महाभारत में अनेक वीर और साहसी योद्धा शामिल थे। पांडवों के अलावा कौरव पक्ष में भी कई शक्तिशाली योद्धा थे जिन्होंने कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर भयंकर तबाही मचाई। यदि भगवान कृष्ण intervened न करते, तो युद्ध का परिणाम निश्चित रूप से भिन्न होता। यदि हम कुरुक्षेत्र के युद्ध में प्रयुक्त हथियारों की चर्चा करें, तो द्वापर युग में ऐसे अस्त्र भी थे जो प्राचीन युग की तुलना में अत्यधिक उन्नत थे। इन अस्त्रों की मारक क्षमता इतनी थी कि एक ही वार से हजारों योद्धा धराशायी हो जाते थे। आइए जानते हैं महाभारत के कुछ विनाशकारी अस्त्रों के बारे में।
पाशुपतास्त्र: केवल दो अस्त्र कर सकते थे इसे रोकना
पाशुपतास्त्र एक ऐसा अस्त्र था, जिसका उपयोग करने के लिए धर्म का पालन अनिवार्य था। यह अस्त्र एक पल में संपूर्ण विश्व को नष्ट करने की क्षमता रखता था। इसका प्रयोग केवल दुष्टों के विनाश के लिए किया जाता था, लेकिन यदि इसे किसी पुण्यात्मा पर चलाया जाता, तो यह अपने धारक को ही समाप्त कर देता। इसे भगवान शिव का एक अत्यंत शक्तिशाली हथियार माना जाता है, जिसे अर्जुन ने तपस्या के माध्यम से प्राप्त किया। इसे रोकने की क्षमता केवल शिव का त्रिशूल और विष्णु का सुदर्शन चक्र रखते थे।
नारायणास्त्र: जिसका नाम सुनकर कांपता था ब्रह्मांड
नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड थरथराता था। यह भगवान विष्णु का अस्त्र था। कुरुक्षेत्र में अश्वत्थामा ने पांडव सेना पर आक्रमण किया, जिसमें हजारों सैनिक मारे गए। यह अस्त्र अत्यधिक शक्तिशाली था और इसका मुकाबला करने की क्षमता किसी में नहीं थी। इसे रोकने का एकमात्र तरीका था पूर्ण समर्पण।
वासवी: अमोघ शक्ति का प्रतीक
इन्द्र देव के पास वासवी नामक एक शक्तिशाली अस्त्र था। यह अस्त्र अजेय था और इसका उपयोग केवल एक बार किया जा सकता था। कर्ण ने इसे अर्जुन को मारने के लिए रखा था, लेकिन परिस्थितियों के कारण इसे भीम के पुत्र घटोत्कच पर प्रयोग करना पड़ा। माना जाता है कि यदि इसे अर्जुन पर चलाया जाता, तो उसकी मृत्यु निश्चित थी।
सुदर्शन चक्र: न्याय का प्रतीक
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का प्रतीक है, जो श्री कृष्ण के पास था। महाभारत के युद्ध में कौरव और पांडव केवल पात्र थे, जबकि वास्तव में श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से पापियों को उनके पापों की सजा दे रहे थे। यह चक्र न्याय का प्रतीक माना जाता है।
ब्रह्मास्त्र: विनाश की शक्ति
ब्रह्मास्त्र एक अत्यंत शक्तिशाली अस्त्र था। महाभारत में अर्जुन, कर्ण और श्री कृष्ण जैसे योद्धा इसे चलाना जानते थे। अश्वत्थामा ने इसका प्रयोग किया, जिससे गर्भ में ही शिशुओं की मृत्यु हो गई। उसे यह नहीं पता था कि इसे वापस कैसे लिया जाए। शास्त्रों के अनुसार, इसके विनाश को रोकने के लिए एक और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग आवश्यक था।
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