New Delhi, 4 सितंबर . कहा जाता है कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है. कुछ ऐसी ही कहानी है इटावा के रहने वाले अजीत सिंह यादव की, जिन्होंने अक्षमताओं को पीछे छोड़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय फलक पर देश को गौरवान्वित किया है.
अजीत सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में 5 सितंबर 1993 को हुआ था. 2017 में हुई एक ट्रेन दुर्घटना में अपने दोस्त अंशुमन सिंह की जान बचाने की कोशिश में अजीत ने अपना बायां हाथ खो दिया. बाएं हाथ की कोहनी के नीचे का हिस्सा कट गया. इस हादसे ने उनके जीवन को बदल दिया. ऐसे हादसे के बाद किसी का जीवन निराशा के गहरे अंधकार में समा जाएगा, लेकिन अजीत ऐसे नहीं थे. उनके नाम में ही जीत है और इसे उन्होंने चरितार्थ किया.
निराश होकर बैठने की जगह अजीत ने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और जैवलिन खेल में अपनी प्रतिभा को निखारा. उनकी यात्रा आसान नहीं थी. लेकिन, दृढ़ संकल्प और कठिन मेहनत के बल पर जैवलिन में उन्होंने देश का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया. अजीत ने 2024 में पेरिस में आयोजित पैरालंपिक खेलों में एफ46 श्रेणी में जैवलिन थ्रो में 65.62 मीटर की दूरी के साथ रजत पदक जीता.
2022 में एशियन पैरा गेम्स में उन्होंने ब्रांज जीता. विश्व पैरा चैंपियनशिप 2024 में ब्रांज, 2023 में गोल्ड, 2019 में ब्रांज जीता. 2019 में बीजिंग में आयोजित विश्व पैरा ग्रैंड प्रिक्स में गोल्ड और 2021 में दुबई में आयोजित विश्व पैरा ग्रैंड प्रिक्स भी उन्होंने गोल्ड जीता था. सभी इवेंट में उन्होंने एफ46 केटेगरी में हिस्सा लिया था.
खेल के साथ-साथ अजीत सिंह यादव ने उच्च शिक्षा हासिल की है. उन्होंने लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान, एलएनआईपीई, ग्वालियर से शारीरिक शिक्षा और खेल में पीएचडी की है.
अजीत सिंह यादव को Government of India ने 2025 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया. उनकी कहानी युवाओं को यह सिखाती है कि जीवन की कठिनाइयों के बावजूद, दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.
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पीएके/
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