार पर पाकिस्तान सरकार को दी थी.
भारत की स्थिति
वास्तव में, भारत भी इस बाढ़ से प्रभावित हुआ है, और कुछ क्षेत्रों में स्थिति पाकिस्तान से भी अधिक गंभीर रही है। हिमाचल प्रदेश और उत्तरी राज्यों में रिकॉर्ड बारिश ने स्थानीय ढांचे को चुनौती दी। यह सोचना कि भारत ने जानबूझकर पाकिस्तान की ओर पानी छोड़ा, न केवल तथ्यों से परे है, बल्कि आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक सहयोग की भावना को भी कमजोर करता है.
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान में बाढ़ भारत की जानबूझकर की गई कार्रवाई का परिणाम नहीं है। मध्य अगस्त से उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भारी बारिश हो रही है, जिसके कारण लगभग सभी नदियाँ और उनकी सहायक नदियाँ खतरे के स्तर से ऊपर बह रही हैं। पंजाब प्रांतीय सरकार ने कहा था कि अभूतपूर्व मॉनसून बारिश और भारत द्वारा छोड़े गए अतिरिक्त पानी के कारण सतलुज, रावी और चिनाब का जलस्तर बढ़ गया। जल विशेषज्ञ डॉ. हस्सान एफ. खान ने बताया कि हर बांध में दो मुख्य प्रणाली होती हैं— नियमित रिलीज़ गेट्स और स्पिलवे। नियमित गेट्स का उपयोग कृषि जैसे जल आपूर्ति की ज़रूरतों के लिए होता है, लेकिन जब बांध अपनी अधिकतम क्षमता तक भर जाता है, तो पानी को रोका नहीं जा सकता.
भारत का आधिकारिक दावा
डॉ. हस्सान के अनुसार, भारत ने हाल के दिनों में कई बांधों से पानी छोड़ा क्योंकि वे अपनी पूरी क्षमता तक भर चुके थे। यह भारत का आधिकारिक दावा भी है। पाकिस्तान सीधे तौर पर इसकी पुष्टि नहीं कर सकता, लेकिन संदर्भ में यह तार्किक प्रतीत होता है। इस साल की बाढ़ में अत्यधिक वर्षा और मौसम दोनों की भूमिका रही है। भारत ने, विशेषकर हिमाचल प्रदेश में रिकॉर्डतोड़ बारिश देखी, जिससे नदियों में भारी जलप्रवाह आया। एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. हस्सान ने दोहराया कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि भारत ने जानबूझकर पाकिस्तान को नुकसान पहुँचाने के लिए पानी छोड़ा। उन्होंने कहा— “अटकलें लगाई जा सकती हैं, लेकिन अब तक कभी भी जानबूझकर की गई कार्रवाई का प्रमाण नहीं मिला।”
जल प्रणाली की व्याख्या
मुहम्मद उमर करीम ने क्षेत्र की प्राकृतिक जल प्रणाली की व्याख्या करते हुए कहा, "हमारे क्षेत्र में सर्दियों में पानी बर्फ और ग्लेशियर के रूप में जम जाता है और गर्मियों में पिघलता है। जब यह मानसून की बारिश के साथ मिल जाता है तो नदी प्रवाह बढ़ जाता है।" इसके अलावा, पर्यावरण वकील अहमद रफ़ाए आलम ने कहा कि दोनों देशों के बांधों का ढाँचा लगभग एक जैसा है। उन्होंने कहा कि भारत के पास झेलम, ब्यास और रावी पर प्रमुख बांध हैं, जबकि पाकिस्तान के पास मंगला और तर्बेला बांध हैं। दोनों देश मानसून और ग्लेशियर का पानी शीतकालीन फ़सलों के लिए जमा करते हैं और दोनों के बांध अमेरिकी कंपनियों ने बनाए हैं।
भविष्य की दिशा
इस घटना से सीख यह होनी चाहिए कि जल संसाधन और आपदा प्रबंधन सीमा-पार सहयोग का क्षेत्र हैं। दोषारोपण से न तो जनहानि रुक सकती है और न ही भविष्य की त्रासदी टाली जा सकती है। बल्कि ज़रूरत इस बात की है कि भारत और पाकिस्तान मिलकर जलविज्ञान, मौसम पूर्वानुमान और नदी प्रबंधन में साझा रणनीति विकसित करें। यही वह रास्ता है, जिससे आने वाले समय में दोनों देशों के नागरिकों को राहत मिल सकती है और प्रकृति की मार से कुछ हद तक सुरक्षा भी.
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