नई दिल्ली, 7 अप्रैल . आयुर्वेद में औषधियों के प्रभावी उपयोग हेतु उनका उचित ऋतु व स्थान के अनुसार संग्रह अत्यंत आवश्यक माना गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि हर औषधि की गुणवत्ता उसके संग्रह के समय और स्थान से प्रभावित होती है. हजारों वनस्पतियों के लिए निश्चित समय तय करना कठिन है, लेकिन कुछ सामान्य सिद्धांत प्राचीन ग्रंथों में वर्णित हैं.
सुश्रुत के अनुसार, प्रावृट् ऋतु में मूल, वर्षा में पत्र, शरद् में छाल, वसन्त में सार और ग्रीष्म में फल का संग्रह उपयुक्त होता है. हालांकि, आधुनिक दृष्टिकोण से यह मत पूर्णतः उपयुक्त नहीं माना गया. आयुर्वेदाचार्य कहते हैं कि सौम्य गुण वाली औषधियां (मधुर, तिक्त, कषाय रस वाली) सौम्य ऋतुओं- वर्षा, शरद् और हेमन्त में संग्रहित की जानी चाहिए. वहीं, आग्नेय औषधियां (कटु और अम्ल रस वाली) वसन्त, ग्रीष्म और प्रावृट् जैसे उष्ण ऋतुओं में ही संग्रह करनी चाहिए. इससे उनकी गुणकारिता अधिक प्रभावी रहती है.
इसी तरह हेमन्त में कन्द, शिशिर में मूल, वसन्त में पुष्प और ग्रीष्म में पत्तों का संग्रह गुणकारी होता है. शरद ऋतु में केवल नये, ताजे, रस, गंध और रंगयुक्त औषधियां ही प्रयोग में लाई जानी चाहिए. अगर ताजे न मिलें, तो एक वर्ष से अधिक पुराने औषधिद्रव्यों का उपयोग नहीं करना चाहिए. वहीं, गुड़, धान्य, घी और शहद जैसे पदार्थ एक वर्ष से अधिक पुराने हों तो औषध प्रयोग के लिए उपयुक्त माने जाते हैं.
शार्ङ्गधर के अनुसार, रसयुक्त औषधियां शरद ऋतु में और वमन तथा विरेचन हेतु औषधियां वसन्त ऋतु के अंत में ग्रहण करनी चाहिए. भूमि की विशेषता भी औषधियों की गुणवत्ता तय करती है. पृथ्वी और जल गुणों वाली भूमि से विरेचक औषधियां, जबकि अग्नि, वायु और आकाश गुणों वाली भूमि से वमन औषधियां अधिक गुणकारी होती हैं.
संग्रह के बाद औषधियों का भंडारण छाया या मंद धूप में सुखाकर स्वच्छ, बंद, पूर्व या उत्तरमुखी द्वार वाले गोदाम में किया जाना चाहिए. उन्हें धूल, धुआं, चूहे, जल आदि से बचाना जरूरी है और कुछ स्थानों से औषधि संग्रह नहीं करना चाहिए. जैसे- सांप के बिल, श्मशान, ऊसर भूमि, गीली या कीटों से ग्रस्त जगह, सड़कों के किनारे तथा जली या पाले से झुलसी वनस्पतियां गुणहीन मानी जाती हैं.
हिमालय की वनस्पतियां सबसे उत्तम मानी जाती हैं, क्योंकि वे शीतल और शक्तिशाली होती हैं. वहीं, विन्ध्याचल की औषधियां गर्म प्रभाव वाली होती हैं. पंजाब, राजस्थान, बिहार और नेपाल की तराई की औषधियां मध्यम गुणवत्ता वाली होती हैं. इस प्रकार, ऋतु और स्थान के अनुसार औषधि का संग्रह आयुर्वेद के अनुसार न केवल औषधि की प्रभावशीलता बढ़ाता है, बल्कि रोगों पर उसका असर भी तीव्र और स्थायी बनाता है.
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डीएससी/केआर
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