मुंबई, 22 अप्रैल . भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नई लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (एलसीआर) गाइडलाइंस जारी की हैं, जिसके तहत बैंकों को 1 अप्रैल, 2026 से इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग-इनेबल्ड रिटेल और स्मॉल बिजनेस कस्टमर डिपॉजिट पर 2.5 प्रतिशत का अतिरिक्त रन-ऑफ रेट आवंटित करना होगा.
बैंकों को लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (एलएएफ) और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) के तहत मार्जिन आवश्यकताओं के अनुरूप सरकारी प्रतिभूतियों (स्तर 1 एचक्यूएलए) के बाजार मूल्य को भी एडजस्ट करना होगा.
इसके अलावा, नई गाइडलाइंस में “अन्य कानूनी संस्थाओं” से होलसेल फंडिंग की संरचना को भी तर्कसंगत बनाया गया है. नतीजतन, ट्रस्ट (शैक्षणिक, धर्मार्थ और धार्मिक), पार्टनरशिप, एलएलपी आदि जैसी गैर-वित्तीय संस्थाओं से फंडिंग पर वर्तमान में 100 प्रतिशत की तुलना में 40 प्रतिशत की कम रन-ऑफ रेट लागू होगी.
आरबीआई ने बयान में कहा, “संशोधित गाइडलाइंस 1 अप्रैल, 2026 से लागू होंगी. इससे बैंकों को एलसीआर कैलकुलेशन के लिए अपने सिस्टम को नए मानकों में परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा.”
रिजर्व बैंक ने 31 दिसंबर, 2024 तक बैंकों द्वारा दिए गए आंकड़ों के आधार पर उपरोक्त उपायों का प्रभावी विश्लेषण किया है. यह अनुमान लगाया गया है कि इन उपायों के प्रभाव से उस तिथि तक बैंकों के एलसीआर में समग्र स्तर पर लगभग 6 प्रतिशत अंकों का सुधार होगा.
इसके अलावा, सभी बैंक न्यूनतम एलसीआर आवश्यकताओं को आराम से पूरा करना जारी रखेंगे.
आरबीआई के एक बयान के अनुसार, उम्मीद है कि ये उपाय भारत में बैंकों की तरलता बढ़ाएंगे.
आरबीआई के बयान में कहा गया है कि बैंकों की ओर से दिए गए फीडबैक की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद अंतिम एलसीआर गाइडलाइंस जारी की गई हैं.
लिक्विडिटी कवरेज अनुपात बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति द्वारा विकसित एक रेगुलेटरी स्टैंडर्ड है. इसके लिए बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली लिक्विड संपत्तियों का एक बफर रखने की आवश्यकता होती है, जो 30 दिन के तनाव परिदृश्य में शुद्ध कैश आउटफ्लो को कवर कर सके.
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एबीएस/एबीएम
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