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अमेरिका छोड़ो, भारत पर दांव लगाओ... टैरिफ वॉर के बीच इस दिग्गज एक्सपर्ट ने क्यों किया यह ऐलान?

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नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ का असर अमेरिका में दिखाई देना शुरू हो गया है। कई एक्सपर्ट बता रहे हैं कि अमेरिका में मंदी आ चुकी है। बेरोजगारी बढ़ रही है। कई कंपनियां बंद होने की कगार पर आ गई हैं। वहीं दूसरी ओर ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म जेफरीज (Jefferies) ने अमेरिका में निवेश करने वालों के लिए चेतावनी जारी कर दी है। जेफरीज में इक्विटी स्ट्रैटजिस्ट क्रिस वुड (Chris Wood) ने निवेश के लिए अमेरिका से बेहतर भारत, चीन और यूरोप को बताया है। वुड का मानना है कि निवेशकों को अमेरिका में अपने निवेश को कम करना चाहिए। उन्हें यूरोप, चीन और भारत में निवेश करना चाहिए। वुड का कहना है कि अमेरिका के शेयर बाजार दूसरे बाजारों से कमजोर रहेंगे। इसकी वजह है डॉलर का कमजोर होना और अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड बाजार में गिरावट। ये सब डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ (शुल्क) नीति की वजह से हो रहा है। क्रिस ने अपनी एक रिपोर्ट में इन बातों के बारे में बताया है। क्या लिखा है रिपोर्ट में?क्रिस वुड ने अपनी ग्रीड एंड फियर (Greed & Fear) नामक रिपोर्ट में लिखा है कि अमेरिकी शेयरों का प्राइस-टू-अर्निंग (PE) अनुपात अभी भी 19.2 गुना है। इसलिए, दुनिया भर के निवेशकों को यूरोप, चीन और भारत में निवेश बढ़ाना चाहिए और अमेरिका में अपना निवेश कम करना चाहिए। PE अनुपात का मतलब है कि शेयर की कीमत उसकी कमाई के मुकाबले कितनी है।वुड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'वित्तीय मामलों में अमेरिकी असाधारणता का एक ही उदाहरण है और वो है दुनिया की आरक्षित मुद्रा छापने की क्षमता। लेकिन पिछले हफ्ते जो हुआ, उससे इस क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड बाजार दोनों में गिरावट आई है, क्योंकि अमेरिकी शेयर बाजार में मंदी की आशंका बढ़ रही है।' क्या है अमेरिकी ट्रेजरी?अमेरिकी ट्रेजरी को दुनिया के सबसे सुरक्षित निवेशों में से एक माना जाता है। जब संकट का समय आता है तो निवेशक अमेरिकी सरकार के बॉन्ड खरीदते हैं, क्योंकि ये सुरक्षित माने जाते हैं। इससे अमेरिकी ट्रेजरी पर मिलने वाला ब्याज (yield) कम हो जाता है और डॉलर मजबूत होता है। वुड ने क्यों बताया संकट?वुड ने लिखा है कि उन्हें पिछले 30 सालों में ऐसा कोई मामला याद नहीं है, जब जोखिम से बचने के लिए लोग निवेश निकाल रहे हों और डॉलर भी कमजोर हो रहा हो।उन्होंने कहा कि एशियाई संकट और उसके बाद लॉन्ग-टर्म कैपिटल मैनेजमेंट (LTCM) का दिवालिया होना, 2008 का अमेरिकी सबप्राइम बंधक संकट और 2020 में कोविड-19 महामारी का डर, इन सभी घटनाओं के दौरान डॉलर मजबूत हुआ था। फिर फेड (Fed) ने हस्तक्षेप किया और बेलआउट दिया, जिससे क्रेडिट जोखिम का सामाजिकरण और भी बढ़ गया। सोने को मान रहे सुरक्षित निवेशकुछ समय पहले ICICI प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के सीआईओ (CIO) एस नरेन ने भी इकोनॉमिक टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में इसी तरह की चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि ट्रंप की टैरिफ नीति के कारण वैश्विक इक्विटी बाजारों में गिरावट आई है, जिससे डॉलर कमजोर हो रहा है और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ रहा है। उन्होंने कहा था कि लोग अब अमेरिकी ट्रेजरी और डॉलर की जगह सोने को सुरक्षित मान रहे हैं, जो कि चिंता की बात है।
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