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कविता सेठ Exclusive: मैंने पति के सामने शर्त रखी थी, गाना नहीं छोड़ूंगी और तभी शादी करूंगी

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'गूंजा सा है कोई इकतारा' और 'तुम ही हो बंधु' जैसे गानों को अपनी सूफियाना आवाज से सजाने वाली सिंगर कविता सेठ इन दिनों बेटे कनिष्क सेठ संग मिलकर बतौर कंपोजर भी इंडस्ट्री को खूबसूरत धुनों से नवाज रही हैं। हिट गाने 'रंगी सारी गुलाबी चुनरिया' के बाद अब मां-बेटे की यह जोड़ी 'केसरी चैप्टर 2' के गाने 'खुमारी' के लिए प्यार बटोर रही है। पेश है उनसे यह खास बातचीत: आपकी गायिकी का सूफियाना अंदाज आपकी पहचान है। बरेली जैसे छोटे शहर में बड़ी होते हुए इस ओर आपका रुझान कैसे हुआ? यह अलहदा स्टाइल आपने कैसे तलाशा?हर बंदे का अपना एक अंदाज होता है, बस उसे ढूंढ़ने की बात होती है। हम जब दूसरों से वैलिडेशन मांगते हैं ना कि मैं ये कर लूं तब गड़बड़ होती है। जब हम अपनी बात को अपनी तरह से रखते हैं, तभी अलग और यूनिक दिखते हैं। मेरे साथ तो ऐसा था कि मेरी आवाज ही बहुत अलग थी। मैं लता जी (लता मंगेशकर), आशा जी (आशा भोसले) या इंडस्ट्री के स्टाइल में गा ही नहीं सकती थी। इंडस्ट्री में एक मांग होती है हाई पिच वॉयस, मेरी वो भी नहीं थी तो मैंने अपना स्टाइल तलाशा। अपने स्टाइल में गाने में ज्यादा मेहनत लगती है, मगर खुद पर भरोसा करना होता है और हमने वही किया। यहां इंडस्ट्री में आकर भी हम किसी के आगे गिड़गिड़ाए नहीं। मैंने अपने लाइव शोज शुरू कर दिए, लोगों को इनवाइट करना शुरू किया। लोगों ने सुना तो उन्हें लगा कि अलग आवाज है तो काम मिलना शुरू हुआ। हो सकता है कि आपको काम कम मिले, लेकिन पहचान बड़ी बनेगी। जैसे, मेरे पहले गाने और 'गैंगस्टर' के गाने के लिए अवॉर्ड तक में नामित हुई। फिर भी उसके तीन साल बाद तक कोई काम नहीं मिला, मगर फिर इकतारा जैसा गाना मिला, जो आज भी याद किया जाता है। छोटे शहरों में अक्सर लड़कियों का गाना-बजाना शादी के बाद शौक तक सिमट कर रह जाता है। उनके तानपुरे धूल फांकने लगते हैं। आपने घर-बच्चों के बीच अपने संगीतमय सफर को कैसे जारी रखा?ये बिल्कुल सही है। ऐसा अक्सर होता है। मेरी भी अरेंज्ड मैरिज हुई थी, पर मैंने अपने पति से मेरी पहली शर्त यही रखी थी कि मैं शादी तभी करूंगी कि मेरा म्यूजिक बंद नहीं कराओगे और उन्होंने बहुत मदद की। मैंने दोनों बच्चे होने के बाद प्रफैशनली अपना करियर शुरू किया है। दिल्ली में कई साल मैंने शोज किए। वहीं, सतीश कौशिक जी ने मुझे सुना और मुझे फिल्म वादा में गाने का ब्रेक दिया था। उसके बाद महेश भट्ट साहब ने कहा कि तुम्हारी आवाज तो सरहद पार वाली आवाज है, मगर सीरियस काम करना है तो मुंबई आकर रहो, क्योंकि कभी भी काम आता है तो यहां रहना जरूरी है। फिर, मैं सब छोड़कर बच्चों के साथ यहां शिफ्ट हो गई। जबकि, दिल्ली में अच्छे खासे शोज कर रही थी, पैसे कमा रही थी, वो सब छोड़कर मुंबई आकर जीरो से शुरुआत की क्योंकि वो जुनून था कि कुछ बड़ा करना है और फिल्में बहुत बड़ा माध्यम है। अगर कोई अच्छा गाना हिट हो जाए तो कुछ सेकंड में आप करोड़ों लोगों तक पहुंच जाते हैं और सालों साल लोगों के दिलों में रहते हैं।
जहां तक गाने कंपोज करने की बात है, आप काफी चुनिंदा काम करती हैं। उसकी क्या वजह है? खुमारी की आमद कैसे हुई?यह सही है कि मैं गानों के बोल को लेकर थोड़ी चूजी हूं। मेरे लिए पोएट्री अहम है, फिर धुनों की तो एक आमद होती है कि एकदम से कुछ आ गया। जैसे, 'खुमारी' भी ऐसे ही बना कि मैं ऐसे ही कुछ गुनगुना रही थी, राग दरबारी जेहन में चल रहा था, फिर ये बोल मिले, तो धुन बन गई, मगर फिर मेरे बेटे और को-कंपोजर कनिष्क ने इस गजल को जैज जैसे नए साउंड के साथ ऐसा खूबसूरत रंग दे दिया जो मैं सोच भी नहीं सकती थी और मैं खुश हूं कि भले ही हम कम काम करते हैं, मगर लोगों को वो पसंद आता है। मेरे लिए कंपोजिंग स्वांत: सुखाय वाली बात है। मैंने गाने बनाने की फैक्ट्री नहीं डाली हुई है। मैं अपनी खुशी, अपने शौक के लिए बनाती हूं। फिर, लोगों को वो पसंद आ जाता है ये बोनस है। मेरी कोशिश यह रहती है कि हमारा इतना समृद्ध हिंदुस्तानी संगीत है, उसे आगे लेकर आएं। जैसे, रंगी सारी बहुत मशहूर दादरा है, तो खुमारी को हमने राग दरबारी में कंपोज किया।
आज के समय में फिल्म संगीत का जो दौर चल रहा है, मसलन गानों का ना होना, रीमिक्स की भरमार, अच्छे गानों को प्रमोट ना करना, जैसे खुमारी को भी और प्रमोट किया जाना चाहिए था, इस सब पर आपकी क्या राय है?देखिए, समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। मेरा मानना है कि अच्छा गाना अपनी ऑडियंस तलाश लेता है। आप देखो, जब भी ऊटपटांग चीजें होने लगती है, एकदम से कोई अच्छा गाना आ जाता है। इसलिए, हम वैसा काम नहीं करते कि हर महीने कहें कि ये लो जी गाना। हम सीमित काम करते हैं लेकिन अपना बेस्ट देते हैं और अच्छी चीजें लोगों तक पहुंच जाती है। हमने जो 'रंग सारी' गाना किया था, वो फिल्म में आने से पहले ही मशहूर हो गया था। जबकि हमारा कोई मार्केटिंग एजेंडा नहीं था। हमें बस एक अच्छा गाना बनाकर लोगों से शेयर करना था। यही खुमारी गाने के साथ था। हमने अपनी तरफ से बेस्ट कर दिया। फिल्म तो लोग पसंद की है, तो गाना भी अच्छे सुनने वाले ढूंढ़ लेंगे।
मॉम के साथ जमती है जुगलबंदी: कनिष्क सेठपहले 'रंगी सारी' और अब 'खुमारी', कविता और कनिष्ठ अपनी सफल संगीतमय साझेदारी का श्रेय आपसी समझ को देते हैं। बकौल कविता, 'हमें साथ काम करते वक्त ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। हमें एक दूसरे की खूबियां-खामियां सब पता है, तो मैं कुछ कंपोज करती हूं और कनिष्क को दे देती हूं कि तुम अब सजाओ। कुछ चीजें कनिष्क को नहीं अच्छी लगती तो वे कहते हैं कि मॉम ये अंतरा ऐसे बदल लेते हैं या ऐसा कर लेते हैं तो ये ट्यूनिंग वाली बात है।' वहीं, कनिष्क का कहना है, 'हमारी आपसी समझ बहुत अच्छी है। मॉम की अच्छी बात ये है कि वो यह समझती हैं कि गाना आज के दौर का होना चाहिए, तभी लोग उसे एक्सेप्ट करेंगे। भले ही हमारी पसनैलिटी और स्टाइल बहुत अलग है, लेकिन हमारे बीच तालमेल बहुत अच्छा है।'
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