नई दिल्ली, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। वक्फ कानून को लेकर सियासत थमती नजर नहीं आ रही है। संसद से बिल के पास होने और राष्ट्रपति से मंजूरी दिए जाने को लेकर विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन लगातार विरोध जता रहे हैं। इस बीच, जमात-ए-इस्लामी हिंद के वाइस प्रेसिडेंट प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने ‘वक्फ’ कानून की तुलना ‘काले कानून’ से की है।
जमात-ए-इस्लामी हिंद के वाइस प्रेसिडेंट प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मेरा मानना है कि वक्फ एक काला कानून है। वक्फ कानून पक्षपातपूर्ण और घृणा फैलाने वाला है, जो समाज को बांटने का काम कर रहा है। खास तौर से मुसलमानों को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित करने के लिए ही इसे लाया गया है। मौजूदा सरकार इस कानून के जरिए राजनीतिक फायदा उठाने के लिए देश को खतरे में डाल रही है। मैं समझता हूं कि इस कानून का पूरे देश में विरोध होगा। लोगों की भावनाओं को सामने लाया जाएगा। साथ ही शांतिपूर्ण तरीके से कानूनी रास्ता भी अपनाया जाएगा।"
उद्धव ठाकरे समेत विपक्षी दलों से वक्फ कानून के खिलाफ मिले समर्थन पर उन्होंने आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, "जिन लोगों ने भी इस कानून के विरोध में वोट किया और अपनी आवाज उठाई है, मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं।"
संसद के दोनों सदनों से बजट सत्र में पारित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को शनिवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। इस संबंध में गजट अधिसूचना जारी होने के साथ ही वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम भी बदलकर यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, इम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (उम्मीद) अधिनियम, 1995 हो गया है।
विपक्षी दलों और कई मुस्लिम संगठनों के विरोध के बावजूद लोकसभा ने 3 अप्रैल को तड़के और राज्यसभा ने 4 अप्रैल को तड़के इसे मंजूरी प्रदान की। लोकसभा में इसके समर्थन में 288 और विरोध में 232 वोट पड़े थे जबकि ऊपरी सदन में इसके पक्ष में 128 और विरोध में 95 वोट पड़े।
--आईएएनएस
एफएम/केआर
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