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नए चीफ जस्टिस ने न्यायिक नियुक्तियों में ज्यादा विविधता पर बल दिया, जानिए क्या कहा

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नई दिल्ली: बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने न्यायिक नियुक्तियों में अधिक विविधता की आवश्यकता पर बल दिया और उच्च न्यायालयों से महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से अधिक उम्मीदवारों की सिफारिश करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैंने कई मुख्य न्यायाधीशों से व्यक्तिगत रूप से कहा है कि यदि उनके उच्च न्यायालय में महिला उम्मीदवार नहीं हैं तो वे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही अच्छी महिला अधिवक्ताओं में से चयन करें, और कुछ हद तक हम इसमें सफल भी हुए हैं। पिता के निर्णय को स्वीकार करने पर खुशी....उन्होंने कहा कि मेरे पिता ने कहा था कि यदि तुम वकील बने रहो तो बहुत सारा पैसा कमा सकते हो, लेकिन अगर तुम संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश बने, तो डॉ. आंबेडकर के सामाजिक और आर्थिक न्याय के विचार को आगे बढ़ा सकते हो। आज मुझे खुशी है कि मैंने अपने पिता के निर्णय को स्वीकार किया। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने बताया कि नव नियुक्त चीफ जस्टिस के लिए आयोजित अभिनंदन समारोह के मौके पर सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के जस्टिस के साथ साथ सीनियर एडवोकेट और देश भर के लीगल एक्सपर्ट मौजूद थे। क्षेत्रिय बार भी प्रतिभा निखारने में सक्षमइस मौके पर चीफ जस्टिस गवई ने विधिक समुदाय के प्रति गहन आभार व्यक्त करते हुए इस आयोजन को पारिवारिक समारोह बताया। चीफ जस्टिस गवई ने नागपुर में अपने आरंभिक दिनों की यादें साझा कीं, जहाँ वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने उन्हें बेहतर अवसरों के लिए मुंबई से नागपुर स्थानांतरित होने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा कि कुछ ही वर्षों में मेरी प्रैक्टिस बहुत अच्छी चल निकली। यह इस बात का प्रमाण है कि क्षेत्रीय बार भी महान प्रतिभाओं को निखारने में सक्षम हैं। चीफ जस्टिस गवई ने इस मौके पर कहा कि उनकी न्यायिक सोच डॉ. आंबेडकर के संवैधानिक आदर्शों और उनके पिता के सामाजिक सक्रियता से प्रेरित रही है। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात को लेकर संदेह था कि मुझे न्यायाधीश पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, क्योंकि मेरे पिता ने कहा था कि यदि तुम वकील बने रहो तो बहुत सारा पैसा कमा सकते हो, लेकिन यदि तुम संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश बनो, तो डॉ. आंबेडकर के सामाजिक और आर्थिक न्याय के विचार को आगे बढ़ा सकते हो। आज मुझे खुशी है कि मैंने अपने पिता के निर्णय को स्वीकार किया। न्यायपालिका और कार्यपालिका में सहयोग की जरूरतन्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती केसों की पेंडेंसी पर बात करते हुए, उन्होंने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता बताई ताकि रिक्तियों को शीघ्रता से भरा जा सके। उन्होंने कहा मैं माननीय सॉलिसिटर से अनुरोध करता हूँ कि वे कार्यपालिका को यह संदेश दें कि सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण के साथ हमें रिक्तियों को जितनी सख्ती से संभव हो, उतनी शीघ्रता से भरना चाहिए ताकि लंबित मामलों की समस्या कुछ हद तक सुलझ सके। हल्के-फुल्के अंदाज़ में उन्होंने कहा कि वे मीडिया इंटरव्यू देने में संकोची हैं। उनका मानना है कि न्यायाधीशों को समाज से जुड़ा रहना चाहिए ताकि वे उसकी समस्याओं को बेहतर समझ सकें और न्यायिक अलगाव के सिद्धांत से वे सहमत नहीं हैं। उनका कहना था कि न्यायाधीश केवल कानून की भाषा में नहीं, बल्कि सामाजिक यथार्थ को भी ध्यान में रखकर निर्णय करें। जब तक आप समाज को नहीं जानेंगे तब तक आप अनभिज्ञ रहेंगेउन्होंने कहा, “मैं थोड़ा शर्मीला हूँ, पर ऐसा नहीं है कि मैं लोगों से घुलता-मिलता नहीं हूँ। कभी-कभी मुझे कहा जाता है कि एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश जो CJI बनने वाला हो, उसे लोगों में इतना नहीं घुलना-मिलना चाहिए, लेकिन मैं उस अलगाव की सोच में विश्वास नहीं रखता। जब तक आप समाज को नहीं जानेंगे, तब तक आप समाज की समस्याओं से भी अनभिज्ञ रहेंगे। आज का न्यायाधीश केवल काले-सफेद शब्दों में निर्णय नहीं दे सकता, उसे ज़मीनी हकीकत भी समझनी होगी। उन्होंने कहा, “मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि जो भी थोड़ा-बहुत समय मेरे पास है, उसमें मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा कि अपने शपथ के अनुसार कानून के शासन और भारत के संविधान को बनाए रखने का कार्य करूं, और देश के सबसे आम नागरिक तक पहुँचने का प्रयास करूं, ताकि संविधान में वर्णित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता का स्वप्न वास्तविकता में परिवर्तित हो सके।
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