नई दिल्ली: काफी लोग नौकरी करते हुए अपनी जिंदगी गुजार देते हैं। वहीं कुछ ऐसे होते हैं जो अपने और दूसरों के सपने पूरे करने के लिए नौकरी को दांव पर लगा देते हैं। ऐसा ही कुछ किया शशिशेखर एस और तनुश्री ने। यह कपल सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। दोनों ने अपनी नौकरी छोड़ दी। अब वे पुराने बोर्ड गेम्स को फिर से पॉपुलर बना रहे हैं और लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।
तनुश्री और शशिशेखर प्राचीन मंदिरों में जाते हैं। वहां दीवारों पर बने बोर्ड गेम के डिजाइन देखते हैं। फिर वे उन डिजाइनों को इको-फ्रेंडली बोर्ड गेम्स में बदलते हैं। ये गेम्स बच्चों को सोचने, प्रॉब्लम सॉल्व करने और भारतीय संस्कृति से जुड़ने में मदद करते हैं।
कैसे आया इसका विचार?तनुश्री साल 2013 में मां बनीं। तब उन्हें लगा कि बच्चों के लिए अच्छे भारतीय खिलौने और गेम्स नहीं हैं। ऐसे खिलौने जो बच्चों की सोचने की क्षमता बढ़ा सकें। इसलिए 11 साल तक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने कुछ और करने का सोचा। उन्होंने पुराने बोर्ड गेम्स को ढूंढकर उन्हें फिर से शुरू करने का फैसला किया। इससे बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ सकेंगे।
तनुश्री बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद उन्होंने भारतीय गेम्स पर रिसर्च करना शुरू किया। उन्हें हैंडीक्राफ्ट और हाथ से बने गहने पसंद थे। इसलिए उन्होंने घर पर जो भी मिलता था, जैसे कपड़े, धागे, उनसे बोर्ड गेम्स बनाना शुरू कर दिया।
शुरू किया स्टार्टअपकपल ने 'रोल द डाइस' नाम से अपना स्टार्टअप शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले पगाड़े (पचीसी) के लिए मैट बनाया। यह एक रणनीति वाला गेम है। इसमें खिलाड़ी मोहरों को क्रॉस के आकार के बोर्ड पर चलाते हैं। इस गेम का जिक्र महाभारत में भी है। पुराने समय में इसे राजा-महाराजा खेलते थे।
तनुश्री और उनके पति शशिशेखर एस मंदिरों में जाते थे। वहां उन्हें भारतीय बोर्ड गेम्स के डिजाइन मिलते थे। वे उन गेम्स को अपने स्टार्टअप 'रोल द डाइस' के जरिए लोगों के घरों तक पहुंचाते हैं। हालांकि इस स्टार्टअप से शशिशेखर बाद में जुड़े।
तनुश्री बताती हैं, 'हम संस्कृति से जुड़े गेम्स को भी नया रूप दे रहे हैं। हम संक्रांति पर पतंग कैसे बनाएं, इस पर कार्ड-आधारित गेम्स बनाते हैं। फिर गणेश जी पर आधारित एक गेम है, 'रेस फॉर मोदक'। हमारे पास रामायण पर कल्चरल पजल्स भी हैं। इनसे एक महीने में पूरी रामायण सीखी जा सकती है।'
मां और दोस्तों ने की मददतनुश्री को लगा कि ऐसे गेम्स की डिमांड है जो प्रॉब्लम सॉल्व करने, सोचने की क्षमता बढ़ाने, टीम में काम करने और सहयोग करने में मदद करें। इसलिए उन्होंने 2016-17 में चौकाबारा (पांच घरों वाला रेस गेम) और पगाड़े के प्रोटोटाइप पर काम करना शुरू किया। वे बताती हैं, 'मैंने उन्हें घर पर कपड़े, कटिंग और हाथ की कढ़ाई से बनाया। मेरी मां और दोस्त ने भी मदद की।'
कितनी कमाई करता है कपल?मैसूर में तनुश्री और शशिशेखर का स्टार्टअप आज 17 तरह के हाथ से बने इको-फ्रेंडली बोर्ड गेम्स बेचता है। इनमें संस्कृति पर आधारित गेम्स और एक्सपीरियंस वाले गेम सेट भी शामिल हैं। इससे उन्हें हर महीने 2 लाख रुपये की कमाई होती है यानी सालाना 24 लाख रुपये।
दोनों ने साल 2019 में खुद ही वेबसाइट बनाई और दशहरा से गेम्स बेचना शुरू किया। शशिशेखर बताते हैं, 'पहले, हमने वेबसाइटों के माध्यम से बेचा। पहले छह महीनों में बिक्री धीमी थी, लेकिन बाद में बढ़ गई।' अब वे Amazon के जरिए भी ऑनलाइन बेचते हैं। ऑफलाइन, गेम्स मैसूर में उनके स्टोर के अलावा बेंगलुरु, पुणे और उडुपी के रिटेल आउटलेट्स पर उपलब्ध हैं।
तनुश्री और शशिशेखर प्राचीन मंदिरों में जाते हैं। वहां दीवारों पर बने बोर्ड गेम के डिजाइन देखते हैं। फिर वे उन डिजाइनों को इको-फ्रेंडली बोर्ड गेम्स में बदलते हैं। ये गेम्स बच्चों को सोचने, प्रॉब्लम सॉल्व करने और भारतीय संस्कृति से जुड़ने में मदद करते हैं।
कैसे आया इसका विचार?तनुश्री साल 2013 में मां बनीं। तब उन्हें लगा कि बच्चों के लिए अच्छे भारतीय खिलौने और गेम्स नहीं हैं। ऐसे खिलौने जो बच्चों की सोचने की क्षमता बढ़ा सकें। इसलिए 11 साल तक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने कुछ और करने का सोचा। उन्होंने पुराने बोर्ड गेम्स को ढूंढकर उन्हें फिर से शुरू करने का फैसला किया। इससे बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ सकेंगे।
तनुश्री बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद उन्होंने भारतीय गेम्स पर रिसर्च करना शुरू किया। उन्हें हैंडीक्राफ्ट और हाथ से बने गहने पसंद थे। इसलिए उन्होंने घर पर जो भी मिलता था, जैसे कपड़े, धागे, उनसे बोर्ड गेम्स बनाना शुरू कर दिया।
शुरू किया स्टार्टअपकपल ने 'रोल द डाइस' नाम से अपना स्टार्टअप शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले पगाड़े (पचीसी) के लिए मैट बनाया। यह एक रणनीति वाला गेम है। इसमें खिलाड़ी मोहरों को क्रॉस के आकार के बोर्ड पर चलाते हैं। इस गेम का जिक्र महाभारत में भी है। पुराने समय में इसे राजा-महाराजा खेलते थे।
तनुश्री और उनके पति शशिशेखर एस मंदिरों में जाते थे। वहां उन्हें भारतीय बोर्ड गेम्स के डिजाइन मिलते थे। वे उन गेम्स को अपने स्टार्टअप 'रोल द डाइस' के जरिए लोगों के घरों तक पहुंचाते हैं। हालांकि इस स्टार्टअप से शशिशेखर बाद में जुड़े।
तनुश्री बताती हैं, 'हम संस्कृति से जुड़े गेम्स को भी नया रूप दे रहे हैं। हम संक्रांति पर पतंग कैसे बनाएं, इस पर कार्ड-आधारित गेम्स बनाते हैं। फिर गणेश जी पर आधारित एक गेम है, 'रेस फॉर मोदक'। हमारे पास रामायण पर कल्चरल पजल्स भी हैं। इनसे एक महीने में पूरी रामायण सीखी जा सकती है।'
मां और दोस्तों ने की मददतनुश्री को लगा कि ऐसे गेम्स की डिमांड है जो प्रॉब्लम सॉल्व करने, सोचने की क्षमता बढ़ाने, टीम में काम करने और सहयोग करने में मदद करें। इसलिए उन्होंने 2016-17 में चौकाबारा (पांच घरों वाला रेस गेम) और पगाड़े के प्रोटोटाइप पर काम करना शुरू किया। वे बताती हैं, 'मैंने उन्हें घर पर कपड़े, कटिंग और हाथ की कढ़ाई से बनाया। मेरी मां और दोस्त ने भी मदद की।'
कितनी कमाई करता है कपल?मैसूर में तनुश्री और शशिशेखर का स्टार्टअप आज 17 तरह के हाथ से बने इको-फ्रेंडली बोर्ड गेम्स बेचता है। इनमें संस्कृति पर आधारित गेम्स और एक्सपीरियंस वाले गेम सेट भी शामिल हैं। इससे उन्हें हर महीने 2 लाख रुपये की कमाई होती है यानी सालाना 24 लाख रुपये।
दोनों ने साल 2019 में खुद ही वेबसाइट बनाई और दशहरा से गेम्स बेचना शुरू किया। शशिशेखर बताते हैं, 'पहले, हमने वेबसाइटों के माध्यम से बेचा। पहले छह महीनों में बिक्री धीमी थी, लेकिन बाद में बढ़ गई।' अब वे Amazon के जरिए भी ऑनलाइन बेचते हैं। ऑफलाइन, गेम्स मैसूर में उनके स्टोर के अलावा बेंगलुरु, पुणे और उडुपी के रिटेल आउटलेट्स पर उपलब्ध हैं।
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