हिंदू धर्म में गणेश जी को विघ्नहर्ता, बुद्धि और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है। किसी भी शुभ कार्य, यज्ञ, पूजन, या नई शुरुआत में सबसे पहले गणेश जी का स्मरण किया जाता है। उनकी स्तुति और नामों का जप करने से जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे ही एक प्रभावशाली स्तोत्र का नाम है — "श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम्", जिसमें भगवान गणेश के बारह नामों का स्मरण किया जाता है।
यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका नियमित पाठ साधक के जीवन में शांति, समृद्धि, और निर्भयता भी लाता है।
श्लोक और अर्थ:
स्तोत्र इस प्रकार है:
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥
प्रथमं वक्रतुंडं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभोः॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥
अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्याभवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥
श्लोकों का सार और व्याख्या:
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्...
इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान गणेश को सिर झुकाकर प्रणाम करें, जो माता गौरी के पुत्र हैं। जो भक्तों के निवास स्थान में सदा वास करते हैं, उन्हें स्मरण करने से आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि होती है।
प्रथमं वक्रतुंडं च एकदन्तं द्वितीयकम्...
इसमें गणेश जी के बारह नामों का उल्लेख किया गया है –
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वक्रतुंड: टेढ़े सूंड वाले
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एकदंत: एक दांत वाले
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कृष्णपिंगाक्ष: काले और तांबई आंखों वाले
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गजवक्त्र: हाथीमुख वाले
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लम्बोदर: बड़ा पेट वाले
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विकट: भयानक रूप वाले
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विघ्नराज: विघ्नों के राजा
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धूम्रवर्ण: धुएं जैसे वर्ण वाले
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भालचंद्र: माथे पर चंद्रमा धारण करने वाले
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विनायक: नेता
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गणपति: गणों के स्वामी
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गजानन: हाथी जैसा मुख वाले
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः...
जो व्यक्ति इन बारह नामों को प्रतिदिन तीन बार – प्रातः, मध्यान्ह और संध्या के समय – श्रद्धा से पढ़ता है, उसे किसी भी विघ्न का भय नहीं रहता और भगवान गणेश सभी सिद्धियाँ प्रदान करते हैं।
विद्यार्थी लभते विद्यां...
इस स्तोत्र के पाठ से विद्यार्थी को ज्ञान, धनार्थी को धन, संतान की इच्छा रखने वाले को संतान, और मोक्ष की कामना करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
षड्भिर्मासैः फलं लभेत्...
छह महीने तक नियमित पाठ करने से फल मिलता है और एक वर्ष तक करने से सिद्धि निश्चित रूप से मिलती है।
अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्...
यदि इस स्तोत्र को आठ ब्राह्मणों को लिखकर समर्पित किया जाए, तो साधक को संपूर्ण विद्याओं की प्राप्ति होती है, और यह सब गणेश जी की कृपा से संभव होता है।
आध्यात्मिक महत्व:
श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् न केवल एक स्तोत्र है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुष्ठान भी है। इसे पढ़ने से साधक को आत्मबल, मानसिक शांति और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। विघ्न और बाधाओं से बचने के लिए यह एक अचूक उपाय माना जाता है। यह स्तोत्र हमें स्मरण कराता है कि प्रत्येक नाम एक विशेष गुण या शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
उदाहरण के लिए, “वक्रतुंड” हमें यह सिखाता है कि जीवन में यदि कोई बाधा या समस्या टेढ़ी-मेढ़ी आए, तो उसका सामना सूझबूझ से करना चाहिए। “एकदंत” यह सिखाता है कि संकल्प में एकाग्रता और दृढ़ता आवश्यक है। “गजानन” यह दर्शाता है कि शक्तिशाली होते हुए भी विनम्रता और करुणा आवश्यक है।
ऐतिहासिक और पुराणिक संदर्भ:
गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् की उत्पत्ति की स्पष्ट तिथि तो ज्ञात नहीं है, लेकिन यह पुराणों में वर्णित गणेश उपासना की परंपरा का ही भाग है। खासकर गणेश पुराण और मुद्गल पुराण में गणेश जी के विभिन्न स्वरूपों और नामों का विस्तार से वर्णन है। इस स्तोत्र की रचना किसी प्राचीन ऋषि ने साधकों को जीवन के विविध संकटों से बाहर निकालने के उद्देश्य से की थी।
प्रयोग और लाभ:
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किसी नए कार्य की शुरुआत से पहले इसका पाठ करने से सफलता मिलती है।
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परीक्षा, इंटरव्यू या किसी प्रतियोगिता में जाने से पहले इसका जप करने से आत्मविश्वास बढ़ता है।
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घर में सुख-शांति बनाए रखने और वास्तु दोष निवारण हेतु इसका नियमित पाठ लाभकारी है।
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व्यापारियों के लिए यह स्तोत्र विशेष फलदायी है। दुकान या प्रतिष्ठान में इसका पाठ करने से व्यवसाय में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष:
श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली और सरल स्तोत्र है, जिसे कोई भी श्रद्धा और नियमपूर्वक पढ़ सकता है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि सांसारिक सुख-सुविधाओं की भी प्राप्ति कराता है। भगवान गणेश के ये बारह नाम हमारे भीतर छुपे गुणों को जागृत करते हैं और हमें एक सफल, निर्भीक और संतुलित जीवन की ओर अग्रसर करते हैं।
अगर जीवन में कोई भी कार्य बार-बार रुक रहा हो, या मन में डर, संदेह या अनिश्चय हो, तो श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का नियमित पाठ एक अमोघ उपाय है।
"ॐ श्री गणेशाय नमः!"
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