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सुप्रीम कोर्ट की 'भाई-भतीजावाद' पर एमपी पुलिस को कड़ी फटकार, हिरासत में हिंसा और इकलौते गवाह से जुड़ा मामला

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भोपाल: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। यह फटकार पिछले साल जुलाई में एक व्यक्ति की कथित तौर पर हिरासत में प्रताड़ना और हत्या के मामले में किसी की गिरफ्तारी न होने पर लगाई गई। कोर्ट ने इसे 'भाई-भतीजावाद' का उदाहरण बताया है। कोर्ट का कहना है कि राज्य पुलिस अपने ही अधिकारियों को 'बचा' रही है। जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि यह देश में दुखद स्थिति है कि हिरासत में हिंसा का अपराध लगातार जारी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार फैसले देने के बाद भी अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह बहुत ही भयानक है कि पुलिस एकमात्र गवाह को खत्म करने की कोशिश कर रही है, ताकि अपराध से बचा जा सके। इन्होंने लगाई थी याचिकाजस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस मेहता की बेंच, गंगाराम परधी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। गंगाराम 25 वर्षीय देवा परधी के चाचा हैं। देवा की पिछले साल 13 जुलाई को मध्य प्रदेश के गुना जिले में गिरफ्तारी के बाद मौत हो गई थी। देवा अपनी बारात की आखिरी तैयारी कर रहा था, तभी उसे और गंगाराम को कथित चोरी के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उसी रात देवा के परिवार को बताया गया कि उसकी मौत हो गई है। देवा के परिवार ने पुलिस के इस दावे को खारिज कर दिया कि उसकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। गंगाराम जो इस मामले में एकमात्र गवाह है को बाद में गुना जिला जेल में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उस पर चोरी और सेंधमारी के पांच एफआईआर दर्ज हैं और वह अभी भी हिरासत में है। देवा की मां ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा गंगाराम को जमानत देने से इनकार करने के फैसले को चुनौती देते हुए जमानत याचिका दायर की थी। जमकर लगाई फटकारमंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जांच की अब तक की स्थिति पर एक सीलबंद रिपोर्ट पेश की। उन्होंने कहा कि जांच अभी जारी है और इसे पूरा होने में एक और महीना लगेगा। भाटी ने कहा कि अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि दो अधिकारियों को लाइन ड्यूटी पर भेज दिया गया है। जस्टिस मेहता ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हिरासत में मौत के मामले में यह बहुत अच्छी प्रतिक्रिया है। उन्होंने आगे कहा कि भाई-भतीजावाद और अपने ही अधिकारियों को बचाने का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है। क्या आप चाहेंगे कि आपको एमिकस क्यूरी नियुक्त किया जाए या सीबीआई की ओर से इस मामले को संभालने के लिए नियुक्त किया जाए, बजाय इसके कि आप राज्य पुलिस का प्रतिनिधित्व करें? क्या बोले जस्टिसजस्टिस मेहता ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह हास्यास्पद है, यह अमानवीय रवैया है, बिल्कुल! एक आदमी हिरासत में मर जाता है, और आपको अपने ही अधिकारियों पर हाथ डालने में 10 महीने लगते हैं? आपने उन्हें लाइन ड्यूटी पर क्यों भेजा, क्या कारण है? उनकी मिलीभगत सच पाई गई है, उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है? आप इसे किसी ठोस पदार्थ के फंसने से हुए सदमे में बदलने की कोशिश कर रहे हैं? क्या इससे बेहतर कोई कवर-अप हो सकता है? इस रिपोर्ट में चोटों का उल्लेख कहां है? वकील की दलीलभाटी ने जवाब दिया कि मैं तथ्यों से भाग नहीं सकती। डॉक्टरों में से एक ने कहा है कि (देवा की मौत) शरीर पर चोटों के कारण हुई है। जस्टिस मेहता ने तब कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोटों का उल्लेख कहां है? यह वास्तव में भयानक है। एक 25 वर्षीय युवक, हिरासत में हिंसा से मारा गया, और मेडिकल ज्यूरिस्ट को शरीर पर एक भी चोट नहीं दिखी? राय है कि दिल का दौरा पड़ा? भाटी ने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट में शरीर पर आठ चोटों का उल्लेख है। राज्य सरकार से जांच की अपीलयाचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता पायोषि रॉय ने अदालत से गंगाराम को जमानत देने का अनुरोध किया। इस पर जस्टिस मेहता ने कहा कि वर्तमान में हिरासत में रहना उसके अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए बेहतर है। वह बाहर आता है, तो उसे एक लॉरी से कुचल दिया जाएगा और यह एक दुर्घटना होगी और आप एकमात्र गवाह खो देंगे। ऐसी घटनाएं असामान्य नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट इस बात से नाराज है कि पुलिस ने अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मामले में तेजी से जांच करने और दोषियों को सजा दिलाने को कहा है।
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