सुशील कुमार, लखनऊ: मासूम बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाले वाहनों के सौ से अधिक चालकों पर गंभीर अपराधों के केस दर्ज हैं। इनमें गैरइरादतन हत्या से लेकर दंगा भड़काने तक के आरोपित शामिल हैं। हाल ही में राजधानी के निजी स्कूल की मासूम छात्रा से चालक के दुष्कर्म करने का मामला सामने आया है। इसके बाद मिशन भरोसा की रिपोर्ट खंगालने पर डराने वाली हकीकत सामने आई है।
स्मार्ट सिटी परियोजना के मिशन भरोसा पोर्टल पर राजधानी में चल रहे स्कूली वाहनों का ब्योरा दर्ज किया जा रहा है। प्रॉजेक्ट के तहत स्कूली वाहन चालकों के पुलिस वेरिफिकेशन में इसकी पुष्टि हुई है।
मिशन भरोसा के प्रॉजेक्ट निदेशक आलोक सिंह ने बताया कि ने अब तक पोर्टल पर कुल 5150 वाहनों का ब्योरा दर्ज हो चुका है। स्कूली बच्चों का परिवहन करने वाले वाहन चालकों के पुलिस वेरिफिकेशन में कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। कई मामलों में चालकों का पता गलत पाया गया है तो कई वाहनों का ब्योरा भी गड़बड़ है।
तमाम चालकों के खिलाफ कई गंभीर अपराधों के केस तक दर्ज हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं, जिनके खिलाफ सात से आठ धाराओं में केस दर्ज हैं। हालांकि चालकों का कहना है कि उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया गया है। निदेशक के अनुसार अब तक पोर्टल पर 2490 चालक और करीब 200 कंडक्टर व हेल्पर का ब्योरा दर्ज हुआ है। इनमें से 1200 का वेरिफिकेशन करते हुए 1100 को कार्ड भी जारी किए जा चुके हैं।
रेप के आरोपित चालक का नहीं हुआ था वेरिफिकेशन
आलोक सिंह ने बताया कि मासूम छात्रा से दुष्कर्म के आरोपित चालक का वेरिफिकेशन नहीं हुआ था। हालांकि गाड़ी और मालिक का पूरा ब्योरा दर्ज है। गाड़ी माउंटफोर्ड स्कूल के नाम पर दर्ज थी, जबकि दूसरे स्कूल के बच्चों को भी लाया ले जाया जा रहा था। वाहन का मालिक अबू बकर और चालक के तौर पर आरिफ का नाम दर्ज है। दोनों का पुलिस वेरिफिकेशन होना था, लेकिन इससे पहले ही घटना हो गई।
गलत पते वाले भी खूब
पोर्टल में बड़ी संख्या में चालकों के गलत पते दर्ज हैं। इसके चलते करीब 400 चालकों का आवेदन रिजेक्ट किया जा चुका है। प्रॉजेक्ट निदेशक के अनुसार जांच में आरटीओ का पूरा सहयोग नहीं मिलने से भी दिक्कत आ रही है। आंकड़े खुद इसकी गवाही दे रहे हैं। लखनऊ आरटीओ में कुल 1742 वाहन स्कूली वाहन के रूप में पंजीकृत हैं। जबकि, मिशन भरोसा पोर्टल पर अब तक 5150 का स्कूली वाहनों के रूप में पंजीकरण हो चुका है।
यह अंतर खुद ही आरटीओ की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है। इतना ही नहीं गाड़ियों की फिटनेस संबंधी ब्योरा भी भरोसा पोर्टल को नहीं मिल रहा है। इसे लेकर जिलाधिकारी को पूरी जानकारी दी जा चुकी है। बताया कि वाहन फोर पोर्टल का एक्सेस मिलने से गाड़ियों के फिटनेस संबंधी ब्योरा आसानी से मिल सकेगा।
अभिभावक दर्ज करवाएं ब्योरा
अभिभावक भी पोर्टल पर जाकर बच्चे के लिए लगाए गए वाहन का नंबर और स्कूल का नाम अपडेट कर सकते हैं। सूचना के आधार पर वाहन के ड्राइवर और स्टॉफ का कॉन्टेक्ट नंबर, कैरेक्टर सर्टिफिकेट, शहर में कहां रहता है, मूल निवास स्थान और किसी एक रिश्तेदार का नाम व कॉन्टैक्ट नंबर लिया जा रहा है। कई अभिभावक स्कूली वाहनों का खर्च ज्यादा होने या अन्य कारणों से ऑटो आदि खुद लगाते हैं। ऐसे मामलों में विशेष सतर्कता की जरूरत है। किसी भी वाहन से बच्चे को अकेले भेजने से बचें और ड्राइवर, मालिक आदि का नंबर जरूर रखें। साथ ही समय-समय पर बच्चे से बात करते रहें और गुड व बैड टच की जानकारी दें।
स्कूली वाहनों में भी मानकों की अनदेखी
मानकों के अनुसार स्कूली वाहनों का रंग पीला होने के साथ ही सीसीटीवी कैमरे, लाइव ट्रैकिंग डिवाइस, सेफ्टी रॉड आदि होनी चाहिए। जानकारों के अनुसार नियमों का सख्ती से पालन करवाने की बात शुरू होने के बाद से ही स्कूलों ने अपने वाहन बंद कर दिए हैं। ऐसे में स्कूल और स्टूडेंट्स की संख्या लगातार बढ़ने के बावजूद स्कूली वाहनों की संख्या 2622 कम हो गई हैं। स्कूल वाहनों को कम करने का काम स्कूल संचालकों व परिवहन अधिकारियों ने मिलकर किया है, ताकि दोनों अपनी जिम्मेदारी से बच सकें।
कोई घटना होने पर स्कूल संचालक सीधे जवाबदेह नहीं होंगे और परिवहन अधिकारियों को भी निगरानी में आसानी रहेगी। शिक्षण संस्थानों पर अपने वाहनों के रखरखाव का जिम्मा भी होता है। 21 सितंबर 2024 को बैठक में स्पष्ट किया गया था कि स्कूल प्रबंधन को प्राइवेट वाहनों की भी जिम्मेदारी लेनी होगी। यह कहकर नहीं बच सकेंगे कि घटना निजी वाहन से हुई। हालांकि, इसके बाद भी स्कूल प्रबंधन खास ध्यान नहीं दे रहे हैं।
सख्ती का दावा
आरटीओ प्रवर्तन प्रभात कुमार पांडेय ने बताया कि जुलाई में चले अभियान में 1742 वाहनों में 1616 की जांच की गई है। नियम के अनुसार छह सीटर स्कूली वाहन में सीसीटीवी आदि इंतजाम होने चाहिए। राजधानी में कमर्शल वाहनों का स्कूली के रूप में प्रयोग हो रहा है। इनकी संख्या काफी ज्यादा है। वहीं, अभिभावक अपने ही स्तर से बच्चों के लिए वाहन लगा रहे हैं। बसों में सीसीटीवी सहित अन्य इंतजाम की मॉनिटरिंग स्कूल स्तर से होती है। परिवहन विभाग मुख्यालय में भी सेंटर बन रहा है। स्कूल प्रबंधन के साथ लगातार बैठकें करते हुए दूसरे वाहनों को लेकर भी उनकी जिम्मेदारी तय की जा रही है।
स्मार्ट सिटी परियोजना के मिशन भरोसा पोर्टल पर राजधानी में चल रहे स्कूली वाहनों का ब्योरा दर्ज किया जा रहा है। प्रॉजेक्ट के तहत स्कूली वाहन चालकों के पुलिस वेरिफिकेशन में इसकी पुष्टि हुई है।
मिशन भरोसा के प्रॉजेक्ट निदेशक आलोक सिंह ने बताया कि ने अब तक पोर्टल पर कुल 5150 वाहनों का ब्योरा दर्ज हो चुका है। स्कूली बच्चों का परिवहन करने वाले वाहन चालकों के पुलिस वेरिफिकेशन में कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। कई मामलों में चालकों का पता गलत पाया गया है तो कई वाहनों का ब्योरा भी गड़बड़ है।
तमाम चालकों के खिलाफ कई गंभीर अपराधों के केस तक दर्ज हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं, जिनके खिलाफ सात से आठ धाराओं में केस दर्ज हैं। हालांकि चालकों का कहना है कि उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया गया है। निदेशक के अनुसार अब तक पोर्टल पर 2490 चालक और करीब 200 कंडक्टर व हेल्पर का ब्योरा दर्ज हुआ है। इनमें से 1200 का वेरिफिकेशन करते हुए 1100 को कार्ड भी जारी किए जा चुके हैं।
रेप के आरोपित चालक का नहीं हुआ था वेरिफिकेशन
आलोक सिंह ने बताया कि मासूम छात्रा से दुष्कर्म के आरोपित चालक का वेरिफिकेशन नहीं हुआ था। हालांकि गाड़ी और मालिक का पूरा ब्योरा दर्ज है। गाड़ी माउंटफोर्ड स्कूल के नाम पर दर्ज थी, जबकि दूसरे स्कूल के बच्चों को भी लाया ले जाया जा रहा था। वाहन का मालिक अबू बकर और चालक के तौर पर आरिफ का नाम दर्ज है। दोनों का पुलिस वेरिफिकेशन होना था, लेकिन इससे पहले ही घटना हो गई।
गलत पते वाले भी खूब
पोर्टल में बड़ी संख्या में चालकों के गलत पते दर्ज हैं। इसके चलते करीब 400 चालकों का आवेदन रिजेक्ट किया जा चुका है। प्रॉजेक्ट निदेशक के अनुसार जांच में आरटीओ का पूरा सहयोग नहीं मिलने से भी दिक्कत आ रही है। आंकड़े खुद इसकी गवाही दे रहे हैं। लखनऊ आरटीओ में कुल 1742 वाहन स्कूली वाहन के रूप में पंजीकृत हैं। जबकि, मिशन भरोसा पोर्टल पर अब तक 5150 का स्कूली वाहनों के रूप में पंजीकरण हो चुका है।
यह अंतर खुद ही आरटीओ की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है। इतना ही नहीं गाड़ियों की फिटनेस संबंधी ब्योरा भी भरोसा पोर्टल को नहीं मिल रहा है। इसे लेकर जिलाधिकारी को पूरी जानकारी दी जा चुकी है। बताया कि वाहन फोर पोर्टल का एक्सेस मिलने से गाड़ियों के फिटनेस संबंधी ब्योरा आसानी से मिल सकेगा।
अभिभावक दर्ज करवाएं ब्योरा
अभिभावक भी पोर्टल पर जाकर बच्चे के लिए लगाए गए वाहन का नंबर और स्कूल का नाम अपडेट कर सकते हैं। सूचना के आधार पर वाहन के ड्राइवर और स्टॉफ का कॉन्टेक्ट नंबर, कैरेक्टर सर्टिफिकेट, शहर में कहां रहता है, मूल निवास स्थान और किसी एक रिश्तेदार का नाम व कॉन्टैक्ट नंबर लिया जा रहा है। कई अभिभावक स्कूली वाहनों का खर्च ज्यादा होने या अन्य कारणों से ऑटो आदि खुद लगाते हैं। ऐसे मामलों में विशेष सतर्कता की जरूरत है। किसी भी वाहन से बच्चे को अकेले भेजने से बचें और ड्राइवर, मालिक आदि का नंबर जरूर रखें। साथ ही समय-समय पर बच्चे से बात करते रहें और गुड व बैड टच की जानकारी दें।
स्कूली वाहनों में भी मानकों की अनदेखी
मानकों के अनुसार स्कूली वाहनों का रंग पीला होने के साथ ही सीसीटीवी कैमरे, लाइव ट्रैकिंग डिवाइस, सेफ्टी रॉड आदि होनी चाहिए। जानकारों के अनुसार नियमों का सख्ती से पालन करवाने की बात शुरू होने के बाद से ही स्कूलों ने अपने वाहन बंद कर दिए हैं। ऐसे में स्कूल और स्टूडेंट्स की संख्या लगातार बढ़ने के बावजूद स्कूली वाहनों की संख्या 2622 कम हो गई हैं। स्कूल वाहनों को कम करने का काम स्कूल संचालकों व परिवहन अधिकारियों ने मिलकर किया है, ताकि दोनों अपनी जिम्मेदारी से बच सकें।
कोई घटना होने पर स्कूल संचालक सीधे जवाबदेह नहीं होंगे और परिवहन अधिकारियों को भी निगरानी में आसानी रहेगी। शिक्षण संस्थानों पर अपने वाहनों के रखरखाव का जिम्मा भी होता है। 21 सितंबर 2024 को बैठक में स्पष्ट किया गया था कि स्कूल प्रबंधन को प्राइवेट वाहनों की भी जिम्मेदारी लेनी होगी। यह कहकर नहीं बच सकेंगे कि घटना निजी वाहन से हुई। हालांकि, इसके बाद भी स्कूल प्रबंधन खास ध्यान नहीं दे रहे हैं।
सख्ती का दावा
आरटीओ प्रवर्तन प्रभात कुमार पांडेय ने बताया कि जुलाई में चले अभियान में 1742 वाहनों में 1616 की जांच की गई है। नियम के अनुसार छह सीटर स्कूली वाहन में सीसीटीवी आदि इंतजाम होने चाहिए। राजधानी में कमर्शल वाहनों का स्कूली के रूप में प्रयोग हो रहा है। इनकी संख्या काफी ज्यादा है। वहीं, अभिभावक अपने ही स्तर से बच्चों के लिए वाहन लगा रहे हैं। बसों में सीसीटीवी सहित अन्य इंतजाम की मॉनिटरिंग स्कूल स्तर से होती है। परिवहन विभाग मुख्यालय में भी सेंटर बन रहा है। स्कूल प्रबंधन के साथ लगातार बैठकें करते हुए दूसरे वाहनों को लेकर भी उनकी जिम्मेदारी तय की जा रही है।
You may also like
Upcoming IPO: NBFC ला रही है 254 करोड़ रुपये का इश्यू, प्राइस बैंड 150-158 रुपये, चेक करें डिटेल्स
ट्रेन में खुलेआम मादक अदाएं दिखाने लगी लड़कियां, किया ऐसा डांस देखकर यात्रियों को भी आ गई शर्मˏ
Boney Kapoor ने बिना एक्सरसाइज के घटाया 26 किलो वजन, नई तस्वीरों में देख पहचानना होगा मुश्किल
Health Tips: रोजाना सुबह खाली पेट लहसुन की एक कली का करे सेवन, सेहत को मिलेंगे ये गजब के फायदे
MCX पर टेक्निकल एरर के कारण 1 घंटे से अधिक समय तक ट्रेडिंग ठप, ट्रेडर्स और निवेशक हुए परेशान