मुंबई: महाराष्ट्र सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न निर्माण परियोजनाओं पर अत्यधिक व्यय के कारण वित्तीय बोझ इतना बढ़ गया है कि लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नई योजनाएं बाधित हो रही हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्रयोगशालाओं और अस्पतालों सहित परियोजनाओं को अनियमित रूप से मंजूरी दे रहा है। वास्तविक आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखे बिना तथा निर्माण पर वास्तव में कितनी लागत आएगी, इसका अनुमान लगाए बिना परियोजनाओं को मंजूरी देने से लोगों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना कठिन हो गया है।
लोक स्वास्थ्य विभाग को अभी भी निर्माण ठेकेदारों को नौ हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना है। एक अधिकारी ने बताया कि लगातार बढ़ते वित्तीय बोझ के कारण नई स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना मुश्किल होगा।
हर साल लोक स्वास्थ्य विभाग को कोर बजट के तहत 500 करोड़ रुपये मिलते हैं। इस धनराशि का अधिकांश हिस्सा नई एम्बुलेंस खरीदने या स्वास्थ्य केन्द्र बनाने में खर्च किया जाता है। फिलहाल स्वास्थ्य विभाग को नौ हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना है। इसमें से 7,500 करोड़ रुपए राज्य के खजाने से भुगतान किए जाने की उम्मीद है। जबकि शेष राशि का भुगतान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत किया जाएगा। इस प्रकार, बुनियादी ढांचे पर खर्च किया गया धन लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना कठिन बना रहा है।
स्वास्थ्य विभाग में भी पर्याप्त मानव शक्ति का अभाव है। सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट में पर्याप्त संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती नहीं करने के लिए राज्य सरकार की भी आलोचना की गई। डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स के स्वीकृत पदों में से 42 प्रतिशत रिक्त हैं। इस संदर्भ में स्वास्थ्य अधिकारी ने सवाल उठाया कि अस्पताल भवन बनाने का क्या फायदा है, जब उन्हें चलाने के लिए स्टाफ ही नहीं है।
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