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शकुनि के मायावी पासों के बारे में तो आपने सुना होगा। ये शकुनि की सुनते थे और जो वो कहता था वही अंक आता था। इन्ही पासों के चक्कर में पांडव अपना सब कुछ हार गए थे। आज हम आपको इन्ही पासों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
कहां से हुई पासों की जादुई शुरुआत?
शकुनि गांधार नरेश सुबल का बेटा था। उसके पिता की इच्छा थी कि उनके मरने के बाद उनकी हड्डियों से पासे बनाए जाएं। ये शकुनि का मार्गदर्शन करेंगे. लेकिन शकुनि ने इन पासों का इस्तेमाल गलत रास्ते पर चलने के लिए किया।
शकुनि का बदला
गांधार नरेश सुबल नेत्रहीन धृतराष्ट्र से अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहते थे, लेकिन कुरुओं के दबाव में ये रिश्ता हुआ। इसलिए शकुनि कुरुवंश को खत्म करने के लिए बदला लेना चाहता था इसके लिए उसने इन पासों का इस्तेमाल किया।
जब महाभारत युद्ध हुआ तब शकुनि ने दुर्योधन का पूरा साथ दिया, ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान से वो हमेशा बच गया। लेकिन कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर उसका सामना नकुल और सहदेव से हुआ। 18वें दिन सहदेव ने शकुनि और उसके 3 बेटों को मार गिराया।
शकुनि की मौत के बाद मायावी पासों का क्या हुआ?
शकुनि की मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों को इन पासों को नष्ट करने की सलाह दी क्योकिं उन्हें पता था कि ये पासे कितने खतरनाक है। शुरू में भीम इन पासों को नष्ट करना चाहता था लेकिन अर्जुन को लगा कि उसका मन भी इन पासों के वजह से भटक सकता है इसलिए उसने इन पासों को नष्ट करने का जिम्मा अपने सिर उठाया।
श्रीकृष्ण की सलाह पर भीम इन पासों को नष्ट करना चाहता था, लेकिन अर्जुन ने ये जिम्मा अपने कंधों पर लिया. अर्जुन को डर था कि पासों का जादू उनके मन को भी भटका सकता है। इसलिए, उसने जल्दबाजी में इन पासों को नदी में फेंक दिया,लेकिन ये फैसला सही नहीं था। श्रीकृष्ण ने कहा कि ये बहुत बड़ी गलती थी। अगर ये पासे किसी के हाथ लग जाए तो समाज में छल-कपट फैल सकता है। श्रीकृष्ण की बात सही थी, क्योंकि पासों का जादू खत्म होने वाला नहीं था।
कलियुग में जुए का खेल: अर्जुन की भूल?
माना जाता है कि नदी में फेंके गए शकुनि के मायावी पासे किसी इंसान के हाथ लग गए. इसके बाद कलियुग में जुए का खेल फिर से शुरू हो गया. जुआ आज भी कई रूपों में समाज में मौजूद है.