जोधपुर, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने स्लीपर बस पर अधिक टैक्स लगाने संबंधी राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया है। जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस अनुरूप सिंघी की बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के पास बॉडी टाइप के आधार पर अलग कैटेगरी बनाकर टैक्स लगाने का अधिकार है। हालांकि कोर्ट ने नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में गलती मानते हुए टैक्स की मांग वाले नोटिस रद्द कर दिए हैं।
मुख्य याचिकाकर्ता खुमान सिंह सहित अलग-अलग 24 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये निर्णय सुनाया। इसमें खुमानसिंह की ओर से दायर की गई रिट में बताया गया कि राज्य सरकार द्वारा गत 24 फरवरी 2021 की अधिसूचना द्वारा स्लीपर बस के लिए अलग कैटेगरी बनाना गैरकानूनी है। उनकी बस 15 जून 2017 को बस के रूप में रजिस्टर्ड हुई थी और कॉन्ट्रैक्ट कैरिज परमिट के तहत केवल एक रेवेन्यू डिवीजन की सीमा में चलती थी। खुमानसिंह व अन्य याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के पास मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के तहत नई श्रेणी बनाने का अधिकार नहीं है। वाहनों की श्रेणी तय करने का एकमात्र अधिकार केंद्र सरकार के पास ही है।
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता सज्जनसिंह राठौड़ व अन्य वकीलों ने तर्क दिया कि स्लीपर बस मुख्यत: लंबी दूरी के यात्रियों के लिए रात्रि यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराती हैं। अगर स्लीपर बसों को टैक्स छूट दी जाए, तो बड़ी संख्या में ये बसें रीजनल परमिट की तरफ शिफ्ट हो जाएंगी, जिससे लंबी दूरी की नाइट सर्विस प्रभावित होगी। कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के पास राजस्थान मोटर व्हीकल टैक्सेशन एक्ट 1951 की धारा 4 के तहत बॉडी टाइप के आधार पर अलग कैटेगरी बनाने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने माना कि केंद्र सरकार की 5 नवंबर 2004 की अधिसूचना में वाहनों के प्रकार का उल्लेख है, लेकिन इन्हें आगे वर्गीकृत नहीं किया गया है। इसलिए राज्य सरकार अपने नियमों के अनुसार बॉडी टाइप के आधार पर वर्गीकरण कर सकती है। राजस्थान मोटर व्हीकल रूल्स में स्लीपर कोच की परिभाषा दी गई है। इसके अनुसार स्लीपर कोच का मतलब दो स्तरीय व्यवस्था वाला मोटर व्हीकल है, जो सोने या सोने और बैठने की सुविधा प्रदान करता है। इस रूल की वैधता को 2018 में चंद्र शुभ यात्रा कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य मामले में अदालत द्वारा बरकरार रखा गया था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार द्वारा अलग-अलग बसों के लिए अलग टैक्स नीति रखने के पीछे ठोस कारण हैं। इसमें, सामान्य बसों को टैक्स में छूट देने का उद्देश्य स्थानीय परिवहन सेवाओं को प्रोत्साहित करना है। ये बसें एक रेवेन्यू डिवीजन की सीमा के अंदर ही चलती हैं और आम जनता को सस्ती यात्रा सुविधा उपलब्ध कराती हैं। दूसरी तरफ, स्लीपर बसें मुख्यत: लंबी दूरी के रूट पर संचालित होती हैं और रात्रि यात्रा की आरामदायक सुविधा प्रदान करती हैं। यदि स्लीपर बसों को भी टैक्स छूट दी जाती है, तो ये ज्यादा मुनाफे के लिए छोटी दूरी के रूट पर शिफ्ट हो जाएंगी। इससे दो नुकसान होंगे -पहला, लंबी दूरी की नाइट सर्विस में कमी आएगी और दूसरा, स्थानीय बसों के साथ अनुचित प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इस तरह राज्य सरकार की यह नीति संतुलित परिवहन व्यवस्था बनाए रखने के लिए बनाई गई है।
हालांकि कोर्ट ने सरकार के स्लीपर बस टैक्स के फैसले को सही माना, लेकिन नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में गलती मानी। कोर्ट ने पाया कि 24 फरवरी 2021 की अधिसूचना के बाद भी सरकार खुमान सिंह से टैक्स वसूल करती रही। 24 मार्च 2023 और 21 जून 2023 के नोटिस तय रूल्स के अनुसार जारी नहीं किए गए थे। साथ ही नोटिस के साथ ऑर्डर की प्रमाणित प्रति भी नहीं थी। याचिकाकर्ता को उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। इसलिए एमटीआर फॉर्म में 24 मार्च 2023 का नोटिस और एमटीक्यू फॉर्म में 21 जून 2023 के डिमांड नोटिस को रद्द कर दिया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पूर्व के ये नोटिस रद्द करने के बावजूद सरकार कानून के अनुसार नई कार्रवाई शुरू कर सकती है।
(Udaipur Kiran) / सतीश
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