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सब बेगुनाह तो मुकुल को किसने मारा... साफ नहीं कर सकी सीबीआई, पुलिस ने किया था एनकाउंटर

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बरेली के बदायूं निवासी मुकुल गुप्ता एनकाउंटर के लगभग सभी आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गई है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच के बावजूद मामले में कई सुराग अभी भी अनसुलझे हैं। कुछ लोगों को आरोपपत्र से बाहर रखा गया है जबकि कहा जा रहा है कि बाकी लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। ऐसे में सवाल अब भी बरकरार है कि मासूम मुकुल की मौत का जिम्मेदार कौन है?

बदायूं शहर के मोहल्ला ब्रह्मपुर निवासी रिटायर्ड इंजीनियर विजेंद्र गुप्ता और उनकी पत्नी शन्नो गुप्ता की भी पिछले दिनों घर में ही हत्या कर दी गई थी। विजेंद्र गुप्ता अपने बेटे मुकुल के साथ बरेली के सीबीगंज थाना क्षेत्र में मुठभेड़ में घायल हो गए। तत्कालीन प्रशिक्षु एएसपी जे. रवींद्र गौड़ के नेतृत्व में सीबीगंज एसओ विकास सक्सेना और उनकी टीम ने इस मुठभेड़ को अंजाम दिया था।

पुलिस टीम ने तब मुकुल को लुटेरा बताया था, जबकि शिनाख्त के दौरान पता चला कि वह शिक्षित है और बरेली में एक दवा कंपनी में एमआर है। जब पुलिस ने उस समय रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो विजेंद्र गुप्ता ने कोर्ट की शरण ली। जब एफआर दायर की गई तो उसे चुनौती दी गई। जब मानवाधिकार आयोग ने मुठभेड़ को गलत माना और संवेदना स्वरूप 5 लाख रुपए का चेक भेजा तो दंपत्ति ने वह भी लौटा दिया।

लॉबी न करने के लिए प्रोत्साहन दिए गए।
कोर्ट-कचहरी से लेकर पुलिस अफसरों के दरवाज़ों तक भटकते हुए विजेंद्र गुप्ता अपने बेटे के हत्यारों को न्याय के कठघरे में लाने के लिए जुनूनी थे। वह इससे कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कई बार पत्रकारों से कहा था कि उन्हें इस मामले को आगे न बढ़ाने के लिए लालच दिया जा रहा है। धनराशि लाखों से बढ़कर करोड़ों में पहुंच गई, लेकिन बुजुर्ग दंपत्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ। आखिरकार दंपत्ति की हत्या के साथ ही न्याय व्यवस्था की आखिरी कड़ी भी टूट गई और अब मुकुल के एनकाउंटर की व्याख्या भी सवालों के घेरे में आ गई है।

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