साबरकांठा, 20 अगस्त . देशभर में गणेश उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं. ऐसे में साबरकांठा के इदर के कुकड़िया गांव में महिला समूह ने पर्यावरण-अनुकूल मिट्टी की गणेश मूर्तियों का निर्माण शुरू किया है. यह मूर्ति इको-फ्रेंडली होने से पर्यावरण को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाती.
सखी मंडल का यह प्रयास स्थानीय स्तर पर व्यापक रूप से लोकप्रिय हो रहा है. इससे सखी मंडल की सदस्य आत्मनिर्भर होने के साथ ही आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं.
सखी मंडल की सदस्य नयना बेन प्रजापति ने से बातचीत के दौरान कहा कि सखी मंडल की बहनों ने मिट्टी से गणेश मूर्ति बनाने का काम शुरू किया है. इसका मकसद प्रकृति की रक्षा और प्रदूषण से बचाना है. पीओपी से बनीं मूर्तियां पानी में घुलती नहीं हैं. इससे प्रकृति को बड़ा नुकसान होता है. इसके बाद ही मिट्टी की प्रतिमा बनाने का निर्णय लिया गया. हम सब बहनें इको-फ्रेंडली गणपति बना रही हैं. हमारे द्वारा एक से तीन फुट की मूर्तियां बनाई जाती हैं. इस मूर्ति का विसर्जन घर पर भी कर सकते हैं, इसके लिए नदी या तालाब पर जाने की जरूरत नहीं होती.
सखी मंडल की सदस्य जागृति प्रजापति ने बताया कि पर्यावरण-अनुकूल गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन घर के आंगन में किया जा सकता है, लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों के विसर्जन के बाद भी पूरी तरह से विसर्जन नहीं होता है, तो मूर्तियां क्षतिग्रस्त अवस्था में दिखाई देती हैं, जिससे आस्था को भी ठेस पहुंचती है.
डीआरडीए किंजल पटेल ने बताया कि कुकड़िया गांव की बहनों ने तीन साल पहले State government की महिला सशक्तिकरण योजना के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया था. शुरुआती दौर में लगभग 30 बहनों ने यह प्रशिक्षण प्राप्त किया. वर्तमान में लगभग 10 बहनें भगवान गणेश की मूर्तियां बना रही हैं, जिनमें कुकड़िया गांव की सखी मंडल की महिलाएं एक फुट से लेकर तीन फुट तक की मूर्तियां बना रही हैं. साथ ही, वे जल, थल और पर्यावरण की रक्षा के लिए भी काम कर रही हैं. आज भी, कुकड़िया गांव में सखी मंडल द्वारा बनाई गई मूर्तियां आसपास के क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं. हालांकि, आने वाले समय में यह जरूरी है कि पर्यावरण-अनुकूल गणेश अंतिम व्यक्ति तक पहुंचें.
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एएसएच/डीएससी
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