सिरोही/आबूरोड, 08 अप्रैल . ब्रह्माकुमारीज की प्रमुख 101 वर्षीय राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी नहीं रहीं. उन्होंने अहमदाबाद के जाइडिस अस्पताल में रात 1ः20 बजे अंतिम सांस ली. उनके पार्थिव शरीर को शांतिवन लाया जा रहा है, जहां मुख्यालय शांतिवन के कॉन्फ्रेंस हाल में अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा. 10 अप्रैल को सुबह 10 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा. वो मात्र 13 वर्ष की आयु में ही ब्रह्माकुमारीज से जुड़ीं और पूरा जीवन समाज कल्याण में समर्पित कर दिया. 101 वर्ष की आयु में भी दादी की दिनचर्या ब्रह्ममुहूर्त में 3ः30 बजे से शुरू हो जाती थी. सबसे पहले वह परमपिता शिव परमात्मा का ध्यान करतीं. राजयोग मेडिटेशन उनकी दिनचर्या में शामिल रहा.
रतनमोहिनी का जन्म 25 मार्च 1925 को सिंध हैदराबाद के एक साधारण परिवार में हुआ. माता-पिता ने नाम रखा लक्ष्मी. किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कल यही बेटी अध्यात्म और नारी शक्ति का जगमग सितारा बनकर सारे जग को रोशन करेगी. बचपन से अध्यात्म के प्रति लगन और परमात्मा को पाने की चाह में मात्र 13 वर्ष की उम्र में लक्ष्मी ने विश्व शांति और नारी सशक्तिकरण की मुहिम में खुद को झोंक दिया. दादी वर्ष 1937 में ब्रह्माकुमारीज की स्थापना से लेकर आज तक 87 वर्ष की यात्रा की साक्षी रही हैं. पिछले 40 से अधिक वर्ष से आप संगठन के ही युवा प्रभाग की अध्यक्षा की भी जिम्मेदारी संभाल रही हैं. उनकेन नेतृत्व में युवा प्रभाग द्वारा देशभर में अनेक राष्ट्रीय युवा पदयात्रा, साइकिल यात्रा और अन्य अभियान चलाए गए.
दादी रतनमोहिनी में बचपन से ही भक्तिभाव के संस्कार रहे. छोटी सी उम्र होने के बाद भी आप अन्य बच्चों की तरह खेलने-कूदने के स्थान पर ईश्वर की आराधना में अपना ज्यादा वक्त गुजारती थीं. स्वभाव धीर-गंभीर था. पढ़ाई में भी होशियार होने के साथ प्रतिभा संपन्न रहीं हैं. दादीजी ने वर्ष 1937 से लेकर ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने (वर्ष 1969) तक साये की तरह साथ रहीं. इन 32 साल में आप बाबा के हर पल साथ रहीं. बाबा का कहना और दादी का करना यह विशेषता शुरू से ही थी.
बहनों की ट्रेनिंग और नियुक्ति की कमान
वर्ष 1996 में ब्रह्माकुमारीज की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ कि अब विधिवत बेटियों को ब्रह्माकुमारी बनने की ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके लिए एक ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया और तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने आपको ट्रेनिंग प्रोग्राम की हैड नियुक्त किया. तब से लेकर आज तक बहनों की नियुक्ति और ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दादीजी के हाथों में रही. दादी के नेतृत्व में अब तक 6000 सेवाकेंद्रों की नींव रखी गई है.
युवा प्रभाग की संभाली कमान
युवा प्रभाग द्वारा दादीजी के नेतृत्व में 2006 में निकाली गई स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा ने ब्रह्माकुमारीज के इतिहास में एक नया अध्याय लिख दिया. 20 अगस्त 2006 को मुंबई से यात्रा का शुभारंभ किया गया और 29 अगस्त 2006 का तीनसुकिया असम में समापन किया गया. स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा द्वारा पूरे देश में 30 हजार किलोमीटर का सफर तय किया गया. इसमें पांच लाख ब्रह्माकुमार भाई-बहनों ने भाग लिया. सवा करोड़ लोगों को शांति, प्रेम, एकता, सौहार्द्र, विश्व बंधुत्व, अध्यात्म, व्यसनमुक्ति और राजयोग ध्यान का संदेश दिया गया.
भारत एकता युवा पदयात्रा
दादी के ही नेतृत्व में 1985 में भारत एकता युवा पदयात्रा निकाली गई. इससे 12550 किलोमीटर की दूरी तय की गई. यात्रा का शुभारंभ तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने किया था. कन्याकुमारी से दिल्ली (3300 किलोमीटर) की सबसे लंबी यात्रा रही. भारी बारिश और तूफार के दौरान भी राजयोगी भाई-बहनों के कदम नहीं रुके और रेगिस्तान, जल, जंगल, पर्वत का लांघते हुए मिशन पूरा किया. 24 अक्टूबर 1985 को दिल्ली में भव्य समापन समारोह आयोजित किया गया. दादी के निर्देशन में करीब 70 हजार किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्राएं निकाली गईं.
1985 में दादी ने की 13 पैदल यात्राएं
वर्ष 2006 में निकाली गई युवा पदयात्रा ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में जहां नाम दर्ज कराया, वहीं सभी यात्रियों ने 30 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा तय की. दादी ने 13 मेगा पैदल यात्राएं की हैं. अगस्त 1989 में देश के 67 स्थानों पर एकसाथ अखिल भारतीय नैतिक जागृति अभियान चलाया चलाया गया. अभियान में सैकड़ों स्कूल-कॉलेजों, युवा क्लब और सामाजिक सेवा संस्थानों में प्रदर्शनियां, व्याख्यान, सेमिनार और रचनात्मक कार्यशालाएं आयोजित की गईं. इनमें कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों ने भाग लिया.
डॉक्टरेट की उपाधि
20 फरवरी, 2014 को गुलबर्गा विश्वविद्यालय के 32वें दीक्षांत समारोह में कुलपति प्रोफेसर ईटी पुट्टैया और रजिस्ट्रार प्रोफेसर चंद्रकांत यतनूर द्वारा राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा. उन्हें यह उपाधि विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं के आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए प्रदान की गई. इसके अलावा देश-विदेश में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से समय प्रति समय दादी को सम्मानित किया गया है.
फैक्ट फाइल – 25 मार्च 1925 को सिंध हैदराबाद में जन्म. – 13 वर्ष की आयु में 1937 में ब्रह्मा बाबा से मिलीं. – 50 हजार ब्रह्माकुमारी पाठशाला संचालित कीं. – 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की हैं नायिका. – 5500 सेवाकेंद्र दादी के मार्गदर्शन में संचालित. – 1956 से 1969 तक मुंबई में दीं सेवाएं. – 1954 जापान में विश्व शांति सम्मेलन में किया संस्थान का प्रतिनिधित्व. – 2006 में युवा पद यात्रा ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया.
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/ रोहित
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