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सैम मानेकशॉ और रणछोड़दास 'पागी': एक अद्भुत कहानी

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सैम मानेकशॉ: भारतीय सेना के महान नेता

सैम मानेकशॉ का नाम भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उन्होंने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, वे बांग्लादेश के निर्माण में भी एक प्रमुख व्यक्ति थे। मानेकशॉ ने 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया था। उनका पूरा नाम 'होरमुजजी फ्रामदी जमशेदजी मानेकशॉ' था, लेकिन उनकी बहादुरी के कारण उन्हें 'सैम बहादुर' के नाम से जाना जाता था।


रणछोड़दास 'पागी': एक अद्वितीय गाइड

सैम मानेकशॉ के साथ जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं, जिनमें से एक रणछोड़दास 'पागी' का है। रणछोड़दास का जन्म गुजरात के एक साधारण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय में भेड़, बकरी और ऊंटों की देखभाल की। जब वे 58 वर्ष के थे, तब उन्हें पुलिस गाइड के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी विशेष क्षमता थी कि वे ऊंट के पैरों के निशान से यह बता सकते थे कि उस पर कितने लोग सवार थे।


रणछोड़दास की बहादुरी image

रणछोड़दास ने भारतीय सेना में स्काउट के रूप में भर्ती होकर कई महत्वपूर्ण मिशनों में भाग लिया। 1965 के युद्ध में, उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों की पहचान करने में मदद की और सेना को समय पर गंतव्य तक पहुँचाने में सहायता की। सैम मानेकशॉ ने रणछोड़दास को 'पागी' नाम का विशेष पद दिया, जो उनके अद्वितीय कौशल को दर्शाता है।


रणछोड़दास का योगदान और सम्मान image

रणछोड़दास ने 1971 के युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले, जैसे 'संग्राम पदक' और 'पुलिस पदक'। सैम मानेकशॉ के अंतिम समय में, उन्होंने 'पागी' का नाम बार-बार लिया, जो उनकी यादों में गहराई से बसा हुआ था।


रणछोड़दास का अंतिम समय image

रणछोड़दास ने 2009 में सेना से सेवानिवृत्त होने के समय 108 वर्ष की आयु में थे। उनका निधन 2013 में 112 वर्ष की आयु में हुआ। उनके नाम पर कच्छ बनासकांठा सीमा पर एक बॉर्डर का नाम रखा गया है, जो उनकी विरासत को जीवित रखता है।


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