नई दिल्ली: पाकिस्तान ने बिना सोचे-समझे पहलगाम आतंकी हमले को अंजाम तो दे दिया। लेकिन उसे पता नहीं था कि भारत इसका बदला सिंधु नदी का पानी रोककर लेगा। भारत ने तुरंत एक्शन लेते हुए सिंधु नदी का पानी रोकने का फैसला लिया। भारत के इस फैसले से पाकिस्तान के लिए परेशानियां कितनी पढ़ने वाली हैं, इसे लेकर सृजना मित्रा दास ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में हिस्ट्री ऑफ रिस्क एंड डिजास्टर के एसोसिएट प्रोफेसर पर्यावरण इतिहासकार डेनियल हैन्स से बात की। सिंधु नदी ने औपनिवेशक शक्ति को मजबूत करने में क्या भूमिका निभाई?जब ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने 19वीं सदी के बीच में सिंध और पंजाब पर कब्जा किया, तो उन्होंने इंडस और उसकी सहायक नदियों जैसे सतलुज से पानी लेकर बड़ी-बड़ी नहर कॉलोनियां बनाईं। उनका मकसद खेती को बदलना और नकदी फसलें उगाकर कृषि कर के जरिए ज्यादा पैसा कमाना था। साथ ही, वे उन समुदायों को मौके देना चाहते थे जिन्हें वे वफादार मानते थे, जैसे रिटायर्ड सैनिक, जिन्हें पंजाब में भूमि अनुदान दिया जाता था। आजादी की लड़ाई तेज होने पर, अंग्रेजों ने ‘विकास’ के नाम पर अपने शासन को सही ठहराने की कोशिश की और सिंधु नदी को इसका बड़ा उदाहरण बनाया। आजादी के बाद सिंधु की क्या कहानी रही?आजादी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक खेती पर आधारित थी। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में सिंचाई बहुत जरूरी थी। लेकिन विभाजन के बाद, जो इलाके पहले से सिंचित थे, वे पाकिस्तान में चले गए। भारत को बड़ी संख्या में आए शरणार्थियों को बसाना था, इसलिए उत्तरी भारत की नदियों पर सिंचाई का तेजी से विकास करना पड़ा। पाकिस्तान के लिए तो सिंधु और उसकी सहायक नदियां ही उसका मुख्य जल स्रोत बन गईं। भारत के पास कई निदयां हैं, लेकिन पाकिस्तान के लिए सिंधु ही सब कुछ है। वर्ल्ड बैंक ने 1960 के सिंधु जल संधि (IWT) को बनाने में क्या भूमिका निभाई और क्यों?1940-50 के दशक में वर्ल्ड बैंक एक नया संगठन था और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी जगह बना रहा था। डेविड लिलिएन्थल नामक एक वरिष्ठ अमेरिकी अफसर ने सुझाव दिया कि वर्ल्ड बैंक को भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवाद सुलझाने में भूमिका निभानी चाहिए। इसका मकसद शीत युद्ध के दौरान दोनों देशों को अमेरिका के पाले में लाना था। वर्ल्ड बैंक ने दोनों सरकारों को बातचीत के लिए तैयार किया। वैसे तो बैंक को बस बातचीत करवानी थी, लेकिन कई बार उन्होंने खुद भी समाधान सुझाए। बाद में अमेरिका ने भी पाकिस्तान में सिंचाई परियोजनाओं के लिए फंडिंग शुरू कर दी। हालांकि, मेरा मानना है कि बैंक ने किसी एक पक्ष का पक्ष नहीं लिया। सिंधु नदी की इकोलॉजिकल पृष्ठभूमि क्या है?सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है और अफगानिस्तान से काबुल नदी इसमें मिलती है। लेकिन असली भारी जल प्रवाह भारत और पाकिस्तान में होता है। सिंधु नदी की घाटी में कई तरह के इकोसिस्टम हैं, हिमालय की ऊंचाई से लेकर दक्षिण पाकिस्तान के दलदली डेल्टा तक। सिंधु बेसिन में ही लाखों लोग रहते हैं, लेकिन इस नदी से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है। जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) सिंधु को कैसे प्रभावित कर रहा है?सिंधु नदी तंत्र बहुत नाजुक स्थिति में है। दक्षिण सिंध का डेल्टा क्षेत्र ब्रिटिश समय से ही सिकुड़ता जा रहा है। इससे समुद्री तूफानों के खिलाफ पाकिस्तान कमजोर हुआ है। पूर्वी नदियों का भी असर हुआ है, जैसे रावी नदी का अधिकांश पानी भारत द्वारा उपयोग किया जाता है और बहुत कम पानी पाकिस्तान पहुंचता है। इसका असर लाहौर शहर पर पड़ा है, जहां सीवेज को सही से बहाने के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं बचा है। साथ ही, हिमालय की ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। भविष्य में कुछ दशकों तक बाढ़ बढ़ेंगी और फिर पानी की भारी कमी हो सकती है। इससे सिंधु घाटी की जीवन व्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा। क्या और भी उदाहरण हैं, जहां पानी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बड़ी भूमिका निभाई?हां, नाइल नदी बेसिन में मिस्र, इथियोपिया और सूडान के बीच पानी को लेकर तनाव रहा है। वहीं, दक्षिण-पूर्व एशिया में मेकोंग नदी को लेकर अच्छा सहयोग देखने को मिला है, जो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच साझा किया जाता है। डेन्यूब नदी यूरोप के कई देशों से होकर बहती है, लेकिन वहां विवाद मुख्यतः नौवहन अधिकार (Navigation Rights) को लेकर होता है। पानी के बंटवारे पर वहां विवाद नहीं है। रिवर ऑफ लाइफ: सिंधु नदी, जो 3,200 किलोमीटर से अधिक बहती है, पृथ्वी की सबसे लंबी नदियों में से एक है; इसके जल का प्रभाव 11,65,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर पड़ता है, जिसमें हरे-भरे हिमालयी पहाड़ों से लेकर अर्ध-शुष्क मैदान तक शामिल हैं।
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