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आरएसएस पर बीजेपी के यू-टर्न के मायने....जेपी नड्डा से पीएम मोदी तक...लाल किले के भाषण का बैकग्राउंड क्या है?

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिस तरह से लाल किले के प्राचीर से आरएसएस की सराहना की है, तारीफों के पुल बांधे हैं, इसके 100 वर्षों के संघर्ष की विजय गाथा को शब्दों में बयां करने की कोशिश की है, उससे विपक्षी दलों को मिर्ची लगना स्वाभाविक है। जो दल अभी तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के खिलाफ राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे हैं, उन्हें इसकी तारीफ और वह भी लाल किले से, कैसे बर्दाश्त होगी? लेकिन, बीजेपी तो आरएसएस की विचारधारा से ही पैदा हुई पार्टी है। 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने भी अपने हित में किए गए संघ के संघर्षों को भुलाने की कोशिश की थी। लेकिन, अब उसी पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता और देश के प्रधानमंत्री मोदी को अगर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मिशन पर काम करने वाले इस संगठन का गौरव गान करना पड़ा है, तो इसके पीछे भी निश्चित रूप से एक मजबूत बैकग्राउंड होगा।



आरएसएस के 100 वर्षों की संघर्ष गाथा

पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने संबोधन में आरएसएस की सौ वर्ष की लंबी संघर्ष यात्रा को जिस अंदाज में पेश किया है, उसमें देश के राजनीतिक इतिहास, इसके वर्तमान और भविष्य की भी परछाई नजर आ रही है। पीएम मोदी ने कहा कि देश के निर्माण में हर किसी का योगदान होता है। वे बोले कि "आज मैं बहुत गर्व के साथ एक बात का जिक्र करना चाहता हूं.. आज से 100 साल पहले एक संगठन का जन्म हुआ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ... 100 साल की राष्ट्र की सेवा, एक बहुत ही गौरवपूर्ण स्वर्णिम पृष्ठ है। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को लेकर के 100 साल तक मां भारती का कल्याण का लक्ष्य लेकर के लक्षावधी स्‍वयं सेवकों ने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। सेवा, समर्पण, संगठन और अप्रतिम अनुशासन, यह जिसकी पहचान रही है, ऐसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का यह सबसे बड़ा एनजीओ है एक प्रकार से.... 100 साल का उसका समर्पण का इतिहास है। मैं आज यहां लाल किले के प्राचीर से 100 साल की इस राष्ट्र सेवा की यात्रा में योगदान करने वाले सभी स्वयंसेवकों को आदरपूर्वक स्‍मरण करता हूं और देश गर्व करता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस 100 साल की भव्‍य, समर्पित यात्रा को और हमें प्रेरणा देता रहेगा।"



राष्ट्रवाद के मुद्दे पर सरकार के बढ़ने का संकेत

पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर जब संघ को लेकर भाषण दिया है, वह वो दौर है जब कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ 'वोट चोरी'का आरोप लगाकर मोर्चा खोले हुए है। हालांकि, विपक्ष के दावों पर न तो चुनाव आयोग ने कोई भरोसा किया है और न ही सुप्रीम कोर्ट ने ही चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं पर किसी तरह से उंगली उठाया है। लेकिन, विपक्ष ने बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार को घेरने की कोशिशें नहीं छोड़ी हैं। विपक्ष सरकार से इस कदर दूरी बनाकर चल रहा है कि उसने लोकसभा और राज्यसभा के नेता विपक्ष को भी लाल किला पर आयोजित मुख्य समारोह में उपस्थित नहीं होने दिया, सामान्य शिष्टाचार और प्रोटोकॉल तक का पालन करवाना उचित नहीं समझा। विपक्ष के इस रवैए से संसद का मॉनसून सत्र पहले ही लगभग धुल ही चुका है। ऐसे में पीएम मोदी का खुलकर देश के सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम में आरएसएस की इस तरह से सराहना करना, स्पष्ट संकेत है कि अब उनकी सरकार और पार्टी राष्ट्रवाद के मोर्चे पर और भी खुलकर आगे बढ़ेगी।



आरएसएस से पीछा छुड़ाना पड़ चुका है भारी

पिछले करीब सवा साल में आरएसएस को लेकर भारतीय जनता पार्टी के स्टैंड में यह जमीन और आसमान वाला बदलाव है। बात 2024 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले की है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक अंग्रेजी अखबार से इंटरव्यू में कह दिया था, 'शुरू में हम अक्षम होंगे, थोड़ा कम होंगे, आरएसएस की जरूरत पड़ती थी....आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम हैं...तो बीजेपी अपने आप को चलाती है...यही फर्क है।' राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नड्डा की यह बात आरएसएस के स्वयंसेवकों को बहुत ही नागवार गुजरी। उन्हें काफी मायूसी हाथ लगी। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी की लोकसभा की सीटें 303 से सिमट कर 240 रह गई और बीजेपी अपने दम पर बहुमत के आंकड़े को नहीं पार कर सकी।



विधानसभा चुनावों में मिला आरएसएस का साथ

गलती का एहसास हुआ तो हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के नेताओं ने आरएसएस के स्वयं सेवकों को रिझाने-मनाने की पूरजोर कोशिशें शुरू कर दीं। इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बहुत बड़ा रोल रहा। एनडीए को लोकसभा में सबसे ज्यादा नुकसान कहीं हुआ था तो उसमें महाराष्ट्र भी था। लेकिन फडणवीस की कोशिशों के बाद संघ ने बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर फिर से पूरे जोश और उत्साह से काम करना शुरू किया और एक के बाद एक परिणाम पार्टी के पक्ष में आते चले गए। लोकसभा चुनावों के बाद झारखंड छोड़कर महाराष्ट्र, हरियाणा,दिल्ली जैसे राज्यों में बीजेपी-एनडीए की सरकारें बनीं। जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया।



संगठन के लि संघ जरूरी, बीजेपी का मूल मंत्र!

अब बीजेपी और एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती बिहार विधानसभा चुनाव है। फिर, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में भी 2026 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। अक्टूबर-नवंबर में जब इस साल बिहार विधानसभा के चुनाव हो रहे होंगे, तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपना शताब्दी समारोह मना रहा होगा। इसकी शुरुआत तो अगस्त महीने से ही हो रही है और 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन समारोह का मुख्य दिवस होगा। पीएम मोदी ने लाल किले से संघ के लिए जो कुछ कहा है, उसके बैकग्राउंड में देश की मौजूदा राजनीति का बहुत बड़ा रोल है, क्योंकि अब बीजेपी को पता चल चुका है कि संघ और संगठन उसके लिए सिक्के के दो पहलू हैं और संघ के बिना संगठन की शक्ति कमजोर पड़ने की आशंका हमेशा बनी रहेगी।

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