भारत में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एक साथ रहते हैं, और हर धर्म की अपनी विशेष परंपराएं और मान्यताएं होती हैं। इनमें से कुछ धार्मिक मान्यताएं वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। जैन धर्म इस संदर्भ में एक उदाहरण है।
जैन धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई है और इसे कई लोग सनातन धर्म की एक शाखा मानते हैं। समय के साथ, यह एक अलग धर्म के रूप में विकसित हुआ। जैन धर्म में कई परंपराएं हैं, जिनमें से एक परंपरा सूर्यास्त के बाद भोजन न करने की है।
यह केवल जैन धर्म में ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के कुछ ग्रंथों में भी सूर्यास्त के बाद भोजन न करने की सलाह दी गई है। जैन धर्म में इस परंपरा के पीछे दो मुख्य कारण हैं: एक धार्मिक और दूसरा आयुर्वेदिक।
सूर्यास्त के बाद भोजन न करने के कारण इस कारण सूर्यास्त बाद नहीं करना चाहिए भोजन
1. जीव हत्या से बचने के लिए: जैन धर्म में अहिंसा का पालन बहुत सख्ती से किया जाता है। जैन लोग किसी भी जीव की हत्या से बचने का प्रयास करते हैं। सूर्यास्त से पहले भोजन करने का यह नियम इस धारणा से जुड़ा है कि रात में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है।
यदि रात में भोजन किया जाए, तो संभावना होती है कि ये सूक्ष्म जीव भोजन में गिर जाएं, जिससे जीव हत्या हो सकती है। इसलिए जैन धर्म में रात को भोजन करने से मना किया गया है।
2. अच्छी सेहत के लिए: स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी सूर्यास्त से पहले भोजन करना फायदेमंद होता है। कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। पाचन तंत्र की तुलना कमल के फूल से की जाती है, जो सूर्योदय के साथ खिलता है और सूर्यास्त के साथ बंद हो जाता है।
इसी प्रकार, पाचन तंत्र भी सूर्य की रोशनी में सक्रिय रहता है, जबकि सूर्यास्त के बाद यह बंद हो जाता है। इसलिए, यदि सूर्यास्त के बाद भोजन किया जाए, तो वह पाचन तंत्र में ठीक से नहीं समाहित हो पाता। इससे शरीर को आवश्यक ऊर्जा नहीं मिलती और भोजन व्यर्थ हो जाता है।
जल्दी भोजन करने का एक और लाभ यह है कि यह रात को सोने से पहले अच्छे से पच जाता है। चिकित्सक भी सलाह देते हैं कि खाने के तुरंत बाद नहीं सोना चाहिए। इसलिए शाम को भोजन करना एक अच्छा विकल्प है।
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